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सोमवार, 21 मार्च 2022

गंधक रसायन क्या है ? गंधक रसायन के फायदे, नुकसान व उपयोग। Ayurvedic Medicine

गंधक रसायन क्या है ? गंधक रसायन के फायदे, नुकसान व उपयोग। 

गंधक रसायन क्या है ?

Gandhak Rasayan in Hindi-गंधक रसायन क्या है ?

गंधक रसायन(Gandhak Rasayan) शरीर को डीटाक्स करने वाली एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक दवा है जो शुद्ध गंधक अर्थात डिटॉक्सिफाइड सल्फर नाम के खनिज तत्व पर आधारित है। 

गंधक रसायन बनाने के लिए गंधक नामक खनिज तत्व को कई बार गाय के दूध में प्रोसिस किया जाता है और कई प्रकार के औषधीय रसों की कई कई भावनाए लगाकर निर्मित किया जाता है इसे वटी के रुप में बनाया जाता है।

गंधक रसायन बनाने की विधि ---

गंधक रसायन का निर्माण करने के लिए सर्वप्रथम आयुर्वेदानुसार शुद्ध गंधक लेकर गाय के दूध में घोंटा जाता है। इसमें फिर चातुर्जात (दालचीनी, इलायची , तेजपात और नागकेशर ) काढा, गिलोय के रस, त्रिफला के काढ़े , सोंठ के काढ़े , भृंगराज के रस और अदरक के रस से अलग अलग 8  भावना दी जातीं हैं। इससे जो पेस्ट तैयार होता है उसे सुखा कर गोली बनायी जाती हैं। इन गोलियों को गंधक रसायन वटी कहा जाता है।

गंधक रसायन के गुण---

गंधक रसायन एक ऐसी आयुर्वेदिक औषधि है जो एंटी बैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटी माइक्रोबियल गुणों को अपने आप में समाहित करती है। 

निम्न रोगों में रामवाण है गंधक रसायन--

इसके अतिरिक्त यह घोर अतिसार diarrhea,ग्रहणी , रक्त और दर्द युक्त ग्रहणी (इर्रीटेबल बाउल सिंड्रोम)  irritable bowel syndrome, जीर्ण ज्वर chronic fever, प्रमेह gonorrhea , वात रोग Arthritis, उदर रोग Abdominal disease , अण्डकोष वृद्धि Hydrocele , और सोम रोग जैसी व्याधियों की रामवाण औषधि है। 

गंधक रसायन दुबले पतले लोगों के लिए है वरदान---

दुबले पतले और कमजोर शरीर वाले लोगों के लिये यह एक वरदान है। इसके सेवन से शरीर की सातों धातुए पुष्ट होती हैं। शुक्र की वृद्धि होती है यह योग वात पित्त व कफ को अपनी सामान्य अवस्था में लाता है और यदि ये कुपित हों तो उनका शमन करके पुनः सामान्य अवस्था में लाता है। वीर्य की वृद्धि, व पुष्टि करके नपुंसकता का विनाश करता है और यौन शक्ति की वृद्धि करता है। 

बबासीर, टी.बी. पीलिया व श्वांस का विनाश करता है गंधक रसायन ---

यह जीर्ण ज्वर, जीर्ण रोग, राजयक्ष्मा, प्रमेह, पाण्डु, क्षय, श्वांस, व अर्श अर्थात बवासीर को भी शान्त करके शरीर को स्वस्थ करता है इसके इन्हीं गुणों के कारण इसे गंधक रसायन के नाम से जाना जाता है।

गंधक रसायन के फायदे Gandhak Rasayan Benefits in Hindi -- 

आयुर्वेद में गंधक रसायन (Gandhak Rasayan ke Gun)का गुणगान करते हुये इसे अनेक व्याधियों को नष्ट करने वाला बताया गया है। परन्तु इसका विशेष कार्यक्षेत्र रक्त और त्वचा है  इसे एक विशेष प्रकार के दोष दूष्यों की संगति चाहिये। किसी भी कारण से दूषित हुये रक्त को दोबारा से शुद्ध और स्वस्थ बनाना इस औषधि का प्रमुख कार्य है।  इसी प्रकार से शरीर में संचित हुये विकारों और विकृत दृव्यों का रुपान्तर और भेदन करके शरीर को शुद्ध व निरोगी रखना भी इस रोग का एक प्रमुख कार्य है। रक्त में अशुद्धि होने पर शरीर की सप्त धातुओं  में मलिनता व विकृति आती है जिससे धातुओं का धर्म अर्थात आवश्यक तत्वों का संशोषण और रुपान्तरण करके उनकों आत्मसात करने का गुण कम हो जाता है एसी स्थिति में रक्त को संशोधित करके घातुओं की स्वाभाविक स्वस्थ स्थिति को स्थापित करना जरुरी होता है यह कार्य गंधक रसायन 64 भावना अति उत्तम प्रकार से करता है। इस दृष्टि से यह योग उपदंश, सुजाक जैसे रोगों  के विशिष्ठ विष को दूर करने में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। 

गंधक रसायन किन किन रोगों में लाभकारी है।

गंधक रसायन आयुर्वेद का एक श्रेष्ठ योग है यह तो ऊपर बताई बातों से आपको समझ आ गया होगा किन्तु फिर भी इस योग के बारे में यह बात अवश्य ध्यान रखनी चाहिये कि इस रोग का प्रयोग उन रोगों में विशेष किया जाना चाहिये जिन रोगों का प्रमुख लक्षण जलन हो।  आगे पढ़ने पर आपको निम्न प्रश्नों के सफल उत्तर मिल जाऐंगे।

                शरीर की जलन वाले रोगों का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें । 

या 

                पित्त के प्रकुपित हो जाने का क्या है आयुर्वेदिक इलाज जानें।

जलन रोग का इलाज शरीर की जलन । किसी अंग में जलन में लाभ कारी है यह अमृत सम योग

इस औषधि को प्रयोग करते समय यह बात अवश्य समझी जानी चाहिये कि जिन रोगों में इस औषधि का प्रयोग जरुरी है उन रोगों में एक मुख्य लक्षम जलन मौजूद होना चाहिये। पेशाव में जलन, पेट में जलन,त्वचा में जलन,पूरे शरीर में जलन,हाथ पैरों में जलन, गले में जलन, छाती में जलन, सिर में जलन, मुंह में जलन, शौंच करते समय जलन होना या गरम गरम मल निकलना, अधोवायु गर्म निकलना, थोड़ा चलने फिरने में पूरे शरीर में गर्मी और जलन होने लगे इत्यादि। ये सभी पित्त प्रकोप के लक्षण हैं ऐसे लक्षण किसी विशिष्ट विष जैसे संक्रामक कीटाणु का शरीर में संचय होने पर ही प्रकट होते हैं। उपदंश, सुजाक, जैसे यौन रोगों को नष्ट करने में यह योग इसी खास कारण से सफल सिद्ध होता है। जलन युक्त रोग की चिकित्सा में इस फार्मूले का प्रयोग बहुत लाभकारी सिद्ध होता है। 

गंधक रसायन से  फोड़े फुंसियों का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें ।

त्वचा पर बारीक बारीक फुंसियाँ या फोड़े होना , सूखी तेज खुजली होना, मल साफ न होना, शरीर में ज्यादा खुजाने पर जलन होना या खून निकलने लगना आदि लक्षणों पर इस योग का प्रयोग हितकारी सिद्ध होता है। एसी स्थिति में इस योग का प्रयोग अवश्य करना चाहिये। त्वचा मे खुजली चलती है जिसका कारण एक विशिष्ठ प्रकार के कीटाणु का संक्रमण होना भी होता है। ये कीटाणु बहुत कष्टदायक और बलशाली होते हैं ये जब तक नष्ट न हो जाऐं तब तक खुजली समाप्त नही होती यह योग इन कीटाणुओं को समाप्त करने में पूर्णतया कारगर है और जब कीटाणु समाप्त हो जाते हैं तो खुजली भी समाप्त हो जाती है। 

पामा रोग में इस योग के प्रयोग से फोड़े बड़े हो जाते हैं जिससे यह भ्रम हो जाता है कि रोग घटने की बजाय बड़ रहा है जबकि बास्तव में एसा नही होता है बल्कि यह तो इस दवा के काम करने का प्रमाण है इस रोग से बर्षों से ग्रस्त और कष्ट भोगने वाले रोगियों पर इसका प्रयोग अनूभूत रहा है और उसने इस योग की प्रमाणिकता सिद्ध की है. रोग जितना पुराना हो यह योग उतना ही ज्यादा काम करता है।

पामा रोग की तरह ही अन्य त्वचा रोगों पर यहां तक कि क्षुद्र कुष्ठ पर भी यह योग बहुत अच्छा काम करता है इसे 1-2 रत्ती की मात्रा में लेना चाहिये। और जैसे जैसे रोग कम होता जाए वैसे बैसे इसकी मात्रा कम करते जाना चाहिये 2-3 सा ल तक लगातार सेवन करने से यह योग कुष्ठ जैसे भयानक रोग को भी ठीक कर देता है। 

गंजापन रोग का आयुर्वेदिक उपचार -----

सिर में फोड़े फुंसिया को खुजलाने पर जलन होना या इन्द्रलुप्त अर्थात गंजापन हो जाने पर यदि इसमें गंजेपन के साथ जलन भी हो तो यह योग इन दोनो समस्याओं में रामवाण की तरह काम करता है। एक रोग होता है पामा इस पामा रोग की कभी कभी चिकित्सा होने पर यह दव जाता है तब इसके कारण से कई  अन्य व्याधियाँ पैदा हो जाती हैं इसके अलाबा कई बार ये विकार भी किसी चिकित्सा से अच्छे हो जाते हैं और फिर कुछ समयोपरांत दोबारा विगड़ते सुधरते रहते हैं एसी समस्या में भी गंधक रसायन तुरंत लाभदायी होता है। 

उपदंश के विषेले प्रभावों का आयुर्वेदिक उपचार ---

उपदंश व अन्य विषाक्त दुस्प्रभावों की अवस्था में उत्पन्न प्लीहा वृद्धि और अग्निमाद्य के साथ यदि सर्वांग में दाह हो तो इस योग का उपयोग लाभप्रद होता है। उपदंश की जीर्णअवस्था में संधिशोथ, दांतों से खून गिरना, सारे शरीर में गांठे पड़ जाना रक्त वाहनियाँ मोटी हो जाना, खड़े रहने की शक्ति नष्ट हो जाना, हाथ पैर कांपना सारे शरीर खासकर छाती में दर्द की लहर उठना, छोटी छोटी फुंसियाँ होना, हृदय में पीड़ा होना इत्यादि व्याधिया पैदा होती हैं इन सभी रोगों को नष्ट करने में गंधक रसायन अति सफल सिद्ध औषधि है।

 इन सभी रोगों के अतिरिक्त नेत्रों के किनारे लाल होना, भीतर से गरम भाप निकलना, खुजली चलना, जलन होना, कीचड़ आना आदि व्याधियाँ यदि उपदंश के विष के काऱण हो रही हों तो गंधक रसायन 64 भावना युक्त का प्रयोग अति उत्तम है। यह इन सभी विकारों को पूर्णतः नष्ट करने में समर्थ है।

पायोरिया व मसूड़ों के रोग का आयुर्वेदिक उपचार ---

दंतवर्ण या पायोरिया में मसूड़ों में जलन, मसूड़ो में जरा सा दवाव पड़ते ही खून निकल आना, जलन के साथ दातों व मसूड़ों से पीव निकलना, अग्निमाद्य, छर्दि, शूल अतिसार यकृत आदि इंद्रियों का स्थूल हो जाने के कारण विकार युक्त हो जाना फिर उदर का दूषित होना, जिससे घवराहट होना, मूत्र की मात्रा कम हो जाना, मूश्र का रंग लाल हो जाना, पूरे शरीर में दाह होना, आदि लक्षणों पर यह योग लाभकरने में बेजोड़ सिद्ध होता है।

कोई स्पष्ठ कारण ज्ञात न हो और आदमी दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा हो, शरीर दुबला होता जा रहा हो, कितनी भी सूक्ष्म जांच करने पर भी रोग का सही कारण समझ न आ रहा हो पित्त प्रकोप, जलन होने की स्थिति हो तो इन सारी समस्याओं को दूर करने के लिए गंधक रसायन वेजोड़ औषधि है। 

गंधक रसायन सेवन के नुकसान और साबधानिया ----

इतना सब कुछ होते हुये भी आयुर्वेद में इस औषधि के प्रयोग से पूर्व रोग के उचित निदान और उचित युक्ति पूर्वक तथा उचित मात्रा में इस योग के प्रयोग पर विशेष ध्यान देना चाहिये क्योकि गलत ढंग से प्रयोग करने पर अच्छी औषधि भी हानि दे सकती है। पहली बात तो इस योग के प्रयोग से पूर्व ध्यान रखनी अति आवस्यक है कि गंधक रसायन को कम से कम मात्रा में लम्बे समय तक प्रयोग करना ही फायदे मंद रहता है दूसरी बात यह है कि इस योग के प्रयोग करते समय आंवले का मुरब्वा, गुलकन्द, पेठे की मिठाई का प्रयोग करते रहना चाहिये । इसकी केवल 1 रत्ती की मात्रा ही प्रतिदिन के प्रयोग में काफी है। और लाभ होने के उपरांत भी सप्ताह में सिर्फ एक पुड़िया त्वचा के साफ होने तक लेते रहना चाहिये ।

गंधक रसायन सेवन के समय पथ्य या डाइट ----

इस औषधि के सेवन करते समय शक्कर , गौघृत, केला, चावल, सेंधा नमक, पका मीठा आम, पुराना शहद, पानसुपारी, और दालचीनी का सेवन पथ्य है या कहें कि लाभकारी है। 

गंधक रसायन सेवन काल में अपथ्य या परहेज ----

इसके अतिरिक्त गंधक रसायन सेवन काल में नमक व खट्टे पदार्थों का सेवन, चाय, काफी, तेल, गुड़, धूम्रपान, स्त्रीसहवास, कसरत, धूप में काम करना, तापना इत्यादि काम ध्यान से नही ही करने चाहिये।

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