सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत्।।
आयुर्वेद जैसा कि इसके नाम से प्रतीत होता है कि आयु का वेद या लम्बी आयु की जानकारी अर्थात लम्बी आयु कैसे प्राप्त हो इस बात या स्वास्थ्य सुरक्षा की जानकारी प्रदान करने का शास्त्र है।यह विश्व की अब तक ज्ञात समस्त चिकित्सा शास्त्रों में से सर्वाधिक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है।सम्पूर्ण चिकित्सा प्रणालियाँ इसके बाद ही प्रकट हुयीं है।http://en.wikipedia.org/wiki/Ayurvedaप्राचीन इतिहास इसके प्रयोग अनुप्रयोगों से भरा पड़ा है।यह अनमोल शास्त्र प्रभु प्रदत्त है परन्तु इसे समाज को प्रदान करने का श्रेय भगवान धनवन्तरि को जाता है।भारत ही नही अपितु संसार के अन्य देशों में भी प्राचीन काल में यही चिकित्सा पद्धति थी इसके अनेकों प्रमाण इतिहास को देखने पर पहली ही नजर में मिल जाते हैं।श्री लंका नामक देश का नाम तो लगभग संसार का प्रत्येक व्यक्ति जानता होगा तो यह बताने की जरुरत शायद नही पड़ेगी कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को जब रावण पुत्र मेघनाथ ने शक्ति वाण मारकर इतना घायल कर दिया था कि उनका इलाज सम्भव नही था तब भी यही पद्धति लंका के वैधराज सुषेण के पास मौजूद थी जिसके बूते पर ही लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सके थे।
सब बाते करने के बाद अब बिषय पर आते हैं हम पहले भी कह चुके हे कि आयुर्वेद अर्थात स्वास्थ्य रक्षा का शास्त्र अतः आयुर्वेद को समझने से पहले स्वास्थ्य को समझना पड़ेगा।स्वास्थ्य है क्या स्वास्थ्य किसे कहते हैं जिसकी हमें रक्षा करने को कहा जा रहा है स्वास्थ्य अपने आप में बहुत अधिक सार लिए हुए है अग्रेजी भाषा में इसके लिए helth शब्द लिया गया है जो अपने आप में परिपूर्ण नही है।इसका वास्तविक अर्थ समझने के लिए हमें अग्रेंजी के अन्य शब्द disease का विश्लेशण करना होगा जो dis व ease से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होगा नही है जो ease या सामान्य अर्थात वैचेन या साफ शब्दों में कहैं कि जो अपने सामान्य स्वभाव के अनुरूप नही है जो अस्वाभाविक लक्षणों से ग्रसित है वह बीमार है।और इसके विपरीत जिस स्थिति में व्यक्ति चैन में है बेचैन न हो,मन व शरीर की स्थिति सन्तुलन में है असंतुलित नही है विश्राममय है स्वभाविक हे अस्वभाविक नही है वह स्थिति स्वास्थ्य कहलाती है। वैसे भी स्वास्थ्य से प्रतीत होता है कि स्व में अवस्थित होना अर्थात अपने स्वभाव के अनुरूप (जैसा हमें होना चाहिए) वैसे भाव में हमारा होना ही हमारा स्वास्थ्य होना कहलाता है।
जब हमारी मानसिक या शारीरिक स्थिति अस्वभाविक नही होती है तब हम बेचैन हो जाते हैं अर्थात बीमारी का प्रथम लक्षण बेचैन होना है। मन के विचार और शरीर के दोषों(वात, पित्त, व कफ) का असंतुलन शरीर में रोग पैदा करने का कारण होता है।
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