लेप्टोस्पाइरोसिस एक ऐसा रोग है जो बैक्टीरिया से फैलता है और सामान्य दिनो की अपेक्षा इस रोग के होने की संभावना बारिश के मौसम में सवसे ज्यादा होती है।तभी इसका सबसे ज्यादा संक्रमण फैलता है।यह रोग ऐसा है जो खुद ही कई और रोगों को पैदा करने का कारण भी हो सकता है।इस रोग का बैक्टीरिया मानव में सीधे ही प्रवेश न करके जीवों जैसे भैंस,घोड़ा,बकरी,कुत्ता आदि की सहायता से प्रवेश करता है और इस बैक्टीरिया का नाम है लैप्टोस्पाइरा यह बैक्टीरिया इन जानवरों के मूत्र विसर्जन से यह प्रकृति में आता है।यह नमी युक्त वातावरण में लम्बे समय तक जीवित रहता है।इस बीमारी का पता लगाना बहुत ही कठिन है। लेकिन मेडिकल साइंस ने इस
बीमारी की पहचान कर उपचार के तरीकों की खोज की है। अमूमन यह बीमारी जंगली
जानवरों में फैलती है। जंगली और पालतू जानवर जब दोनों सम्पर्क आते है तो
लेप्टोस्पाइरोसिस फैलने की संभावना बढ़ जाती है। यहां पर पालतू जानवर कहने
का मतलब गाय, भैंस, सुअर, घोड़ा,बकरी,कुत्ता आदि से है। पालतू जानवर जब चारा के लिए जंगल में
जाते हैं तो जंगली जानवरों के सम्पर्क आ जाते हैं। उसके बाद इन जानवरों के
सेवा करने वाले सेवक या मालिक को यह बीमारी अपने गिरफ्त में ले लेती है। वैसे
तो यह बीमारी ज्यादातर ऐसे इलाके में होती है जहां बाढ़ का प्रकोप
होता है। फिर भी बारिश के मौसम में आम लोगों को भी लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी
को लेकर सावधान रहना चाहिए।
लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी के लक्षण- आम लोगों के आंखों में लाली अधिक होना, सिर, कमर और पैर में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण है। इसके अलावे मेनजाइटिस, जौडिस, लीवर बढ़ना, पेशाब के रास्ते खून आना, किडनी को डैमज करता है।
बीमारी बचाव के उपचार- अगर यह लक्षण किसी भी व्यक्ति में मिलता है तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क कर इलाज शुरू करना चाहिए। अपने घर या मुहल्ले स्थित गौशाला के आस-पास साफ सफाई करना और बारिश के पानी में बच्चे-बूढ़े को स्नान करने से रोकना चाहिए।
चिकित्सक बताते इसका कारण व उपचार - पिलग्रीम अस्पताल के चिकित्सक डा. सुरेंद्र प्रसाद चौधरी का मानना है कि लेप्टोस्पाइरोसिस की बीमारी पालतू जानवर के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचता है। अभी वर्तमान समय में लेप्टोस्पाइरोसिस बीमार का कोई रोगी गया जिले में नहीं मिला है। उन्होंने आगे कहा कि लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी का इलाज है लेकिन समय रहते इसकी पहचान हो जाय। इसका डायगनोसिस करना ही मुश्किल है। फिलहाल लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी का उपचार यहां नहीं हो रहा है। लोग इस बीमारी से सावधान रहे। उन्होंने बताया कि लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी पूर्णत: जानलेवा है। जिस व्यक्ति को यह बीमारी हुई उसके बचने की कम संभावना होती है। इसके लिए जरूरत है लोगों को सावधान रहने, लक्षण पकड़ने और उसका तुरंत उपचार कराने की।
इस रोग से पिड़ित लोगों में ज्यादातर किसान,बाढ़ पीड़ित,सेना और सीवर कार्यों में लगे लोग होते हैं कारण यह है कि यह बैक्टीरियाँ प्रदूषित जल के सम्पर्क में आने बाले लोगों की आँख,त्वचा की श्लेष्मा अर्थात म्यूकस परत को संक्रमित करके संक्रमण फैला देता है।और शरीर में प्रवेश के बाद रक्त के माध्यम से सभी कोशिकाओं व अंगो में पहुँच जाता है औऱ सबसे ज्यादा यह किडनी को प्रभावित करता है।अगर शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है तो यह कोई घातक प्रभाव उत्पन्न नही कर पाता है और यह उत्सर्जन तंत्र के द्वारा शरीर से बाहर कर दिये जाते हैं किन्तु जहाँ प्रतिरोधक शक्ति कम हुयी कि लेप्टोस्पाइरोसिस नामक रोग ने अपना विस्तर फैलाय़ा औऱ इलाज न कराने पर य़ह पीलिया मेनेजाइटिस व किडनी की प्राव्लम पैदा कर सकता है।प्रतिरोधक शक्ति ठीक होने पर भी यह कोई नुकसान तो नही पहुँचा पाता किन्तु यह आँखों में बहुत लम्बी अबधि तक पड़े रह सकते
हैं।
प्रसार-अधिक वर्षा वाले ट्रापिकल और सब ट्रापिकल क्षेत्रों में यह बीमारी सबसे ज्यादा फैलती है।
दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों यथा भारत,इण्डोनेशिया,थाईलेंड,और श्री लंका में बरसात के दिनों में लेप्टोस्पाइरोसिस नामक बीमारी सवसे ज्यादा फैलती है।हमारे देश में बारिश व बाढ़ के कारण लोग इसके प्रकोप में आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) की रिपोर्ट के अनुसार हर एक लाख की आबादी में करीव 50 लोग इसके संक्रमण से ग्रसित हो जाते हैं।
घातकताः सही समय पर उपचार न मिलने पर इसके संक्रमण से नये रोग भी पैदा हो सकते हैं जिनमें प्रमुख रोग हैं
लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी के लक्षण- आम लोगों के आंखों में लाली अधिक होना, सिर, कमर और पैर में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण है। इसके अलावे मेनजाइटिस, जौडिस, लीवर बढ़ना, पेशाब के रास्ते खून आना, किडनी को डैमज करता है।
बीमारी बचाव के उपचार- अगर यह लक्षण किसी भी व्यक्ति में मिलता है तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क कर इलाज शुरू करना चाहिए। अपने घर या मुहल्ले स्थित गौशाला के आस-पास साफ सफाई करना और बारिश के पानी में बच्चे-बूढ़े को स्नान करने से रोकना चाहिए।
चिकित्सक बताते इसका कारण व उपचार - पिलग्रीम अस्पताल के चिकित्सक डा. सुरेंद्र प्रसाद चौधरी का मानना है कि लेप्टोस्पाइरोसिस की बीमारी पालतू जानवर के माध्यम से आम लोगों तक पहुंचता है। अभी वर्तमान समय में लेप्टोस्पाइरोसिस बीमार का कोई रोगी गया जिले में नहीं मिला है। उन्होंने आगे कहा कि लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी का इलाज है लेकिन समय रहते इसकी पहचान हो जाय। इसका डायगनोसिस करना ही मुश्किल है। फिलहाल लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी का उपचार यहां नहीं हो रहा है। लोग इस बीमारी से सावधान रहे। उन्होंने बताया कि लेप्टोस्पाइरोसिस बीमारी पूर्णत: जानलेवा है। जिस व्यक्ति को यह बीमारी हुई उसके बचने की कम संभावना होती है। इसके लिए जरूरत है लोगों को सावधान रहने, लक्षण पकड़ने और उसका तुरंत उपचार कराने की।
इस रोग से पिड़ित लोगों में ज्यादातर किसान,बाढ़ पीड़ित,सेना और सीवर कार्यों में लगे लोग होते हैं कारण यह है कि यह बैक्टीरियाँ प्रदूषित जल के सम्पर्क में आने बाले लोगों की आँख,त्वचा की श्लेष्मा अर्थात म्यूकस परत को संक्रमित करके संक्रमण फैला देता है।और शरीर में प्रवेश के बाद रक्त के माध्यम से सभी कोशिकाओं व अंगो में पहुँच जाता है औऱ सबसे ज्यादा यह किडनी को प्रभावित करता है।अगर शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत है तो यह कोई घातक प्रभाव उत्पन्न नही कर पाता है और यह उत्सर्जन तंत्र के द्वारा शरीर से बाहर कर दिये जाते हैं किन्तु जहाँ प्रतिरोधक शक्ति कम हुयी कि लेप्टोस्पाइरोसिस नामक रोग ने अपना विस्तर फैलाय़ा औऱ इलाज न कराने पर य़ह पीलिया मेनेजाइटिस व किडनी की प्राव्लम पैदा कर सकता है।प्रतिरोधक शक्ति ठीक होने पर भी यह कोई नुकसान तो नही पहुँचा पाता किन्तु यह आँखों में बहुत लम्बी अबधि तक पड़े रह सकते
हैं।
प्रसार-अधिक वर्षा वाले ट्रापिकल और सब ट्रापिकल क्षेत्रों में यह बीमारी सबसे ज्यादा फैलती है।
दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों यथा भारत,इण्डोनेशिया,थाईलेंड,और श्री लंका में बरसात के दिनों में लेप्टोस्पाइरोसिस नामक बीमारी सवसे ज्यादा फैलती है।हमारे देश में बारिश व बाढ़ के कारण लोग इसके प्रकोप में आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) की रिपोर्ट के अनुसार हर एक लाख की आबादी में करीव 50 लोग इसके संक्रमण से ग्रसित हो जाते हैं।
घातकताः सही समय पर उपचार न मिलने पर इसके संक्रमण से नये रोग भी पैदा हो सकते हैं जिनमें प्रमुख रोग हैं
- पीलिया
- मेनेजाइटिस
- किडनी की समस्याऐं
लेप्टोस्पाइरोसिस, लेप्टोस्पाइरा
के कई सेरोवर द्वारा होता है। यह विचारणीय चिकित्सा और आर्थिक महत्व के
साथ दुनिया भर में होने वाली और जूनोटिक बीमारी है। यह एक ऑक्यूपेशनल
बीमारी है और इसके कारण दृष्टि क्षति हो जाती है। लेप्टोस्पाइरोसिस के कई
लक्षण हैं, फ्लू, लीवर रोग, मस्तिष्क ज्वर, आदि। और आज भी बहुत से ऐसे
मामले हैं जिनका उचित प्रकार से उपचार नहीं किया जाता। अनुपयुक्त निदान का
एक मुख्य कारण डायनोग्सटिक किट और उन पद्धतियों की गैर-उपलब्धता है जो
लेप्टोस्पाइरा की उपस्थिति/अनुपस्थिति को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर
सकते हैं। लेप्टोस्पाइरोसिस के निदान हेतु माइक्रोस्कोपिक स्लाइड एगलू
टीनाशियन टेस्ट नामक एक कंवेंशनल परीक्षण किया जाता है, जो बहुत उपयोगी
नहीं होता। माइक्रोएग्लू टीनाशियन टेस्ट (एमएटी) और एंज़ाइम्स लिंक्ड
इम्यूनोसॉरबेंट असे (एलिसा) जांच को हाल ही में उपयोगी पाया गया, परंतु ये
जांच महंगी है, इसमें समय लगता है, इसका मानकीकरण कठिन है और इसके लिए
प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता होती है।
सेरो-डायग्नोसिस के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध किट्स या तो बहुत महंगी हैं या विश्वसनीय नहीं होती। एग्लूटीनाशियन ड्राई-डॉट टेस्ट किट, रोग-प्रतिकारक पहचान के लिए क्रॉस-रिएक्शन एंटीजंस का उपयोग करती है। यह आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडीज़ दोनों का पता लगाती है, इसीलिए तीक्ष्ण या पुराने संक्रमण के मध्य तुलना नहीं की जा सकती। आईजीएम एंटीबॉडी के लिए कई अन्य एलिसा किट्स को लगभग आधा दर्जन व्यापारिक कंपनियों द्वारा बाज़ार में पेश किया गया है। सभी किट्स आयतित हैं और इसीलिए बहुत महंगी भी हैं। इन सभी को जांच के लिए हार्वेस्टिड सेरम या प्लाज्मा की आवश्यकता होती है और जांच करने के लिए प्रयोगशाला उपकरणों या सहायक सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इनमें से कुछ भी क्षेत्र-आधारित नहीं है।
डीआरडीओ ने बेडसाइड जांच और शीघ्र निदान के लिए साधारण और सस्ती किट्स का निर्माण किया है। इन किट्स को एंटीबॉडी और एंटीजन पहचान के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। दोनों किट्स को डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा संतोषजनक परिणामों के साथ मूल्यांकित किया गया है। ये किट्स निम्न प्रकार हैं:
डीआरडीओ ने इन सीमाओं से उभरने के लिए, ब्लड और यूरिन के क्लिनिकल नमूनों से लेप्टोसिरा एंटीजन की पहचान करने हेतु एक नई किट का निर्माण किया है। यह किट बुखार वाले दिन ही बीमारी का पुष्ट रूप से निदान कर सकती है, जिससे विशिष्ट एंटीबॉयोटिक थेरपी प्रारंभ की जा सकती है। आईजीएम डॉट-एलिसा किट की तरह ही यह भी उपयोग करने में बहुत आसान, किफ़ायती और पूर्ण रूप से क्षेत्र-आधारित है।
सेरो-डायग्नोसिस के लिए व्यावसायिक रूप से उपलब्ध किट्स या तो बहुत महंगी हैं या विश्वसनीय नहीं होती। एग्लूटीनाशियन ड्राई-डॉट टेस्ट किट, रोग-प्रतिकारक पहचान के लिए क्रॉस-रिएक्शन एंटीजंस का उपयोग करती है। यह आईजीएम और आईजीजी एंटीबॉडीज़ दोनों का पता लगाती है, इसीलिए तीक्ष्ण या पुराने संक्रमण के मध्य तुलना नहीं की जा सकती। आईजीएम एंटीबॉडी के लिए कई अन्य एलिसा किट्स को लगभग आधा दर्जन व्यापारिक कंपनियों द्वारा बाज़ार में पेश किया गया है। सभी किट्स आयतित हैं और इसीलिए बहुत महंगी भी हैं। इन सभी को जांच के लिए हार्वेस्टिड सेरम या प्लाज्मा की आवश्यकता होती है और जांच करने के लिए प्रयोगशाला उपकरणों या सहायक सामग्रियों की आवश्यकता होती है। इनमें से कुछ भी क्षेत्र-आधारित नहीं है।
डीआरडीओ ने बेडसाइड जांच और शीघ्र निदान के लिए साधारण और सस्ती किट्स का निर्माण किया है। इन किट्स को एंटीबॉडी और एंटीजन पहचान के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। दोनों किट्स को डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) द्वारा संतोषजनक परिणामों के साथ मूल्यांकित किया गया है। ये किट्स निम्न प्रकार हैं:
आईजीएम एंटीबॉडी डिटेक्शन के लिए डॉट-एलिसा किट
यह किट सबसे श्रेष्ठ उपलब्ध आयतित किट के समान ही परिणाम देती है। इसे उपयोग करना बहुत ही आसान और बहुत ही किफ़ायती है। इसका मूल्यांकन राष्ट्रीय संचारी रोग संस्थान, दिल्ली, इंस्टिट्यूट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी, मद्रास मेडिकल कॉलेज, चेन्नई, और चिकित्सा केन्द्र, कोचीन पर किया गया। किट के घटकों में रेफ्रिजरेशन तापमान पर छह महीनों का स्टोरेज जीवन है। यह किट प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के लिए बहुतायत से उपयोगी है।मुख्य विशेषताएं
- यह किट पूर्णत: क्षेत्र-आधारित है, अर्थात् रोगियों को जांच हेतु लैब्रटॉरी या हास्पिटल में लाने की आवश्यकता नहीं होती।
- इस किट के साथ जांच का खर्चा आयतित किट के केवल दसवें हिस्से के बराबर होता है।
- एक घंटे के भीतर जांच का परिणाम आ जाता है। परिणाम का प्रस्तुतीकरण बहुत ही सरल होता है। इसमें प्रत्येक जांच के लिए अंतर्निहित रीएजेन्ट नियंत्रण उपलब्ध होता है।
- अंगुली से खून की एक बूंद लेकर सीधे ही काम किया जा सकता है।
- परिणामों को रिकॉर्ड्स के लिए सुरक्षित किया जा सकता है।
एंटीजन डिटेक्शन के लिए सैंडविच डॉट-एलिसा किट
क्लिनिकल नमूने से उत्पन्न लेप्टोस्पाइरा ऑर्गेनिज़्म का कल्चर निश्चित निदान प्रदान कर सकता है, निम्न गति की सहज सीमाओं और उस प्रोटीन-युक्त मीडिया की आवश्यकता को अपनाकर जो संदूषण के लिए उत्तरदायी होती है, इसका कोई व्यवहारिक मूल्य नहीं है। क्लिनिकल नमूने पर निदान की पुष्टि करने के लिए पीसीआर विकल्प का उपयोग किया जाता है। लेप्टोस्पाइरोसिस में क्लिनिकल नमूनों में पीसीआर के उपयोग को अभी हाल ही में रिपोर्ट किया गया, परंतु इसे नियमित रूप से उपयोग नहीं किया जाता। पीसीआर करने की लागत, विशेष लेब्रटॉरी (प्रयोगशाला) की आवश्यकता और सहज सीमाएं बहुत ही शीघ्रग्राही होती हैं, और इसी कारण निदान के लिए बहुतायत से उपयोग किए जाने वाले पीसीआर के साथ गलत सकारात्मक परिणाम का जोखिम एक मुख्य समस्या है।डीआरडीओ ने इन सीमाओं से उभरने के लिए, ब्लड और यूरिन के क्लिनिकल नमूनों से लेप्टोसिरा एंटीजन की पहचान करने हेतु एक नई किट का निर्माण किया है। यह किट बुखार वाले दिन ही बीमारी का पुष्ट रूप से निदान कर सकती है, जिससे विशिष्ट एंटीबॉयोटिक थेरपी प्रारंभ की जा सकती है। आईजीएम डॉट-एलिसा किट की तरह ही यह भी उपयोग करने में बहुत आसान, किफ़ायती और पूर्ण रूप से क्षेत्र-आधारित है।
मुख्य विशेषताएं
- इसकी सूक्ष्मग्राह्यता पीसीआर के बराबर है
- रोगी के स्थान पर दो घंटों के भीतर परिणाम देती है
- प्रत्येक जांच के लिए अंतर्निहित रीएजेन्ट नियंत्रण उपलब्ध होता है
- परिणाम का प्रस्तुतीकरण बहुत ही सरल होता है।
- अंगुली से खून की एक बूंद लेकर सीधे ही काम किया जा सकता है
- परिणामों को रिकॉर्ड्स के लिए सुरक्षित किया जा सकता है।
पूरे वातावरण में ही बैक्टीरिया है , पेट में है, जल में है, वायु में है .सभी जानवर और मनुष्यो के शरीर में है. , डाक्टरो का काम दवाई कम्पनियो की दवा बेचने वाले एजेंट की तरह है इसलिए सब फैलाते रहते है .यह खतरनाक , वो खतरनाक , से सब खतरनाक . दरअसल शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाइये तो रोग दूर ही रहेंगे . एलोपैथी प्रतिरोधक क्षमता का नाश कर देती है , तो लोग आसानी से अन्य रोगो के शिकार बनाने लगते है . यही सच है दवाई कम्पनियो के दलालो !
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