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सोमवार, 29 मई 2017

बच्चों की शादी करने से पहले कुण्डली मिलान एक अति आवश्यक व अति महत्वपूर्ण कार्य

कुण्डली मिलान विवाह से पहले क्यों जरुरी है?



हिन्दु संस्कृृति विश्व की महानतम सभ्यता व संस्कृति है जिसमें व्यक्ति के जीवन का वैज्ञानिक तरीके से अवलोकन कर जीवन जीना व जीवन के बाद में मोक्ष प्राप्त होना तक निहित किया गया है हमारे जीवन में हमारे जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कुल सोलह संस्कार हैं जिनसे होकर जो व्यक्ति ठीक ठीक प्रकार जीवन जीता है वह वास्तव में सुखानुभूति करता है। इन्ही सोलह संस्कारों में एक संस्कार है विवाह जिसका अनुकरण करके ही वास्तव में जीवन की शुरुआत होती है जब जीवन साथी जीवन में आ जाता है व्यक्ति अब युगल कहलाते हैं । यहीं से जीवन की वास्तविक शुरुआत होती है अतः यह ध्यान देने की बात है कि शुरुआत में बड़ा ही सोच समझकर कदम रखा जाऐ नही पूरा जीवन समस्याग्रस्त हो सकता है।
 इस सब में माता पिता का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता है क्योंकि बिना शादी किये लड़का या लड़की ज्यादातर परिपक्व नही होते हैं और बिना परिपक्वता के जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय लेना उनके शायद ही बस में होता है अतः इन निर्णयों में निश्चित ही माता पिता व घर के बड़ों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है।

              हमारे धार्मिक जीवन में विवाह एक सामान्य संस्था नही है अपितु बहुत ही महत्वपूर्ण संस्था है जिसका अस्तित्व केवल एक या दो साल के लिए नही अपितु संपूर्ण जीवन के लिए होता है । अतः जरुरी है कि हर प्रकार से हर रास्ते से इस रिस्ते पर ध्यान देने के बाद ही इस संबंध को जारी किया जाऐ ।ज्योतिष व्यक्ति के जीवन का आइना दिखाता है क्योंकि व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके जन्म समय पर बैठे ग्रहों की चाल पर आधारित होता है अतः जरुरी है कि इस महत्वपूर्ण विषय का निर्णय करते समय ज्योतिष का सहयोग लिया जाऐ और अपने जीवन के सपनों को साकार किया जाऐ। ज्योतिष आपके लिए उचित ही नही सर्वाधिक उपयुक्त जीवन साथी की तलाश कर सकता है। लैकिन जरुरी है कि आप कुण्डलियों का मिलान ज्योतिष के नियमों के आधार पर सही ज्योतिषी से कराये।जो विना किसी लोभ लालच के आपका सहयोग करे।ये न हो कि पैसे के लालच में आपके गलत निर्णय पर ही हामी भर दे। ज्यादातर एसा होता है कि पंडित जी के पास जाकर व्यक्ति उन्हैं कहता है पंडित जी हमने लड़की या लड़का देख लिया है बहुत अच्छा घर है परिवार है घर का उसका मकान है उसकी जॉव भी बहुत अच्छी है बस आप शादी बना दें पंडित जी भी देखते हैं कि मेरा क्या जाता है अगर मना करुंगा तो यह व्यक्ति कहीं और चला जाऐगा और मेरे जो शादी आदि में रुपये बनने हैं वे भी नही मिल पाऐंगे अतः कुण्डली न मिलने पर भी पंडित जी हाँ कर देते हैं लैकिन ऐसे में किसी अन्य का नही अपितु अपने बच्चों का जीवन ही अंधकार से भर जाता है।बच्चों के युवा होते ही माता-पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगती है। विवाह का विचार मन में आते ही जो सबसे बड़ी चिंता माता-पिता के समक्ष होती है वह है अपने पुत्र या पुत्री के लिए योग्य जीवनसाथी की तलाश। इस तलाश के पूरी होते ही एक दूसरी चिंता सामने आ खड़ी होती है, वह है भावी दंपत्ति की कुंडलियों का मिलान जिसे ज्योतिष की भाषा में कुण्डली मिलाना कहा जाता है। प्राचीन समय में कुंडली-मिलान अत्यावश्यक माना जाता था।

वर्तमान सूचना और प्रौद्यागिकी के दौर में कुण्डली मिलान केवल एक रस्म अदायगी बनकर रह गया है। ज्योतिष शास्त्र ने कुण्डली मिलान  में अलग-अलग आधार पर गुणों की कुल संख्या 36 निर्धारित की है जिसमें 18 या उससे अधिक गुणों का मिलान विवाह के लिए अति आवश्यक होता है।
लेकिन केवल गुणों की संख्या के आधार पर दाम्पत्य सुख निश्चय कर लेना उचित नहीं है। अधिकतर देखने में आया है कि 18 से ज्यादा गुणों के मिल जाने के उपरान्त भी दंपत्तियों के मध्य दाम्पत्य सुख का अभाव पाया गया है। इसका मुख्य कारण है कुण्डली मिलान  को मात्र गुण आधारित प्रक्रिया समझना जैसे .यह कोई परीक्षा हो। जिसमें न्यूनतम अंक पाने पर विद्यार्थी उत्तीर्ण नही तो 1-2 अंक कम आने से अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया जाता है। ज्योतिष इतना सरल व संक्षिप्त विषय नहीं है।
गुण आधारित कुण्डली मिलान की यह विधि पूर्णतया ठीक नहीं माना जा सकता  है। या यह कह सकते हैं कि कुण्डली मिलान से विवाह पूर्णतः समस्या मुक्त हो गया है यह नही कहा जा सकता है हाँ यह अवस्य़ है कि यह कुण्डली मिलान की पहली सीढ़ी पार कर गया है ।
 विवाह में कुंडलियों का मिलान करते समय गुणों के अतिरिक्त अन्य महत्वपूर्ण बातों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। भले ही गुण निर्धारित संख्या की अपेक्षा कम मिलें हो परन्तु दाम्पत्य सुख के अन्य कारकों से यदि दाम्पत्य सुख की सुनिश्चितता होती है तो विवाह करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। आइए जानते हैं कि कुण्डली मिलान  करते या करवाते समय गुणों के अतिरिक्त किन विशेष बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
विवाह का उद्देश्य गृहस्थ आश्रम में पदार्पण के साथ ही वंश वृद्धि और उत्तम दाम्पत्य सुख प्राप्त करना होता है। प्रेम व सामंजस्य से परिपूर्ण परिवार ही इस संसार में स्वर्ग के समान होता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति की संभावनाओं के ज्ञान के लिए मनुष्य के जन्मांग चक्र में कुछ महत्वपूर्ण कारक होते हैं।
ये कारक हैं-सप्तम भाव एवं सप्तमेश, द्वादश भाव एवं द्वादशेश, द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश, पंचम भाव एवं पंचमेश, अष्टम भाव एवं अष्टमेश के अतिरिक्त दाम्पत्य का नैसर्गिक कारक ग्रह शुक्र (पुरुषों के लिए) व गुरु (स्त्रियों के लिए)।

सप्तम भाव एवं सप्तमेश-----

दाम्पत्य सुख प्राप्ति के लिए सप्तम भाव का विशेष महत्व होता है। सप्तम भाव ही साझेदारी का भी होता है। विवाह में साझेदारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अतः सप्तम भाव पर कोई पाप ग्रह का प्रभाव नहीं होना चाहिए। सप्तम भाव के अधिपति का सप्तमेश कहा जाता है। सप्तम भाव की तरह ही सप्तमेश पर कोई पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए और ना ही सप्तमेश किसी अशुभ भाव में स्थित होना चाहिए।

द्वादश भाव एवं द्वादशेश------

सप्तम भाव के ही सदृश द्वादश भाव भी दाम्पत्य सुख के लिए अहम माना गया है। द्वादश भाव को शैय्या सुख का अर्थात्‌ यौन सुख प्राप्ति का भाव माना गया है। अतः द्वादश भाव एवं इसके अधिपति द्वादशेश पर किसी भी प्रकार के पाप ग्रहों का प्रभाव दाम्पत्य सुख की हानि कर सकता है।

द्वितीय भाव एवं द्वितीयेश-----

विवाह का अर्थ है एक नवीन परिवार की शुरूआत। द्वितीय भाव को धन एवं कुटुम्ब भाव कहते हैं। द्वितीय भाव से पारिवारिक सुख का पता चलता है। अतः द्वितीय भाव एवं द्वितीय भाव के स्वामी पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति को पारिवारिक सुख से वंचित करता है।

पंचम भाव एवं पंचमेश------

शास्त्रानुसार जब मनुष्य जन्म लेता है तब जन्म लेने के साथ ही वह ऋणी हो जाता है। इन्हीं जन्मजात ऋणों में से एक है पितृ ऋण। जिससे संतानोपत्ति के द्वारा मुक्त हुआ जाता है। पंचम भाव से संतान सुख का ज्ञान होता है।
 पंचम भाव एवं इसके अधिपति पंचमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति को संतान सुख से वंचित करता है।

अष्टम भाव एवं अष्टमेश------

विवाहोपरान्त विधुर या वैधव्य भोग किसी आपदा के सदृश है। अतः भावी दम्पत्ति की आयु का भलीभांति परीक्षण आवश्यक है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश से आयु का विचार किया जाता है। अष्टम भाव एवं अष्टमेश पर किसी पाप ग्रह का प्रभाव दंपत्ति की आयु क्षीण करता है।
इन कारकों के अतिरिक्त दाम्पत्य सुख से नैसर्गिक कारकों जो वर की कुण्डली में शुक्र एवं कन्या की कुण्डली में गुरु होता है, पर पाप प्रभाव नहीं होना चाहिए। यदि वर अथवा कन्या की कुण्डली में दाम्पत्य सुख के नैसर्गिक कारक शुक्र व गुरु पाप प्रभाव से पीड़ित हैं या अशुभ भावों स्थित है तो दाम्पत्य सुख की हानि कर सकते हैं।

विंशोत्तरी दशा भी है महत्वपूर्ण----


उपरोक्त महत्वपूर्ण कारकों अतिरिक्त वर अथवा कन्या की महादशा एवं अंतर्दशाओं की भी कुण्डली मिलान में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है जिसकी अक्सर ज्योतिषी उपेक्षा कर देते हैं। हमारे अनुसार वर अथवा कन्या दोनों ही पर पाप व अनिष्ट ग्रहों की महादशा/अंतर्दशा का एक ही समय में आना भी दाम्पत्य सुख के लिए हानिकारक है। अतः उपरोक्त कारकों के मिलान एवं परीक्षण के उपरान्त महादशा व अंतर्दशाओं का परीक्षण परिणाम में सटीकता लाता है।

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