बबासीर भगन्दर व कांच निकलने के रोगों के कारण
जब हम सूर्योदय के बाद तक सोये रहते हैं तब हम शौच भी विलम्ब से करने जाते है और देखा गया है कि ऐसे लोग ज्यादातर देर तक शौच के लिए बैठे रहते हैं क्योकि उनका कोष्ठ शुद्ध सामान्य रुप से नही हो पाता उन्हैं ज्यादातर कब्ज हो जाता है। इसका कारण यह है कि जब हम सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं तो शौंच को जल्दी जाते हैं और मल जल्दी शरीर से बाहर हो जाता है जबकि देर से उठने के कारण यह मल शरीर के अन्दर ही रहता है। हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर अन्दर से उष्ण रहता ही है और रात में सोने के कारण शरीर के अन्दर बनी ऊष्णता सूर्योदय के कारण वातावरण में बढ़ने वाली गर्मी के प्रभाव से और ज्यादा बढ़ जाती है जिससे मल सूख कर कठोर हो जाता है। इस कारण से मल विसर्जन (पाखाना, पॉटी या लैट्रिन) होने में विलम्ब भी होता है और कष्ट भी होता है। यह हमारे स्वयं के द्वारा अर्जित कब्ज है जो हमारे गलत विहार अर्थात रहन सहन के कारण से निर्मित होती है। इसका संबंध हमारे आहार से नही अपितु हमारे विहार या रहन सहन से है।
बबासीर (Piles in hindi) होने की स्थिति तभी बनती है जबकि शौच के लिए बैठने पर हमारा मल सूखा और कठोर होने के कारण निकलता नही है और जब यह निकलता नही है तो हम जोर लगाकर इसे निकालने का प्रयास करते हैं। रोजाना इसी प्रकार से प्रयास करने से हमारे मलाशय की पेशियाँ, शुक्राशय और हमारा उपस्थ (लिंग) या योनि क्षेत्र में दबाब पड़ता है। इससे मल निकासी के स्थान अर्थात हमारे गुदाद्वार पर स्थित मस्से फूलने लगते हैं । इसे ही बबासीर होना कहते हैं, बबासीर शब्द बबासूर का बहुबचन है जिसका अर्थ होता है अर्श, कठोर और सूखा हुआ मल जब जोर देकर निकाला जाता है तब गुदा द्वार के पास की मांसपैशियो पर दबाब पड़ता है और रगड़ लग जाती है तब गुदा के पास अन्दर की तरफ एक चीर सी बन जाती है जिसे फिशर या फिस्युरा या भगन्दर कहते हैं। शौंच करते समय जब गुदा द्वार से मल निकलता है तब यह मल इस चिरे हुये स्थान पर लगता है तब जलन होती है। क्योकि आहार में मिर्च मसालेदार व नमकीन व्यंजन जैसे दालें, सब्जी इत्यादि होती हैं उनका अंश मल में रहता ही है और यदि ये मिर्च मसाले ज्यादा प्रयोग किये जाते हैं तो इनका अंश भी मल में ज्यादा रहता है। जिससे जलन और बढ़ जाती है। यह सब कब्ज होने और मल विसर्जन के समय जोर लगाने का ही परिणाम होता है। कभी कभी मांसपेशियाँ दबाब सहते सहते इतनी कमजोर हो जाती हैं कि गुदा बाहर निकल आती है इसे कांच निकलना कहते हैं। यह रोग वैसे ज्यादातर बच्चों को होती है।
बबासीर भगन्दर और कांच निकलने के रोगों से बचने के लिए क्या करें
अगर हम स्वस्थ और शरीर को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो सूर्योदय होने से पहले ही मल विसर्जन, दंतमंजन और स्नान ये तीनों काम सम्पन्न कर लेना बहुत जरुरी होता है। सूर्योदय से पहले इन कामों को निपटा लेने से शरीर की गर्मी शांत हो जाती है चहेरा खिला खिला रहता है । आंखे तेजस्वी बनी रहती हैं। और इन सबके अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हम इन तीन कामों को सूर्योदय से पहले कर लेते हैं तो हमे बाकी रोजमर्रा के कार्य करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। वरना सुबह 8-9 बजे तक जगमे वाले लोगों के सभी काम देरी से होते हैं। जिसमें काफी समय बेकार चला जाता है। इसका अर्थ यह है कि 6-9 बजे जगने वाले 3-4 घंटे तो वैसे ही लेट उठते ही है फिर नित्यकर्मों से निवृत होने में कम से कम 1 घंटा और लग जाता है। सुबह जल्दी उठकर उषा पान करके तुरंत शौंच और स्नान कर लेने से शरीर दिन भर चुस्त दुरुस्त रहता है। स्वपनदोष होने की स्थिति में सुबह जल्दी उठकर और नित्य कर्मो को निपटा कर इस नामुराद रोग से बचा जा सकता है। क्योंकि स्वप्नदोष ज्यादातर पिछली रात के वक्त होते है और इस समय जागकर आप इस समस्या से बच सकते हैं।
जो लोग सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले जागकर अपने नित्यकर्मों से निवृत हो जाते है उन्हैं भूख भी जल्दी लगने लगती है। और जब व्यक्ति सुबह जल्दी खाना खा लेता है तो शाम को भी उसे जल्दी भूख लगती है । और जब वह शाम को जल्दी खाना खा लेता है तो उसके सोने के समय तक उसका भोजन पच जाता है और उसको कब्ज जैसी समस्याओं से धीमें धीमे निजात मिल जाती है जो व्यक्ति के शरीर में रोग का मुख्य कारण है।
सेहत के लिए फायदेमंद है यह औषधियुक्त दूध
सोते समय सौंठ अंजीर डालकर उबाले गये दूध में केसर बादम व शुद्घ घी मिलाकर पीयें। यह बहुत लाभकारी है क्योंकि शाम का भोजन पच चुका होता है। और दूध पीने के बाद पेट में कुछ नही जाता अतः इस दूध का पाचन ठीक प्रकार से होता है। दूध में डाले गये अंजीर बादाम इत्यादि पोष्टिक होते हैं अतः यह हजम हो जाने पर शरीर को पुष्ट व बलबान बनाते हैं। अब देखे कि आपकी सुबह की शुरुआत ठीक होने के कारण आपकी दिन व रात की दिनचर्या कैसे बढ़िया हो गयी। लेकिन एसा तभी हो सकता है जब हम अपने वुद्धि व विवेक से काम लें। लैकिन इस काम में बस आपको मनमानी को रोकना होगा।
सुबह को समय से न जागने के परिणाम स्वरुप आपको रात में नींद भी ठीक से नही आती है। और आपको रात में बार बार करवटे बदलनी पड़ती हैं रात में नींद न आने के कारण यह आदत लगातार की बन जाती है क्योंकि आप हमेशा ही लेट जागते हैं इसलिए आपकी दिनचर्या व्यस्त हो जाती है और सभी काम देरी से होते हैं रात को 6-7 घंटे की नींद सामान्य मनुष्य के लिए छोटे बच्चों को छोड़कर पर्याप्त होती है इससे अधिक सोना आलसीपन है। और सूर्योदय के बाद तक सोना हमेशा ही गलत है। यह आपके शरीर के लिए भी गलत है और स्वास्थ्य के लिए तो आप पढ़ ही चुके हैं।
सूर्योदय के बाद तक सोने के दुश्परिणाम में
कब्ज होना,
पेट साफ न होना,
गैस बढ़ जाना,
खुलकर भूख न लगना,
पेट फूलना,
सिर में भारीपन रहना या दर्द रहना,
शरीर में सुस्ती बनी रहना,
शरीर की शिथिलता,
यौन शक्ति में कमी,
स्वप्नदोष होना,
चहरे पर फुंसी व मुहांसे होना,
आंखे तीखी होना,
चेहरा मुरझाया रहना,
आदि अनेक सामान्य व्याधियाँ व्यक्ति को घेर लेती हैं जिनके परिणामस्वरुप व्यक्ति की दिनचर्या बहुत गड़बड़ा जाती है। वह पूरे दिन थका थका सा रहता है। इन्ही सभी दुश्परिणामों से यदि बचना चाहते हैं तो सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर 2-3 किलोमीटर टहलने जाना चाहिये। इस तरह दिन की शुरुआत अगर भली होगी तो सब कुछ भला ही होगा। और जब काम की शुरुआत अच्छी होगी तो काम तो पूरा फतह हो ही जाएगा। हमारे यहाँ यह कहाबत मशहूर है किजो जागत है सो पावत है।
अतः हमें समय से जागकर अपने सभी कार्य करने चाहिये।
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