अमलतास (गोल्डन शावर) का पेड़ , फायदे, और घरेलू औषधीय प्रयोग Amaltas (Golden Shower) tree, benefits and Home Remedies
अमलतास के विभिन्न भाषाओं में नाम
अमलतास के विभिन्न भाषाओं में नाम
अमलतास जिसे English में इसे golden shower, Purging Cassia, Indian laburnum, pudding-pipe tree आदि विभिन्न नामों से जाना जाता है, ये सभी नाम इसके पीले सुन्दर पुष्पगुच्छों के कारण रखे गये हैं यह एक शोभाकारी वृक्ष है जो सड़कों के किनारे तथा बगीचों की शोभा बढ़ाता है।
अमलतास को संस्कृत भाषा में इसके व्याधि या रोग हरण करने वाले गुणों के कारण व्याधिघात, राजाओं के बगीचों में लगाये जाने के कारण नृप्रद्रुम व राजवृक्ष, आरग्वध, कान के कुण्डलों के आकार का होने के कारण कर्णिकार के नाम से जाना जाता है। मराठी भाषा में इसे बहावा और कर्णिकार गुजराती में गरमाष्ठो, बाँग्ला भाषा में सोनालू तथा लैटिन में कैसिया फ़िस्चुला के नाम से जाना जाता हैं। यूनानी और फारसी ग्रंथों में इसे ख्य़ीरशम्बर के नाम से जाना जाता है। शब्दसागर नामक महान ग्रंथ के अनुसार हिंदी शब्द ‘अमलतास’ का उदभव संस्कृत भाषा के शब्द अम्ल (खट्टा) से हुआ है।
औषधि परिचय अमलतास का पौधा
इसके वृक्ष भारत में प्राय: सभी प्रांतो में पाये जाते हैं। इसके पेड़ की ऊँचाई 25-30 फुट तथा तने की परिधि तीन से पाँच कदम तक होती है, लेकिन ज्यादातर पौधे बहुत ऊँचे नही जाते हैं।
बसंत के शुरु से अप्रैल, मई माह में पूरा पेड़ चमकीले पीले पुष्पों के लंबे लंबे गुच्छों से भर जाता है। जो
किसी सुंदरी के कान के कुण्डल के आकार में दिखाई देते हैं। इसके पुष्पों के साथ एक किवदंती जुड़ी हुयी है जिसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि अमलतास के फूल खिलने के बाद ४५ दिन में बारिश होती है। और इसके पीले फूलों तथा बर्षा लेकर आने के कारण गोल्डन शॉवर ट्री, और इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री भी कहा जाता हैं।
फूलों के झड़ने पर इस पौधे पर कठोर, बेलनाकार हरे रंग की फलियाँ लगती हैं जो शीतकाल आते आते काली पड़ने लगती हैं ये 1 से 2 फुट तक लम्बी हो सकती हैं। इन फलियों के भीतर कई कक्ष या कोटर होते हैं जिनमें काला, लसलसा सा पदार्थ तथा इसके बीज भरे रहते हैं। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। इसकी फलियों में मधुर, गंधयुक्त, पीला और काले रंग की आभा युक्त उड़नशील तेल पाया जाता है। इसकी छाल चमड़े को रंगने के काम में आती है जिसे ‘सुमारी’ के नाम से जाना जाता है।
अमलतास के आयुर्वेदिक औषधीय गुण ---
आयुर्वेद में इस वृक्ष के सब भाग औषधि के काम में आते हैं। कहा गया है, इसके पत्ते मल को ढीला और कफ को दूर करते हैं। फूल कफ और पित्त को नष्ट करते हैं। फली और उसमें का गूदा पित्तनिवारक, कफनाशक, विरेचक तथा वातनाशक हैं फली के गूदे का आमाशय के ऊपर मृदु प्रभाव ही होता है, इसलिए दुर्बल मनुष्यों तथा गर्भवती स्त्रियों को भी विरेचक औषधि के रूप में यह दिया जा सकता है।
अमलतास की तासीर और गुण धर्म
अमलतास पचने में भारी, चिकना, स्वाद में मीठा और ठंडी तासीर वाली आयुर्वेदिक औषधि है। जो वात एवं पित्त विकारों का नाश करती है तथा कब्जियत को दूर करती है, शरीर की सूजन, दर्द, त्वचा विकार व हृदय रोगों में लाभदायक है तथा मूत्र विकार नाशक , बुखार कम करने वाली, आमवात,संधिवात (गठिया), मुंह के रोग, पीलिया तथा श्वांस रोगों में उपयोगी होता है।
अमलतास बीमारियों से रखें दूर, फूल, पत्ते, तना हर भाग है खास विविध रोगों में अमलतास का प्रयोग
आमवात, संधिवात, गांठयुक्त सूजन, घाव युक्त फोड़े पर अमलतास का प्रयोग
अमलतास की भीतरी गिरी व पत्तों का पेस्ट बनाकर लेप करनें से आमवात, संधिवात, गांठयुक्त सूजन, घाव युक्त फोड़े आदि में बहुत लाभ होता है।
मुंह व गले के रोगों में अमलतास का प्रयोग
40 ग्राम अमलतास लेकर चार गुने जल में मिलाकर मंदाग्नि पर पकाऐं और चौथाई भाग बचने पर छान लें और इसके कुल्ले करें। इससे मुंह व गले के रोग दूर हो जाते हैं।
दमा और खांसी में अमलतास
दमा और खांसी के मरीज अमलतास का आटा बना कर छानने के बाद चौथाई भाग शक्कर मिलाकर थोड़े से पानी मे पकाए और गांढ़ा हो जाने पर बर्तन को नीचे उतार लें इसको एक चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन पीने से दमा व खांसी में राहत मिलती है।
कब्ज या कोष्ठबद्धता में अमलतास का प्रयोग
बहुत दिनों की कब्ज या कोष्ठबद्धता में अमलतास के रात के समय फल का गूदा 10 ग्राम लेकर एक गिलास जल में भिगो दें। सुबह हाथ से मसलकर छान कर पीऐं तो कोष्ठबद्धता दूर होकर मलशुद्दि हो जाती है।
कफ व वायुदोष से आने वाले बुखार में अमलतास का प्रयोग
कफ और वायुदोष के कारण होने वाले बुखार में शरीर में दर्द रहता है। ऐसे में अमलतास, कुटकी, मोथा, हरड़, और पीपलामूल, सभी समभाग लेकर काढ़ा बनाकर पिलाऐं।
शरीर की जलन को दूर करने में अमलतास
अमलतास के फल की गिरी शरीर में जलन होने अर्थात पित्त की अधिकता में अंगूर के काढ़े के साथ मिलाकर पिलाने से शीघ्र लाभ करती है।बबासीर में अमलतास का
प्रयोग
बबासीर रोगी को अमलतास के फल की गिरी का काढ़ा बनाकर उसमें जैतून का तेल मिलाकर दें इससे कब्ज दूर होती है और जब कब्ज मिटती है तो बबासीर भी धीरे धीरे समाप्त होने लगती है। यह काढ़ा पेट में कीड़े होने पर भी पर्याप्त फायदेमंद है।
बच्चों की कब्ज व साथ में गैस की बजह से पेटदर्द में अमलतास का प्रयोग
बच्चों की कब्ज व साथ में गैस की बजह से पेटदर्द हो तो इसकी गिरी व ऐलुआ को साथ में पीस कर नाभि पर लगाऐं। तुरंत लाभकारी है।
कुष्ठ रोग में अमलतास का प्रयोग
अमलतास की जड़ से सिद्ध घी खदिर के क्वाथ के अनुपान के साथ देने पर कुष्ठ रोग की प्रारंभिक अवस्था में रोकथाम के लिए जरुरी व असरकारी है।
- Useful in joint pain, Migraine, Fever, Wounds, Ulcers, Various skin diseases.
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