संस्कृत में पाताल गारुणी नाम वाली यह बूटी
छिरेंहटा,छिलहिण्ड,सोमवल्ली, सौपर्णी, दीर्घबल्ली, आदि के नाम से भी जानी जाती
है।इसके औषधीय गुण “छिलिहिण्डः परंवृष्य कफघ्नः पवनाह्वयः” अर्थात
अतयन्त वृष्य (वीर्यवर्धक), कफनाशक, तथा वातनाशक होने के कारण आयुर्वेद में इसका
अत्यन्त अनुकूल गुण प्रभाव माना गया है।राजनिघण्टु व भाव प्रकाश निघण्टु के
अनुसार यह वीर्यवर्धक,मधुर,
पित्तनाशक,रुचिकारक,पित्तदोष,दाह तथा रक्तविकार और विषाद की विनाशक औषधि
है।क्योंकि यह प्रमुख रुप से वात- कफ नाशक है अतः अनेक प्रकार के वात विकारों मे
प्रयोग की जाती है।
पाताल गारुणी चूंकि एक विषेश प्रकार की वेल
है,जिसके पत्ते कुछ कुछ शीशम के जैसे होते हैं।नागिन के समान बलखाती हुयी सोमवल्ली
या छिरेंहटा की बेल अनेकों उपवनों बाग व बगीचों में पायी जाती है।
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अब इसका आयुर्वेद औषधि प्रयोग भी जान लें।
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छिरेंहटा के सूखे पत्ते 200 ग्राम तथा गाय
के घी के साथ भुनी हुयी छोटी हरड़ 50 ग्राम पीस छान कर लें तथा दोनों को मिलाकर
उनके वजन के बराबर मिश्री मिलालें और शीशी में भर कर रख लें।
मात्रा – 10 से 15 ग्राम इस औषधि को सुबह शाम
गौदुग्ध के साथ सेवन करने से कठिन से कठिन स्वपन दोष भी ठीक होता है साथ ही शुक्र
की उष्णता भी मन्द हो जाती है इसके कारण स्थाई लाभ प्राप्त होता है।
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छिरेंटी या पातालगारुणी की लता के सूखे
पत्ते 50 ग्राम, हरड़ बहेड़ा और आवला 20-20 ग्राम बबूल का गोंद 25 ग्राम और गोंद
कतीरा 10 ग्राम लेकर कूट पीस कर छान कर फिर छिरेंटी के स्वरस में ही खरल कर लें
तथा इस चूर्ण को शीशी में भरकर रख लें
मात्रा- 5 से 6 ग्राम तक की मात्रा ताजा स्वच्छ
जल के साथ लेकर आप स्वप्न दोष के साथ ही शुक्रतारल्य व अन्य प्रमेह के उपसर्गों
में बहुत लाभप्रद है।
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छिरेंहटी का शुष्क
पंचाग(जड़,तना,पत्ती,फल,फूल) 50 ग्राम,सूखी हुयी दूव घास या दूर्वा (काली घास) 25
ग्राम, छोटी इलायची के बीज और गोंद कतीरा दोनों 12-12 ग्राम एवं मिश्री 100 ग्राम
लेकर सबको कूट पीस कर मिला लें तथा शीशी में सुरक्षित कर लें।
मात्रा- इस औषधि को 10-12 ग्राम प्रातःसायं गाय
के गर्म दूध के साथ सेवन करने से प्रमेहजन्य सभी उपसर्ग दूर हो जाते
हैं।शुक्रतारल्य,शीघ्रपतन ,स्वपनदोष,आदि जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
इसके अलाबा रक्ताल्पता के साथ ही यह
श्वेत प्रदर को भी तत्काल फायदा पहुँचाता है।अतः इसे हम यौवन वर्धक फार्मूला भी कह सकते हैं यह नर तथा
मादा दोनो को लाभकारी है।
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यौवन दाता ठण्डाईः छिरेंहटी के लगभग 10-12
ग्राम पत्ते और 5-6 काली मिर्च, बादाम की मिंगी 8-10 और सौंफ थोड़ी सी लेकर सिल पर
ठण्डाई के समान घोटपीस लें और कुछ दिनों तक पीयें कुछ दिनो नित्य प्रति पीने से यह
पेय शरीर की उष्णता को तो नष्ट करेगा ही इसके अलाबा दाह,तृष्णा,घबराहट आदि को भी
दूर करेगा और सबसे बड़ा फायदा है इसका कि यह शुक्र का शोधन कर सब प्रकार के प्रमेह
रोगों और उनके कारणों का निवारण करता है।शीघ्रपतन,शुक्रतारल्य,स्वप्न दोष जैसे
उपसर्गों को भी यह शीघ्र ही दूर कर देता है।
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छिरेंहटी का स्वरस और गिलोय का स्वरस समान
मात्रा में लेकर उसके साथ शहद मिलाकर सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह दूर होते
हैं शीघ्रपतन, स्वप्न दोष,इन्द्रिय उत्थान में कमी आदि सभी विकार नष्ट हो जाते
हैं।
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छिरेंटी को आवले के रस में खरल करके बराबर
मात्रा में मिश्री मिलाकर 15 से 20 ग्राम प्रति दिन कुछ दिनो तक लेने से स्वप्नदोष
व शीघ्रपतन मिट जाते हैं।
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पातालगारुणी या छिरेंटी व आवलें का योग
दोनों को बराबर मात्रा में लेकर उसमें दो
भावनाऐं छिरेंटी के रस की तथा एक भावना आवला के रस की देकर यह औषधि केवल 1 ग्राम
की मात्रा में ही लेने से स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
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पाताल गारुणी पंचाग को छाया में सुखाकर
उसके चूर्ण को गोंद कतीरा के पानी से एक भावना देकर 500 मिलीग्राम की गोलियाँ
बनाकर छाया में सुखाकर वैद्य रख लेंवें इस गोली को 1 या 2 गोली ताजा पानी के साथ
सुबह शाम लेने से पित्तज प्रकार का स्वप्न दोष के साथ ही प्यास आदि के विकार के
साथ ही प्रमेह भी दूर होता है।
सटीक-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ।।