नारी के
सामान्य स्वास्थ्य को इस समय कैंसर जैसे घातक रोगों ने बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। शोधों से प्राप्त आँकड़ों के आधार
पर विश्व के कुछ देशों में 60 प्रतिशत महिलाऐं अपनी अधेड़ावस्था के बाद किसी न
किसी अंग में कैंसर से ग्रस्त हो जाती हैं।जिनमें से 40 प्रतिशत मामले अकेले स्तन
कैंसर के ही होते हैं।अमेरिकी मेडीकल एसोसियेशन की स्वास्थ्य पत्रिका के अनुसार
मोटापे को इसका कारण माना गया है।शोध दल के प्रमुख डायन ब्राइन के अनुसार महिलाओं
को 18 वर्ष की आयु से लेकर अपनी रजोनिवृति के काल तक अपने वजन को 5-10 पौण्ड से
ज्यादा वजन नही बढ़ने देना चाहिये।अन्यथा वढ़ा हुआ वजन स्तन कैंसर की संभावना को
दुगना कर सकता है।हार्वर्ड विश्व विद्यालय के स्कूल आफ पव्लिक हैल्थ में शोधरत
चीनी मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक फिपिंग हुआंग ने भी इसी तरह की संभावना वयक्त की हैं और कहा है कि मोटापे
के कारण शरीर की स्वभाविक प्रक्रिया में अवरोध पैदा हो जाता है जो कैंसर के रुप
में प्रकट हो जाता है।
हार्वर्ड स्कूल में
1000 महिलाओं पर किये गये शोध के अनुसार आधी से ज्यादा स्त्रियाँ मोटी थी जवकि शेष
स्त्रियाँ कमजोर (कृशकाय) थीं।भारी वजन वाली महिलाऔं में 40 प्रतिशत महिलाऐं ऐसीं
थी जो अपनी रजोनिवृति काल के बाद जिनका वजन के एकदम बढ़ गया था ऐसी महिलाओं में
स्तन कैंसर के 70 प्रतिशत मामले पाये गये थे।जवकि कृश काया वाली महिलाओं में केवल
5 प्रतिशत महिलाऐं ही कैंसर से ग्रसित थी वे भी स्तन कैंसर न होकर अन्य अंगों में
कैंसर ग्रस्त थीं।
इससे पहले वैज्ञानिक यह तर्क देते थे कि रजोनिवृति से
पहले होने वाले कैंसर को मोटापा रोक देने में सहायक है और उनका इस तर्क की प्रवलता
में दिया गया प्रमाण यह हुआ करता था कि मोटापे के कारण महिलाओं में डिम्भ कम बनते
हैं जिसके कारण ऐस्ट्रोजन नामक हार्मोंन भी कम ही स्रावित होता है और यही हार्मोन
ही कैंसर का कारक है।इसके अल्प मात्रा मे
स्रावित होने के कारण कैंसर की आशंका भी कम ही रहती है।
वर्तमान अध्ययन से पूर्व तथ्य की पुष्टि तो हुयी ही है किन्तु नई शोध से
मोनोपोज के बाद की स्थिति से संबंधित निष्कर्ष भी महत्वपूर्ण है वैज्ञानिको के
अनुसार मासिक धर्म रुक जाने के उपरान्त प्रोढ़ावस्था में जब गर्भाशय का मुँह बन्द
हो जाता है तब शरीर का मोटापा एस्ट्रोजन का मुख्य स्रोत बन जाता है ऐसे में
एस्ट्रोजन अत्यधिक मात्रा में बनने लगता है जो खतरनाक है इस स्थिति से बचने के दो
उपाय हैं या तो शरीर का वजन नियंत्रित किया जाए अथवा बढ़े हुये मोटापे से बनने
बाले एस्ट्रोजन को दवाओं से नियंत्रित किया जाए जवकि आप भी समझ ही रहे होंगे कि
पहली क्रिया ज्यादा फायदे मंद होगी वनिस्पत इसके कि एस्ट्रोजन पर वेतुकी दवाइया
खाकर नियंत्रण किया जाए।
अनेक वर्षों से शोधरत वैज्ञानिक पॉल वाचटेल (लिवरपूल
यूनिवर्सिटी) ने इस सोच को भ्रामक बताया कि कुवाँरी लड़कियों में अथवा उन महिलाऔं
में शादी के उपरान्त निःसंतान रही हैं में कैंसर की संभावना ज्यादा होती है
उन्हौने 400 एसी स्त्रियों पर शोध किया जो या तो अविवाहित थी या फिर निःसंतान थीं
पाया कि इनमें से केवल 10 प्रतिशत में ही कैंसर के लक्षण पाये गये और वह भी स्तन
की जगह अन्य अंगों में ।इन 10 प्रतिशत नारियों में से केवल 15 प्रतिशत नारियों में
स्तनों में गाँठें पायी गयीं जिनमें से केवल 6 प्रतिशत मामले ही कैंसर जन्य थे।शेष
सभी स्वस्थ व सामान्य थीं।
उपरोक्त धारणा के संबंध में शरीरविज्ञानी यह स्वीकारते
हैं कि गर्भावस्था में नारी देह में कुछ विशेष प्रकार के रसायन पैदा होते हैं जो
जच्चा व बच्चा दोनों को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं। लैकिन इसका यह मतलव
कतई नही है कि संतानोत्पत्ति मात्र से किसी को कैंसर कबच प्राप्त हो जाता है।
वास्तविकता तो यह है कि हर शरीर को प्रकृति की ओर से एसी व्यवस्था प्रदान की है कि
वह उसे निरोग बनाए रख सके । रोग का अर्थ है शरीर में अव्यवस्था का होना। जब शारीरिक
प्रक्रिया को किसी प्रकार से बाधित किया जाता है अथवा उसका स्वभाविक क्रम किसी
प्रकार से या किसी कारणवश अस्तव्यस्त कर दिया जाता है तब रोग की उत्पत्ति होती है।
आजकल की जीवन शैली इस प्रकार की अव्यवस्था को जन्म देने वाली हो गयी है और इसी कारण से अनेक रोग भी समाज को ग्रसित किये हुये हैं। प्रकृति के समीप रहने बाले लोगों का जीवन क्रम भी स्वभाविक प्राकृतिक ही होता है अतः इस प्रकार की जीवन शैली में रोगों के लिए कम ही स्थान रहता है और अधिक तर वे लोग व्याधिरहित जीवन यापन करते हैं ।प्राचीन मानव जीवन शैली पर ध्यान डालने से पता चलता है कि वे लोग प्रकृति से अपेक्षाकृत जुड़े हुये थे और अनेकों सांस्कृतिक गतिविधियों व उत्सवों के द्वारा प्रकृति की रोग प्रतिरोधक सुरक्षाचक्र को सुदृण करते रहते थे और रोग रहित जीवन जीते थे। जवकि आजकल की दौड़धूप भरी व रासायनिक व कृत्रिम जीवन शैली ने जीवन को रोगों का घर बना दिया है ।
आजकल की जीवन शैली इस प्रकार की अव्यवस्था को जन्म देने वाली हो गयी है और इसी कारण से अनेक रोग भी समाज को ग्रसित किये हुये हैं। प्रकृति के समीप रहने बाले लोगों का जीवन क्रम भी स्वभाविक प्राकृतिक ही होता है अतः इस प्रकार की जीवन शैली में रोगों के लिए कम ही स्थान रहता है और अधिक तर वे लोग व्याधिरहित जीवन यापन करते हैं ।प्राचीन मानव जीवन शैली पर ध्यान डालने से पता चलता है कि वे लोग प्रकृति से अपेक्षाकृत जुड़े हुये थे और अनेकों सांस्कृतिक गतिविधियों व उत्सवों के द्वारा प्रकृति की रोग प्रतिरोधक सुरक्षाचक्र को सुदृण करते रहते थे और रोग रहित जीवन जीते थे। जवकि आजकल की दौड़धूप भरी व रासायनिक व कृत्रिम जीवन शैली ने जीवन को रोगों का घर बना दिया है ।
कैंसर की यह स्थिति भी इसी जीवन शैली का ही परिणाम है
इसका कारण भी शरीर की स्वभाविक लयात्मकता को छेड़ना ही है जिसके परिणाम स्वरुप
किसी अवयव का कोशिका विभाजन अचानक पड़ोसी ऊतकों के कोशिका विभाजन से तीव्र हो उठता
है यही कैंसर है यों तो अभी तक कैंसर के वास्तविक कारणों की स्थिति अभी भी साफ नही
है फिर भी रोगियों के अध्ययन के उपरान्त यह निष्कर्ष निकलता है कि औद्योगिकीकरण के
दूषित वातावरण में रहना,संश्लेषित कृत्रिम आहार लेने,व बदलती जीवनशैली ही इस रोग
का कारण है। इन सब के कारण से शरीर में कुछ एसी अस्वभाविक प्रक्रियाँऐ होती है जो
इस रोग का कारण बनती हैं।
अतः निष्कर्ष के रुप मे यह कहा जा सकता है कि बनाबटी
जीवन शैली प्रकृति विरुद्ध है। इसे छोड़ो और प्रकृति के सुरक्षा चक्र में आ जाइये
अधिकाधिक प्राकृतिक आहार लीजिये व प्राकृतिक पहनावा व प्राकृतिक जीवन जिये प्रकृति
के निकट रहैं जिससे शारीरिक व शरीरगत
प्रक्रियाऐं संतुलित व नियंत्रित बनी रहैं।अगर शरीर सही है तभी आप सुखी जीवन का
आनन्द लेने के बारे में विचार कर सकते हैं। प्राकृतिक जीवन शैली को अपना कर आप
स्तन कैंसर ही नही अपितु सभी प्रकार के कैंसरों से ही नही अपितु सभी रोगों से बचे
रह सकते हैं।
आधुनिक जीवन शैली ही रोगों को जन्म देने
बाली रोग जननी है ।
अतः प्राकृतिक जीवन शैली अपनाओ रोगों को दूर भगाऔ।
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