घृत मणि Peridot:-
इस मणि को संस्कृत में
गरुण मणि, हिन्दी भाषा में करकौतुक या कर्केतन फारसी में जबरजद्द तथा
अंग्रेंजी में कहते हैं।
घृतमणि या गरुण मणि एक विशेष प्रकार का पत्थर या स्टोन है जो हरे, पीले, लाल, सफेद,काले, व शहद मिश्रित रंग का सा होता है जिसके ऊपर पिस्ते के समान छींटे होते हैं।
1)- मिथुन राशि में सूर्य या चन्द्रमा होने पर घृतमणि को चाँदी की अँगूठी
में लगवा कर हस्त नक्षत्र में सूर्य यंत्र से अभिमंत्रित करके बायें हाथ की अनामिका
अँगुली में धारण किया जाता है।
2)- कन्या राशि पर सूर्य चन्द्र अथवा बुध होने पर घृतमणि को सोने की
अँगूठी में जड़वाकर दांये हाथ की कनिष्ठिका अँगुली में धारण किया जाता है।
धारण करने से प्रभाव-
घृतमणि (पेरीडाट) या गरुणमणि को कनिका
अँगुली में धारण करने से धन, सन्तान,स्नेह की वृद्धि,होती है इस मणि को छोटे
बच्चों को पहिनाने पर बुरी नजर का दोष, मिर्गी रोग आदि का भय नही रहता है।
सदा निर्दोष मणि ही धारण करनी चाहिये।
तैल मणि :-
हिन्दी में इस मणि को उदउक, उदोक व अंग्रेजी भाषा में tourmaline
कहते हैं।
यह मणि लाल रंग की आभा लिये हुये सफेद, पीली, व कृष्ण वर्ण का होता है
तथा और जब इसे छुआ जाता है तो तेल जैसा चिकना लगता है। सफेद तैलमणि को आग में
डालने पर यह पीले रंग का तथा कपड़े में लपेटकर रखने पर तीसरे दिन पीले रंग का हो
जाता है किन्तु खुले स्थान में रखने पर पुनः यह असली पहले जैसा सफेद रंग का हो
जाता है।
प्रयोग – मेष राशि पर सूर्य होने पर रोहिणी नक्षत्र या पूर्णमासी के दिन
जिस दिन मंगल बार हो उस दिन तैलमणि को जिस खेत में 4-5 हाथ गहरा गढ्ढा खोदकर गाड़
दिया जाय व मिट्टी से ढककर सीँच दिया जाए तब सामान्य से बहुत अधिक अन्न उपजता है।
इसके अलाबा इस
मणि को अँगूठी में जड़वाकर धारण करने पर वुद्धि व बल की वृद्धि होती है। इसके
प्रभाव से शरीर से दुर्गन्ध नष्ट हो जाती है. इस मणि को अवश्य ही निर्दोष ग्रहण
करनी चाहिये अन्यथा हानि हो सकती है।
भीष्मक मणि :- यह मणि अपने रंग भेद के अनुसार दो प्रकार की
होती है।
1-
मोहिनी भीष्मक मणि- यह अमृत मणि के नाम से भी जानी जाती है। जो
सरसों,तोरई, या गुलदाउदी के पुष्प या फिर कले के विल्कुल ही नये पत्ते (कोपल) के
समान पीले रंग की होती है जो हीरे के समान चमकती है।
प्रयोग विधिः--- मोहिनी भीष्मक मणि को सूर्य के आद्रा नक्षत्र मे होने
तथा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, अथवा कुम्भ राशि का चन्द्रमा होने पर मोहिनी भीष्मक मणि को रूई में लपेटकर पूर्व
दिशा में पानी में डुबाकर रख देते हैं। इसके बाद वृषभ,कर्क, कन्या,वृश्चिक,अथवा
मकर राशि पर चन्द्रमा के आने पर मणि को पश्चिम दिशा में रखकर विधिपूर्वक पूजन करने
पर अच्छी वर्षा होती है।
मणि के पूजन
के बाद 5 दिन के अन्दर अच्छी वर्षा होने पर फसल अच्छी होती है। 10 दिन के भीतर अगर
वर्षा हो तो अन्न का भाव सस्ता रहता है 5 या 10 दिन तक लगातार वर्षा होने पर अन्न
का भाव मँहगा होता है 20 दिन तक लगातार वर्षा होने से अकाल पड़ता है 25 दिन तक
लगातार वारिश हो तो मानव समाज पर कोई भयंकर आपदा आने वाली है यह समझना चाहिये।
धारण करने का प्रभाव---- इस मणि को धारण करने से धन-
धान्य,ऐश्वर्य,स्वास्थ्य,व परिवारिक तथा दाम्पत्य सुख में वृद्धि होती है व इसके
अलावा शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
2-
कामदेव भीष्मक मणि – यह काले रंग की, शहद के समान या फिर दही व फिटकरी के
मिश्रण के समान रग की होती है जो स्निग्ध, स्वच्छ,तथा सुन्दर रंग व काँति वाली
होती है।
धारण करने का प्रभाव- कामदेव भीष्मक मणि के धारण करने से शत्रु पर विजय
प्राप्त होती है इसके अलावा सभी मनोरथ
पूर्ण होते हैं तथा यह मणि धारण करने पर हृदय रोग, गरमी व अन्य व्याधियों को दूर
करती है।
उपलक मणि:---- अंग्रेजी में ओपल के
नाम से जानी जाने वाली मणि हिन्दी में उपलक या फिर रत्नोपल या उपल के नाम से जानी
जाती है।
यह मणि शहद के समान व विभिन्न रंगों में पायी जाती है
इसके ऊपर पीत, नीले,सफेद और हरे रंग के बिंदु के जैसे दाग पाये जाते हैं।इसे तेल,
जल या दूध में डाल दिया जाए तो चमक अधिक
होती है।
धारण करने का प्रभाव ---- इस मणि को धारण करने से
भक्ति भाव, वैराग्य तथा आत्मोन्नति की प्राप्ति होकर अनेकों मनोकामनाऐं पूर्ण होती
हैं।
स्फटिक मणि :- अंग्रेजी भाषा में
क्वार्टज के नाम से जाना जाने वाला स्फटिक हिन्दी में विल्लौर के नाम से भी जाना जाता है ।
स्फटिक वास्तव भारत के हिममण्डित शिखिरों पर जमी
करोड़ो वर्ष पुरानी वर्फ है जो युगों से
दवी ही रह गयी है और पत्थर के रूप में बन गयी है इसीलिए इसकी तासीर
आयुर्वेद के अनुसार ठण्डी होती है। यह विद्या की देवी माँ सरस्वती के हाथों में जो
माला है कहा जाता है वह इसी मणि की बनी है। अतः यह ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का
रत्न भी कहा जाता है ।
धारण करने का प्रभाव- जैसा कि मैने पहले ही बताया है
कि यह ज्ञान की देवी की मणि मानी जाती है अतः उसी अनुसार इस मणि की अँगूठी धारण
करने से सुख, सम्पत्ति,धैर्य, धन सम्पति, रूप, बल,वीर्य, यश, तेज व बुद्धि की प्राप्ति होती है ।
इस
मणि की माला पर किये गये जाप तुरंत सिद्धि प्राप्त कराने वाले होते हैं।
पारसमणि :-----
संस्कृत
में पारस मणि को स्पर्श मणि के नाम से जाना जाता है जबकि हिन्दी में इसे पारस
पत्थर और अंग्रेजी में फिलास्फर्स स्टोन के नाम से बोला जाता है। यह शायद किताबों
में ही पढ़ने को मिलता है किन्तु कहा जाता है कि नेपाल स्थित भगवान पाशुपति नाथ के
मंदिर में स्थित शिवलिंग पारस पत्थर का ही है। और प्रतिवर्ष वहाँ साल में एक बार
फाल्गुन मास में शिवरात्रि के दिन शिवलिंग से पूजा अर्चना के बाद नियत मात्रा में
लोहे का स्पर्श कराया जाता है तब यह लोहा सोना बन जाता है फिर इस सोने को हिन्दू
तीर्थस्थानों पर पूर्व निर्धारित मात्रा में भेज दिया जाता है।
बताया जाता है कि पारस पत्थर काले रंग का सुगन्ध युक्त
पत्थर होता है। लैकिन अब यह कितावों में कथाऔं मे ही ज्यादा दिखाई देता है।
उलूक मणि :------
यह
भी एक ऐसी मणि है जो आजकल अप्राप्य है किन्तु कहा जाता है कि यह मणि उल्लू पक्षी
के घौंसले से प्राप्त होती है लैकिन वास्तव में यह मणि आजकल दिखाई नही देती ।
कहा जाता है कि इस मणि का प्रभाव एसा होता था कि किसी
अंधे व्यक्ति को घोर अंधकार में ले जाकर दीपक जलाकर उसकी आँख से इस मणि को छुला
देने से उसे दिखाई देने लगता था।
लाजवर्त मणि :------
लाजवर्द
या लाजवर्त के नाम से हिन्दी में जाने जाने वाली यह मणि कहीं कहीं राजावर्त के नाम
से भी जानी जाती है इसे अंग्रेजी में लैपिस् लैजूली(Lapis
Lazuli) के नाम से भी जाना जाता है।
लाजवर्त मणि मौर की गर्दन के समान नीले श्याम रंग के
स्वर्णिम छींटों से युक्त होता होती है।
धारण करने का प्रभाव----- इस मणि को मंगल वार Tuesday के दिन धारण करने से बल बुद्धि व विद्या की
वृद्धि होती है। इसके अलावा इस मणि को धारण करने से भूत ,प्रेत, पिशाच, दैत्य, सर्प
आदि का डर नही रहता है।
मासर
मणि :------ यह अंग्रेजी भाषा में Emeny के नाम से जाने जाने वाली मणि है। जो हकीक के समान होती है इसका
रंग सफेद,लाल, पीला, व काला होता है।यह कमल के पुष्प के समान चमकदार तथा स्निग्ध(
तैल जैसा चिकना) होता है।
रंग
व गुणों के अनुसार मासर मणि दो प्रकार की होती है।
1.
अग्नि मासर मणि------ यदि अग्नि मासर मणि पर लपेटकर धागा आग में
डाल दिया जाऐ तो धागा नही जलता है।
2.
जलवर्ण मासर मणि---------- जल वर्ण वाली मासर मणि को जल व दूध मिले
दूध में डाल दिया जाऐ तो दूध अलग व आनी अलग
हो जाते हैं।
प्रभाव---- अग्निवर्ण मासर मणि को धारण करने से व्यक्ति आग में नही
जलता है जल वर्ण मासर मणि को धारण करने से व्यक्ति पानी में नही ड़ूवता है तथा भूत
प्रेत चोर डाकू आदि का भय नही रहता है।
--------------- मोहरें ----------------
प्राचीन कथाऔं में कई बार
मोहरों का वर्णन मिलता है आखिर ये मोंहरे हैं क्या –
मोंहरों की उत्पत्ति
समुद्र,नदियों से तथा विशेष वृक्ष की लकड़ी द्वारा बताई गयी है।ये एक प्रकार के
चमकदार पत्थर हीं होते हैं इन्हैं धारण करने पर भी अनेकों प्रकार के रोगों
व्याधियों का तथा विषों का विनाश होता है।ये बल, बुद्धि वर्धक तथा कई प्रकार के रोगों का विनाश करने वाले बताऐ जाते हैं
क्योंकि ये केवल कथाऔं की चीजें है आजकल के समय में किसी के पास होने का कोई
प्रमाण नही है अतः इनके बारे में कथाओं से ही जानकारी प्राप्त होती है कहा जाता है
कि मोहरें शत्रु पर विजय दिलाने वाली तथा मनोकामना को पूर्ण करने वाली भी होती थी।
इन मौहरों को इन पर प्राप्त चिन्हों के आधार पर ही अलग अलग पहिचाना जाता था।इनका
अपने चिन्हों के आधार पर नामकरण निम्न है।
1.
सूर्यमुखी मोहर
2. चन्द्रमुखी मोहर
3. मंगलमुखी मोहर
4. शिव सुलेमानी मोहर
5. गौरीशंकर मोहर
6. मोहनी मोहर
7. अलेमानी मोहर
8. सुलेमानी मोहर
9. लहरी मोहर
10. सर्व मोहर
11. रतजरी मोहर
12. नक्षत्री मोहर
13. विग्रही मोहर
14. खलास कष्टीकर मोहर
15. फोदेजहर मोहरा
16. नजर मोहरा
17. जगजीत मोहरा
18. हल्दिया मोहरा
19. सिंधी मोहरा
20. सूठिया मोहरा
21. मारू मोहरा
22. जलतारन मोहरा
23. अग्निशोषण मोहरा
24. त्रिवेणी मोहरा
25. मोर मोहरा
26. बच्छनागी मोहरा
27. संखिया मोहरा
28. जहरमोहरा
2. चन्द्रमुखी मोहर
3. मंगलमुखी मोहर
4. शिव सुलेमानी मोहर
5. गौरीशंकर मोहर
6. मोहनी मोहर
7. अलेमानी मोहर
8. सुलेमानी मोहर
9. लहरी मोहर
10. सर्व मोहर
11. रतजरी मोहर
12. नक्षत्री मोहर
13. विग्रही मोहर
14. खलास कष्टीकर मोहर
15. फोदेजहर मोहरा
16. नजर मोहरा
17. जगजीत मोहरा
18. हल्दिया मोहरा
19. सिंधी मोहरा
20. सूठिया मोहरा
21. मारू मोहरा
22. जलतारन मोहरा
23. अग्निशोषण मोहरा
24. त्रिवेणी मोहरा
25. मोर मोहरा
26. बच्छनागी मोहरा
27. संखिया मोहरा
28. जहरमोहरा
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