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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

आयुर्वेद में दाँतों का रोग-पायरिया एवं उसका उपचार Pioria- A aweful teath disease

अगर आप अपने शरीर को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो आपको देश काल को देखते हुए अपने आहार विहार व आचरण को नियमवद्ध करना होगा।आयुर्वेद में इसे ही दिनचर्या,रात्रिचर्या व ऋतचर्या कहा गया है।सुबह जल्दी उठना और उठते ही रात का ताँवे के वर्तन में रखा जल पीना,जल पीकर थौड़ी देर टहलना और प्रेसर बनते ही फ्रेस होने जाना फ्रेस होने के बाद दाँत साफ करना तथा मुँह धोना अत्यधिक जरुरी प्रक्रिया है इसे ही दिनचर्या कहा गया है।
आजकल लोगों ने अपनी दिनचर्या को अस्तव्यस्त करके नये नये रोग पाले हुए हैं अगर दिनचर्या रात्रिचर्या व ऋतुचर्या सही रखी जाए तो रोगों से बचा जा सकता है। ऐसा ही एक रोग है पायरिया जो सुवह समय पर फ्रेस न होने दाँत व जीभ साफ न करने पर मुँह के अन्दर लगी गंदगी के कारण वदवू पैदा हो जाती है जो बाद में मसूड़े सुजा कर पायरिया बन जाती है।आज पायोरिया इतना व्यापक रोग हो गया है कि अमीर गरीव छोटे वड़े वच्चे सब इससे ग्रस्त हैँ।कुछ लोगो के अनुसार यह आधुनिक सभ्यता की देन है यह बात भी कुछ हद तक सही है किन्तु कोई भी सभ्यता रोग पैदा करना नही सिखाती है बस इतना जरुर है कि वह सभ्यता अपने जन्म स्थान पर वहाँ की जलवायु के हिसाव से उपयुक्त हो सकती है किन्तु उसी सभ्यता को दूसरे स्थान के लोग अपनाने लगें तो यही रोग का कारण भी बन सकती है पाश्चात्य देश ठण्डे होने के कारण वहाँ की दिनचर्या अलग होगी हमारा देश गर्म जलवायु का देश है अतः यहाँ की परिस्थितियों के अनुसार यहाँ की दिन चर्या अलग होगी।
खैर पायरिया रोग ऐसा नही है कि आज ही पैदा हुआ है यह रोग प्राचीन समय से चला आ रहा है।बस अब इसका नाम पायोरिया है जब इसे दन्तवेष्ठ(दाँतो की बदबू),शीताद(मसूड़ो में ठण्डा पानी लगना) उपकुश(गर्म पानी लगना)आदि।सुश्रुत संहिता के अनुसार मसूड़ो व दाँतों की जड़ में होने वाले रोग 15 हैं।जिनमें शीताद,दन्तपुस्टक,उपकुश मुख्य रोग हैं।

पायोरिया के लक्षण-

पायोरिया अंग्रेजी शब्द है पायोरिया में दाँतों की जड़ से पीप निकलना मुँह से बदबू आना है इस रोग मे दाँतो की जड़े कमजोर होकर खराब हो जाती है मसूड़ों से रक्त व पीप निकलता है रक्त व कफ के दूषित हो जाने से सांस में बदबू व दाँत हिलने लगते हैं मसूड़ों से विना कारण ही खून निकलता है दाँतो पर काली काली परत जम जाती है तथा मसूड़े गल कर दर्द पैदा हो जाता है तथा जड़े खोखली हो जाती है एवं दाँत निकल जाते हैं या निकालने पड़ते हैं।और जब दाँत नही रहते तो भोजन ठीक प्रकार से चवाया नही जा सकता फलस्वरुप भोजन मे न तो ठीक से लार मिल पाती है और जव लार ठीक से नही मिल पाती तो भोजन ठीक से पच नही पाता है।तथा दाँतो से निकलने बाला पीप पाचन संस्थान में पहुँचने के कारण पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है। जिससे भोजन मे अरुचि,मंदाग्नि,आत्रशोथ आदि अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।यही दाँतों का पीप यदि श्वांस के साथ फेफड़ों मे जाने पर न्यूमोनिया होने की स्थिति वन जाती है।वहीं संक्रमित पीप का स्राव रस रक्त( blood) या धातु में मिलने से क्षय रोग अथवा टी.वी. होने की संभावना वढ़ जाती है।
पायरिया के कुछ प्रमुख लक्षण निम्न हैं।
(1)- मसूड़ों के किनारों पर सूजन।
(2)- मसूड़ो पर लालिमा होना ।
(3)- सांस मे बदबू आना ।
(4)- स्वाद बदल जाना।
(5)- रक्त या खून के साथ पीप(मवाद) का मसूड़ों से निकलना ।
(6)-दाँतों की जड़ व जवड़ों के बाहरी भाग में सूजन फलस्वरुप नाक के आसपास व आँखों के पास भी सूजन हो जाना।
पायरिया होने के वाद शरीर में जो नये विकार पैदा होते है वे निम्न हैम।
भोजन ठीक से पच नही पाता अतः न पचने के कारण रस रक्त न बनने से रक्ताल्पता (एनीमिया) आत्रशोथ,भूख न लगना व समय पर उपचार न मिलने पर टी. वी. व कैन्सर जैसे खतरनाक रोग भी हो सकते है।

उपचार-

किसी भी रोग के उपचार का सबसे अच्छा उपचार है कि उन कारणों को त्याग देना है जिनसे कोई रोग पैदा हुआ है। अतः सबसे पहले अपनी दिनचर्या ठीक की जाऐ।
सोने या उठने के बाद सुवह को मुखशुद्धि करने के बाद दातुन करना चाहिए।उसके वाद ही चाय आदि का सेवन करना चाहिए।
  1. रोग की शुरुआत में नीम ववूल की दातोन करनी चाहिए जहाँ दातोन न मिले वहाँ मेरे ब्लाग पर लिखा पिछली पोस्ट (दाँत मजवूत करने का विल्कुल घरेलू उपचार देखेंhttp://ayurvedlight.blogspot.in/2012/09/blog-post_6827.html) और
  2. दाँतुन के बाद तिल या सरसों का तेल सेंधा नमक मिलाकर लगाना चाहिए।
  3. अखरोट के फल का छिलका या जड़ का चूर्ण वनाकर उसे दाँतों से मलना भी बहुत लाभ पहुँचाता है।
  4. सूजन व लालिमा युक्त मसूड़ों पर जात्यादि तेल या इरमेदादि तेल अंगुली से रोजाना मलना चाहिए।
  5. खाने के बाद फिटकरी के पानी से कुल्ले करे।
  6. संक्रमण होने पर पोटेशियम परमेगनेट एंव फिटकरी के पानी का घोल से भोजन के बाद कुल्ले करना चाहिए।
  7. बड़,गूलर,एवं मौलश्री की छालों का काढ़ा बनाकर गुनगुना-2 लेकर सुबह व शाय को गरारा व कुल्ला करें।
  8. तेज टूथब्रुश का प्रयोग आपके दाँतों को नुकसान पहुँचा सकता है।
  9. कचनार की छाल, बबूल छाल नीम पत्ती व मेहंदी के पत्ते समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर गरारे करना भी अत्यधिक लाभकारी है।
  10. पेट मे कव्ज न रहै इसके लिए (कब्ज हटाने का एक और उपाय पढ़ें) http://ayurvedlight.blogspot.in/2012/09/blog-post_1338.html
  11. आरोग्य वर्धनी वटी 2 गोली, कैशोर गुग्गुल 2 गोली दिन में दो बार मंजिष्ठादिक्वाथ से सेवन करें।
    या
  12. स्वर्णमाक्षिक भस्म 250 मिलीग्राम , प्रवाल भस्म 250 मिलीग्राम, कामदुधा रस 250 मिलीग्राम दिन में 3 बार शहद के साथ लें।
  13. भोजन के बाद मंजिष्ठादि क्वाथ या मंजिष्ठाद्यासव 4 ढक्कन लें।

यह औषधियाँ क्योंकि आयुर्वेदिक हैं अतः कम से कम 40 दिन नियमित रुप से सेवन करें।रोग के पूर्ण निवारण के लिए चिकत्सक से सलाह लें।







 

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