Hepatitis- which is called in Ayurveda Yakrit Saoth
हैपेटाइटिस आधुनिक रहन सहन तथा खान पान में आधुनिकता के नाम पर दूषित व मादक द्रव्यों का प्रयोग आयुर्वेद जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ कि यह जीवन का विज्ञान है।अतः यह हर रोग पर व्यापक दृष्टि रखते हुए रोग मुक्ति प्रदान करने वाली पद्धति है।रहन सहन तथा खान पान में आधुनिकता के नाम पर दूषित व मादक द्रव्यों का प्रयोग आजकल बढ़ता ही जा रहा है।फलस्वरुप रोग भी अपना मुँह खोले मानव पर आकृमण करने को तत्पर रहते हैं।पुराने समय में उल्टा सीधा खान पान केवल राजा,रजवाड़ो,अमीर खानदानों में हुआ करता था अतः हैपेटाइटिस Hepatitisजैसे रोगों की परिस्थितियाँ भी उन्हीं लोगों में पनपतीं थीँ।आजकल जैसे जैसे खानपान व रहन सहन बदल रहा है उसी के अनुरुप जनसामान्य में रोग भी बढ़ रहे हैं।
चूँकि यह रोग यकृत से जुड़ा हुआ है तो आज पहले यकृत व उसके कार्यों पर ही चर्चा कर लें।
फ़ैशन व प्रगतिशीलता के नाम पर हम अच्छी व स्वास्थ्यवर्धक परम्पराओं,विशेषतोओं को छोड़ कर मांसाहार व शराब के चंगुल में फँस जाना कहाँ की समझदारी है। हमारे देश में पहले की तुलना मे माँसाहारी व मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों की संख्या में अप्रत्यासित रुप से वृद्धि हुयी है। और इसका प्रयोग करने वाला युवा वर्ग ही सबसे ज्यादा मात्रा में हैँ यह सबसे अधिक चिन्ता की बात है।इससे स्वच्छन्द व निरंकुश आचरण बढ़ रहा है तथा समाज में अनाचार भी आम बात हो गयी है।इस सबका जो सबसे वड़ा दुष्परिणाम है वह है हमारा अपना शरीर नये नये रोगों से ग्रसित हो जाता है।और उन्ही रोगों में से एक खतरनाक रोग है हैपैटाइटिस।
बहुत से लोग यह समझते है कि पुराने समय की चिकित्सा पद्धति में इस रोग के बारे मे कोई जानकारी नही थी। एसी बात नही है आयुर्वेद इतनी पुरानी चिकित्सा प्रणाली है कि वहाँ कोई भी रोग की जानकारी शायद बची ही नही है।लैकिन प्रोव्लम यह है कि उन्ही रोगों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति मे आधुनिक व पश्चिमी अंग्रेजी नामों से पहिचाना जाता है।तथा दूसरा सबसे वड़ा कारण यह भी है कि जिन लोगों ने आयुर्वेद से सेवा करने का वृत लगा हुआ है।वे भी अंग्रेजी पद्धति का ही प्रयोग करके धन कमाने में लग गये हैं।और आयुर्वेद का प्रचार प्रसार भगवान भरोसे है।
हैपेटाइटिस आधुनिक रहन सहन तथा खान पान में आधुनिकता के नाम पर दूषित व मादक द्रव्यों का प्रयोग आयुर्वेद जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूँ कि यह जीवन का विज्ञान है।अतः यह हर रोग पर व्यापक दृष्टि रखते हुए रोग मुक्ति प्रदान करने वाली पद्धति है।रहन सहन तथा खान पान में आधुनिकता के नाम पर दूषित व मादक द्रव्यों का प्रयोग आजकल बढ़ता ही जा रहा है।फलस्वरुप रोग भी अपना मुँह खोले मानव पर आकृमण करने को तत्पर रहते हैं।पुराने समय में उल्टा सीधा खान पान केवल राजा,रजवाड़ो,अमीर खानदानों में हुआ करता था अतः हैपेटाइटिस Hepatitisजैसे रोगों की परिस्थितियाँ भी उन्हीं लोगों में पनपतीं थीँ।आजकल जैसे जैसे खानपान व रहन सहन बदल रहा है उसी के अनुरुप जनसामान्य में रोग भी बढ़ रहे हैं।
चित्र-- हैपेटाइटिस ए के लक्षण |
हैपेटाइटिस Hepatitis जिसे आयुर्वैद मे यकृत शोथ भी कहा जाता है वह रोग आधुनिकता का प्रकोप है।जो मांसाहार, शराब,उल्टा सीधा खाने से उत्पन्न प्रदूषण के कारण से होता है।
फ़ैशन व प्रगतिशीलता के नाम पर हम अच्छी व स्वास्थ्यवर्धक परम्पराओं,विशेषतोओं को छोड़ कर मांसाहार व शराब के चंगुल में फँस जाना कहाँ की समझदारी है। हमारे देश में पहले की तुलना मे माँसाहारी व मादक पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों की संख्या में अप्रत्यासित रुप से वृद्धि हुयी है। और इसका प्रयोग करने वाला युवा वर्ग ही सबसे ज्यादा मात्रा में हैँ यह सबसे अधिक चिन्ता की बात है।इससे स्वच्छन्द व निरंकुश आचरण बढ़ रहा है तथा समाज में अनाचार भी आम बात हो गयी है।इस सबका जो सबसे वड़ा दुष्परिणाम है वह है हमारा अपना शरीर नये नये रोगों से ग्रसित हो जाता है।और उन्ही रोगों में से एक खतरनाक रोग है हैपैटाइटिस।
बहुत से लोग यह समझते है कि पुराने समय की चिकित्सा पद्धति में इस रोग के बारे मे कोई जानकारी नही थी। एसी बात नही है आयुर्वेद इतनी पुरानी चिकित्सा प्रणाली है कि वहाँ कोई भी रोग की जानकारी शायद बची ही नही है।लैकिन प्रोव्लम यह है कि उन्ही रोगों को आधुनिक चिकित्सा पद्धति मे आधुनिक व पश्चिमी अंग्रेजी नामों से पहिचाना जाता है।तथा दूसरा सबसे वड़ा कारण यह भी है कि जिन लोगों ने आयुर्वेद से सेवा करने का वृत लगा हुआ है।वे भी अंग्रेजी पद्धति का ही प्रयोग करके धन कमाने में लग गये हैं।और आयुर्वेद का प्रचार प्रसार भगवान भरोसे है।
क्योंकि
यकृत या जिगर ही हमारे शरीर का पाचन संस्थान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।जिसके
द्वारा पाचन क्रिया के अनेकों रासायनिक व महत्वपूर्ण कार्य किये जाते हैं।तथा भोजन
को पचाकर शरीर के पोषण के लिए रस रक्त आदि द्रव्यों का उत्पादन करना,रक्त को शुद्ध
करना,भोजन से प्राप्त कार्बोहाइड्रेड्स,वसा, आदि के रुप में ग्रहण किये गये सभी पदार्थों
को मेटावोलिज्म के द्वारा तोड़कर उनसे उर्जा का उत्पादन करना आदि सभी कार्य यकृत
या जिगर ही करता है।तथा शरीर में ऊर्जा हेतु ग्लूकोज का सन्तुलन तथा अन्न से
ग्लाइकोजन का निर्माण और संचय करना,तथा ग्लूकोजन के पाचन के लिए इन्सुलिन का
निर्माण करने के लिए पैन्क्रियाज़ को दिशा निर्दैशित करना भी यकृत के कार्यों में
ही शामिल है।इसे हम मानव शरीर की फेक्ट्री भी कह सकते हैं।हमारा रक्त आमाशय व
आंतों से होते हुए यकृत मे पहुँचता है।उसके बाद ही साफ होकर परिसंचरण तंत्र द्वारा
शरीर के सम्पूर्ण अंग प्रत्यंगो में पहुँचता है।सम्पूर्ण शरीर का ¼ भाग
रक्त यही रहता है। रक्त का थकका वनाने के लिए आवश्यक तत्व प्रोथ्राम्विन एवं
फ्रीवीनोजिन का निर्माण, रक्त का निर्माण मात्रा का नियंत्रण,खून की कमी मे
हीमोग्लोविन व सेरयूलोल्पालमिन आदि रासायनिक पदार्थों या कोलेस्ट्राल का नियंत्रण ,एच.डी.एल.,एल.डी.एल.,वी.डी.एल.
का निर्माण व नियंत्रण तथा सन्तुलन बनाना,शरीर में जल,क्षारीय तत्वों,रक्त निर्माण
एवं नियंत्रण,ये सभी कार्य यकृत के हैं।
विभिन्न हार्मोंन्स के निर्माण जैसे वृद्धि हार्मोन,ग्लूकोकार्टीकारोडस,इस्ट्रोजन आदि तत्व जो तनाव मुक्ति व स्वास्थ्य के विकास मे सहायक हैं के निर्माण में सहयोग तथा रक्त मे इनके मिलने मे सहयोग करना भी इसी का काम है। विटामिन ए व बी12 आदि के निर्माण में सहयोग व संचय भी यकृत में ही होता है।पित्त का निर्माण यही होकर गैल बलैडर मे पहुँचताहै।पीलिया के कारक तत्व जैसे विलरुविन,बाइल साल्ट्स आदि का निर्माण यहीं होता है।पीलिया रोग में ये तत्व ही बढ़ जाते हैं।
विभिन्न हार्मोंन्स के निर्माण जैसे वृद्धि हार्मोन,ग्लूकोकार्टीकारोडस,इस्ट्रोजन आदि तत्व जो तनाव मुक्ति व स्वास्थ्य के विकास मे सहायक हैं के निर्माण में सहयोग तथा रक्त मे इनके मिलने मे सहयोग करना भी इसी का काम है। विटामिन ए व बी12 आदि के निर्माण में सहयोग व संचय भी यकृत में ही होता है।पित्त का निर्माण यही होकर गैल बलैडर मे पहुँचताहै।पीलिया के कारक तत्व जैसे विलरुविन,बाइल साल्ट्स आदि का निर्माण यहीं होता है।पीलिया रोग में ये तत्व ही बढ़ जाते हैं।
यकृत शरीर
की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान करता है। शरीर में
निर्मित होने बाले जीवाणुओं, अन्दर निर्मित या वाह्य निर्मित विषों,औषधि,एण्टीबायोटिक
एवं विकारों को नष्ट कर तथा इस कार्य से उत्पन्न इंण्डाल,स्टेटाल,आदि विषाक्त
तत्वो का भी निष्कासन कर दैता है ।
यकृत
यूरिया, यूरिक अम्ल, बाइल साल्ट व बाइल पिगमेंट,आदि बीमारी उत्पन्न करने बाले
तत्वों को शरीर से बाहर करने में सहयोग करता है ।
यकृत
की सबसे विशिष्ट बात यह है कि खुद कितना भी बीमार है फिर भी अपने कार्यो के लिए
लगा रहता है तथा खुद को भी सही करने में खुद की मदद करता है।यह एक ऐसा अंग है कि
अगर इसका 10प्रतिशत अंग प्रत्यंग भी ठीक रहें तो भी यह अपने सभी कार्य करता रहता
है।
हैपेटाईटिस बी Hepatitis-Bलीवर के संक्रमण से ही पैदा हुई एक बीमारी है जिसे हम लोग अपनी सामान्य भाषा में पीलिया कहते है ये अलग प्रकार के वाइरस से पैदा होने वाली बीमारी है अलग-अलग शोधकर्ताओं ने अलग-अलग प्रकार के वाइरस की पहचान करके इसके अलग-अलग नाम देकर इसकी तीव्रता के आधार पर नामकरण भी किया है जिससे कि व्यक्ति अच्छी प्रकार से जान सकें पीलिया और हेपेटाईटिस दोनों का ही इलाज एलोपैथी में नहीं है अब तक पीलिया का एंटी-डोज नहीं बना है लेकिन भारतीय आयुर्वेद में बहुत ही असम्भव रोगों का इलाज आज भी है यदि पीलिया या
हैपेटाईटिस बी Hepatitis-Bलीवर के संक्रमण से ही पैदा हुई एक बीमारी है जिसे हम लोग अपनी सामान्य भाषा में पीलिया कहते है ये अलग प्रकार के वाइरस से पैदा होने वाली बीमारी है अलग-अलग शोधकर्ताओं ने अलग-अलग प्रकार के वाइरस की पहचान करके इसके अलग-अलग नाम देकर इसकी तीव्रता के आधार पर नामकरण भी किया है जिससे कि व्यक्ति अच्छी प्रकार से जान सकें पीलिया और हेपेटाईटिस दोनों का ही इलाज एलोपैथी में नहीं है अब तक पीलिया का एंटी-डोज नहीं बना है लेकिन भारतीय आयुर्वेद में बहुत ही असम्भव रोगों का इलाज आज भी है यदि पीलिया या
Hepatitis A,Hepatitis B,Hepatitis C हेपेटाईटिस ए, बी अथवा सी किसी भी प्रकार का हो तो उसे आयुर्वेद की सहायता से ठीक किया जा सकता है। अपने अगले ब्लाग में मैं आपको इसे क्योर करने का आयुर्वेदिक इलाज बताऊगा।अतः पहले इसके लक्षणों को जाने और इस रोग को हलके में न लें।
tag-<हैपेटाइटिस आयुर्वेद में कहलाती है-यकृत शोथ,हैपेटाइटिस के लक्षण,हैपेटाइटिस का इलाज>
शेष क्रमशः-
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