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गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

गिलोय के विविध रोगों में प्रयोग



आजकल के समय में अनेक रोग यथा टाईफाइड,जल्दी जल्दी हो जाने वाले बुखार में ऐलोपैथिक डाक्टर्स कई बार फैल हो जाते हैं इन रोगों में आयुर्वेदिक चिकित्सा ही श्रैष्ठ चिकित्सा है। इस पद्धति में रोग का निदान करके वैद्य लोग चिकित्सा करते हैं।जैसा कि मैं पहले ही लिख चुका हूँ कि गिलोय जिसे अमृता भी कहा जाता है।इन रोगों की अतभुत औषधि है।
टाईफाइड,जीर्णज्वर और सभी प्रकार के बुखार में संशमनी वटी दिन में 3 बार 2 से 5 गोलियाँ दें।इन रोगों में रोगी भोजन बन्द करके केबल अनार,सेव,मुनक्का या  पपीते पर रहकर संशमनी वटी से ही 7 से 10 दिन में रोग मुक्त हो जाता है। यदि टाईफाइड,जीर्णज्वर,मेनीन्जाइटिस जैसे बुखार ठीक होने के बाद जीर्णज्वर रहता है तब दूध चावल पर रहकर केवल संशमनी वटी को ही लेने से जीर्णज्वर जड़ से मिट जाता है।छोटे बच्चों के लिए संशमनी वटी निर्दोष औषधि है इसको देने से बच्चे को बुखार नही आता है और बच्चा ठीक से बढ़ता है।
अमृतारिष्ट ----
बुखार को दूर करने के लिए गिलोय व दशमूल क्वाथ के साथ बनी अमृतारिष्ट एक महत्वपूर्ण औषधि है जो बुखार को तो दूर करती ही है यह भूख में भी वृद्धि करके शरीर में शक्ति व स्फूर्ति भी लाती है।
गठिया(गाउट), रेनोडिज डिजीज,बर्जर्स डिजीज(टी.ए.ओ.),एस.एल.ई.,स्कलेरोडर्मा,रुमेटोइड,आर्थराइटिस,रुमेटोइड आदि वातरक्त के जीर्ण व गम्भीर रोगों में गिलोय का प्रयोग सबसे उत्तम है। गिलोय स्वरस,गिलोय क्वाथ(काढ़ा),गिलोय सिद्ध तेल,गिलोय सिद्ध घृत,गिलोय घन वटी,गिलोय सत्व व गिलोय चूर्ण आदि गिलोय के विभिन्न योग बीमारी के पूर्णतया लाभ होने तक प्रयोग करते रहैं धैर्य रखें यह एक निरापद औषध है वैसे भी जिन रोगों के लिए एलोपैथी में भी कोई अच्छी औषधि न मिले वहाँ गिलोय को प्रयोग कर अच्छे इलाज का भरोसा किया जा सकता है।

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