नवरात्र कलश पूजन----
कलश पूजन के लिए अभिजीत मुहर्त को
मान्यता दी गई है।अतः पंडित जी से इस मुहूर्त का समय पूछ लिया जाए तो यह श्रेयस्कर
होगा।इसी दौरान कलश स्थापन की प्रक्रिया शुरु करनी चाहिये।वैसे कलश स्थापना के लिए
ब्रह्ममुहूर्त का समय भी उपयुक्त हो सकता है।लैकिन कभी भी कलश स्थापन का कार्य
यमघण्ट योग या फिर राहुकाल में नही करना चाहिये।कलश स्थापन के समय नवग्रह पूजन व
षोडश मात्रका पूजन अवश्य करना चाहिये।
सर्वप्रथम कलश पर चुनरी और कलावा
अर्थात मौली लपेटकर वरुण देवता का आह्वान व ध्यान करना चाहिये।फिर कलश के जल में
जौ,
चावल
व काले तिल(काली
माँ के उपासक काले तिल चढ़ाऐ) और रोली चढ़ाऐं।फिर कलश के मुँह पर
आम के पाँच पत्ते या साथ पत्ते लगा दें इसे पंचपल्लव कहा जाता है।इस प्रकार से
शास्त्रोक्त विधि से कलश स्थापना होती है।
शास्त्रोक्त नवरात्रि पूजन विधि----
साधक प्रातः काल में स्नान आदि
नित्य क्रियाओं से निवृत होकर,स्वच्छ पीली धोती पहनकर अगर किसी
गुरु जी को मानते हैं तो उनकी चादर औढ़ लें नही तो पीला अंगोछा या कोई पीला कपड़ा
औढ़ लें,
पूजा
गृह में जाकर देवताओं को प्रणाम करें। इसके बाद पीला आसन या अपनी साधना के अनुसार
आसन बिछाकर उत्तर दिशा में मुख करके बैठ
जावे। और अपने सामने एक छोटी चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें सामने भगवती माँ दुर्गा
का आकृषक चित्र स्थापित करें।
पूजन सामिग्री-
कुंकुम,
अक्षत या चावल (जो टूटे हुये न हों), अगरवत्ती या धूपबत्ती, इलायची, फल, मिठाई, एक
नारियल,कलश,जलपात्र,आरती की सामिग्री एवं दूध,दही,घी,शहद,चीनी,आदि मिलाकर पंचामृत
बना लें तथा पुष्प आदि भी साथ में रख लें
फिर पूजन प्रारम्भ करें।
पवित्रीकरण---
ॐ
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स
बाह्यभ्यन्तरः शुचिः।।
इस अभिमंत्रित जल को, दाहिने
हाथ की उंगलियों से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़कें, जिससे
आपकी आन्तरिक व बाह्य शुद्धि हो जाए।
आचमन---
ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः।।
इन मंत्रों को एक एक बार पढ़कर जल पीयें और भावना करें
कि यह जल आपके अंदर कंठ तक शुद्ध कर रहा
है फिर हाथ में जल लेकर
ॐ हृषीकेशाय नमः । बोलकर
हाथ धो लें।
दिशा बंधन----
बायें हाथ में चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाऔं में तथा ऊपर व नीचे निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुये चावलों को छिड़कें तथा भावना करें कि जिस जिस दिशा में आप चावल छिड़क रहें हैं उधर उधर से आप पूर्णतया सुरक्षित हो रहे हैं।
ॐ
अपंसर्पन्तु ते भूताः ये भूताः भूमि संस्थिताः। ये भूता विध्नकर्तारस्ते नश्यन्तु
शिवाज्ञया।।
अपक्रामन्तु
भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। सर्वेषाम विरोधेन पूजाकर्म समारभे।।
संकल्प---
इसके पश्चात संकल्प लें।जल को अपने दाहिने हाथ में अपनी इच्छित मनोकामना की पूर्ति व्यक्त करते हुये अपने नाम या गोत्र का उच्चारण कर जल को भूमि पर छोड़ दें।गणपति स्मरण---
यदि कोई
गणेश जी की प्रतिमा हो तो प्रतिमा को थाली पर
स्थापित करें। तत्पश्चात गणपति का स्मरण करें।
समुखश्चैकदन्तश्च
कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विध्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो
भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशै तानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे
विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विध्नस्तस्य न जायते।।
इसके
पश्चात गणपति की मूर्ति पर कुंकुम,
पुष्प, अक्षत, और प्रसाद
अर्पित करें।
गुरुजी का ध्यान---
गुरुर्बह्मा
गुरुर्विष्णु गरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुर्साक्षात
परमब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
तत्पश्चात
गुरु जी का ध्यान करके कुंकुम,
धूप, पुष्प, अक्षत, तथा प्रसाद
श्री गुरुजी को अर्पित करें। और गुरु पूजन सम्पन्न करें।
कलश पूजन--- अपने सामने चौकी पर स्वच्छ लाल बस्त्र बिछाकर चावल की ढेरी या फिर जौ मिश्रित मिट्टी या फिर बालू के ऊपर कलश स्थापित करें। कलश पर कुंकुम से स्वास्तिक का चित्र बनाकर कुंकुम की चार बिन्दियाँ लगा दें।कलश के भीतर ऊपर बताए हुये सामानों के अतिरिक्त सुपारी व रुपया भी डाल दें कलश के ऊपर लाल वस्त्र में नारियल लपेट कर रखें।कलश पर मौली लपेट दें। फिर निम्न मंत्र पढ़ते हुये हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
कलशस्य
मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्र समाश्रितः।
मूले
तत्रस्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा स्मृताः।।
कुक्षौ तु
सागरार्सप्त सप्त द्वीपा वसुन्धरा।
श्रग्वेदो
यजुर्वेदः सामवेदोह्यर्वणः।।
अंगेश्च
संहिताः सर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।
अत्र
गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी सदा।।
आयान्तु
यजमानस्य दुरितक्षय कारकाः।।
कलश
पर पुष्प समर्पित करके प्रणाम करें।
इसके
बाद माँ भगवती का यदि चित्र है तो इस पर जल से छींटा देकर पौछ दें और अगर मूर्ति
है तो स्नान करा दें।फिर कुंकुम,अक्षत, पुष्प,धूप व दीप
से माँ की पूजा करें।
मंत्र
निम्न है---
दुर्गा
क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
आगच्छ वरदे
देवि देत्यदर्प निसूदनी।
पूजां
ग्रहाणि सुमुखि नमस्ते शंकरप्रिये।।
यंत्र या मूर्ति पूजन ---- अगर आपके
यहाँ माँ भगवती की कोई प्रतिमा हो या फिर दुर्गा माँ का यंत्र हो तो किसी थाली में
इसे स्थापित करें। इसके बाद यंत्र या मूर्ति को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराऐं
दूध,दही,घी, शहद, शक्कर
मिलाकर पंचामृत बनाऐं तथा इससे माँ की प्रतिमा या फिर यंत्र को स्नान कराऐं। फिर
पुनः शुद्ध जल से स्नान कराकर दूसरे पात्र या थाली में कुंकुम से स्वास्तिक बनाकर
यंत्र या मूर्ति को स्थापित करें। अब निम्न मंत्रो को पढ़ते हुये कुंकुम, अक्षत व
पुष्प आदि से पूजन करें।
तिलकं
समर्पयामि ॐ जगदम्बायै नमः।।
अक्षतान
समर्पयामिॐ जगदम्बायै नमः।।
पुष्प
माल्यां समर्पयामिॐ जगदम्बायै नमः।।
इसके
बाद बायें हाथ में अक्षत लेकर यंत्र पर निम्न मंत्र बोलते हुये चढ़ाऐं।
ॐ दुर्गायै
नमः पूजयामि नमः।।
ॐ
महाकाल्यै नमः पूजयामि नमः।।
ॐ मंगलायै
पूजयामि नमः।।
ॐ
कात्यायन्यै पूजयामि नमः।।
ॐ उमायै
पूजयामि नमः।।
ॐ
महागौर्यै पूजयामि नमः।।
ॐ रमायै
पूजयामि नमः।।
ॐ
सिंहवाहिन्यै पूजयामि नमः।।
ॐ कौमार्यै
पूजयामि नमः।।
धूपं
आघ्रापयामि जगदम्बायै नमः।।
दीपं
दर्शयामि जगदम्बायै नमः।।
नैवेद्यं
निवेदयामि जगदम्बायै नमः।।
अब
किसी पात्र में मिठाई फल तथा सुस्वादु खाद्य पदार्थ सजा कर भगवती के समक्ष भोग
लगावें और तीन बार आचमन करावें।
ताम्बूलं
समर्पयामि नमः।
लौंग
इलायची के साथ माँ भगवती दुर्गा को पान समर्पित करें। फिर माँ भगवती का ध्यान करते
हुये निम्न मंत्र बोलें।
दुर्गे
स्मृतां हरसि भीतमशेष जन्तोः। स्वस्थैः स्मृतां मति मतीव शुभां ददासि।।
दारिद्रय
दुःख भय हारिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार
करणाय सदार्द्र चित्ता।।
इसके बाद
माला का कुंकुम,अक्षत,धूप व दीप
से पूजन करें ।
इसके बाद
अपने गुरु मंत्र और माँ भगवती के इष्ट मंत्र का योग्य माला से जाप करना चाहिये।
माँ की पूजा का एक मंत्र निम्न भी है ।
ऐं ह्रीं
क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।
प्रतिदिन
मंत्र जप के पश्चात माँ दुर्गा की आरती करें।
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