आजकल के समय में सर्वाधिक जोर अपनी लाइफ स्टाइल को हेल्दी बनाने पर दिया जा रहा है और जब हेल्दी की बात होती है तब हर जागरुक व्यक्ति आयुर्वेद अनुसार खाना पीना रखना चाहता है क्योंकि इस पद्धति से खाना पीना ज्यादा स्वास्थ्यप्रद रहता है।
आज का वातावरण जितना प्रदूषित हो चुका है उसका इलाज केवल और केवल आयुर्वेद में दिखाई देता है क्योंकि आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार बने भोजन में संपूर्ण पोषक तत्व हमें अपने प्राकृतिक तत्व के रूप में मिलते है।
आयुर्वेद के अनुसार प्रकृति पंचतत्वों से निर्मित है और प्रकृति में जो कुछ भी हम देखते हैं सब कुछ इन्ही पंच तत्वों का खेल है ये पंचतत्व हैं क्षिति जल पावक अनल और समीर इसमें क्षिति अर्थात आकाश,जल, पावक अर्थात पावक अर्थात अग्नि अनल अर्थात पृथ्वी और समीर अर्थात वायु हैं
और इसी तरह इन तत्वो के संतुलन से बना भोजन ही आयुर्वेदिक भोजन कहलाता है वास्तव में हमारा शरीर और हमारा भोजन दोनों ही पांच आवश्यक तत्वों अर्थाात पंच तत्वों से मिलकर बनी है और आयुर्वेदिक भोजन हमारे शरीर में इन तत्व संतुलन बनाए रखता है आयुर्वेदिक रसोई कोई नई तकनीकी नहीं है बल्कि इसमें पारंपरिक विधि भोजन की गुणवत्ता को बरकरार रखा जाता है खाना नियमित रूप से खाना और खाने के बीच में अंतराल रखना भी बड़ी ही अहम बात होती है।
ही ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से आप शरीर के दोषों को संतुलित कर सकते हो। इससे शरीर मे वढ़ा हुआ दोष संतुलित हो जाता है।
आयुर्वेदिक पाक शास्त्र अथवा आयुर्वेदिक कुकिंग में बताया जाता है कि क्या खाएं, किस तरह खाएं और खाना कैसे पकाए इसके तहत पोषण सही फूड कंबीनेशन फूड्स वेज फूड टाइमिंग आयल और किन के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया जाता है आयुर्वेद के तहत भोजन तीन भागों में बांटा जा सकता है
1- सात्विक
2- राजसिक
3- तामसिक
सात्विक भोजन हल्का, शुद्ध और प्राण ऊर्जा से भरपूर होता है इससे शरीर पवित्र होता है और मन मस्तिष्क मे संतुलन बना रहता है। वहीं राजसिक और तामसिक भोजन शरीर मे आलस्य उन्माद क्रोध आदि पैदा करता है। क्योंकि इससे शरीर मे तत्वों में असंतुलन स्थापित हो सकता है अतः इनका ज्यादा नुकसान दायक है।
क्रमशः
और इसी तरह इन तत्वो के संतुलन से बना भोजन ही आयुर्वेदिक भोजन कहलाता है वास्तव में हमारा शरीर और हमारा भोजन दोनों ही पांच आवश्यक तत्वों अर्थाात पंच तत्वों से मिलकर बनी है और आयुर्वेदिक भोजन हमारे शरीर में इन तत्व संतुलन बनाए रखता है आयुर्वेदिक रसोई कोई नई तकनीकी नहीं है बल्कि इसमें पारंपरिक विधि भोजन की गुणवत्ता को बरकरार रखा जाता है खाना नियमित रूप से खाना और खाने के बीच में अंतराल रखना भी बड़ी ही अहम बात होती है।
पंच तत्वों से बनी है प्रकृति --
प्रकृति पांच तत्वों से मिलकर बनी है पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश हर तत्व में बाकी के चार तत्व भी अंश रूप में रहते हैं। और इनकी कमी या अधिकता हमारे शरीर में तीन प्रकार के दोषों के रूप में प्रकट होती है वात पित्त और कफ हर व्यक्ति को अलग अलग तरह से उसकी जन्म की प्रकृति के आधार पर प्रभावित करते हैं जन्म के समय व्यक्ति की जो प्रकृति होती है उसी के अनुसार उसके शरीर में दोष निर्मित होते हैं। अक्सर लोगों की प्रकृति दो दोषों के योग से बनी होती है। और खास बात यह है कि स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सभी दोष सन्तुलन में रहतेहैं। लेकिन जैसे ही कोई तत्व असंतुलित होता है शरीर मे उस तत्व से संबंधित दोष प्रभावी होकर अपने लक्षण प्रकट कर देता है। और परिणामस्वरूप शरीर असामान्य स्थिति मे आकर सर्वप्रथम पाचन क्रिया प्रभावित हो जाती है। और इस कारण से शरीर मे भोजन पाचन के फल स्वरूप बनने वाली धातुओं जैसे रस रक्त मांस मेद अस्थि मज्जा और वीर्य में से किसी भी स्तर पर गङवङी आ सकती है।वास्तव में यह सब होता है बात पित्त व कफ और इससे भी आगे बात करें तो जल आकाश पृथ्वी वायु अथवा अग्नि के असंतुलन के आधार पर ही। इसके फलस्वरूप शरीर से टाक्सिन्स पैदा होने लगते है। और इसके कारण से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। और इस तरह से बीमारियां हो जाती हैं।
पंचतत्वो या पंचभूतों का पाचनक्रिया पर प्रभाव---
विभिन्न दोषों के प्रभाव से शरीर,खाने मे रुचि और पाचन क्रिया प्रभावित होती है। साथ ही इसका प्रभाव व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर भी पड़ता है। उदाहरणार्थ कफ के प्रकुपित हो जाने पर धीमी पाचन शक्ति ,भाव स्थिरता इत्यादि कफ अर्थात पृथ्वी तत्व के असंतुलन के बाद होती है। इसी प्रकार अग्नि तत्व के असंतुलन से भोजन का पाचन तेज गति से होगा और गुस्सा ज्यादा आएगा अगर अग्नि अर्थात पित्त वढ़ा होगा तव। इसी कारण जब भी कोई दोष विगड़ जाने पर सर्वप्रथम भोजन पर
ही ध्यान देना चाहिए। ऐसा करने से आप शरीर के दोषों को संतुलित कर सकते हो। इससे शरीर मे वढ़ा हुआ दोष संतुलित हो जाता है।
भोजन पौष्टिक व पौषक तत्वों से भरपूर हो---
आयुर्वेद के अनुसार भोजन स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने में अहम भूमिका निभाता है अगर आप का भोजन ठीक नहीं है खाने का तरीका सही नहीं है तो इसका असर आपके स्वास्थ्य पर भी होगा अधिकतर बीमारियां होने का मूल कारण अस्वास्यप्रद भोजन और गलत तरीके से भोजन करना ही है।इसीलिए आयुर्वेद में बीमारी की रोकथाम उपचार और स्वास्थ्य इन तीनों पर मुख्य रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है।इसी कारण आयुर्वेद में केवल खाना खाने और उसकी पौष्टिकता के लिए ही नियम तय नहीं किए गए अपितु खाना पकाने के तरीकों (अर्थात भोजन को पकाने मे उसकी गुणवत्ता कम न हो) पर भी जोर दिया गया है खाना पकाने का एक सिद्धांत है जो भौगोलिक परिस्थितियों और मौसम पर आधारित है आयुर्वेदिक पाकशास्त्र के अनुसार भोजन व्यक्ति की जरूरतोों कै अनुसार तैयार किया जाता है ताकि उसे रोगों से मुक्ति मिल सके। कुल मिलाकर आयुर्वेद का लक्ष्य है स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ रखना और रोगी के रोग मिटाना।
आयुर्वेदिक पाकशास्त्र अर्थात आयुर्वेदिक कुकिंग क्या है ---
आयुर्वेदिक पाक शास्त्र अथवा आयुर्वेदिक कुकिंग में बताया जाता है कि क्या खाएं, किस तरह खाएं और खाना कैसे पकाए इसके तहत पोषण सही फूड कंबीनेशन फूड्स वेज फूड टाइमिंग आयल और किन के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया जाता है आयुर्वेद के तहत भोजन तीन भागों में बांटा जा सकता है
1- सात्विक
2- राजसिक
3- तामसिक
सात्विक भोजन हल्का, शुद्ध और प्राण ऊर्जा से भरपूर होता है इससे शरीर पवित्र होता है और मन मस्तिष्क मे संतुलन बना रहता है। वहीं राजसिक और तामसिक भोजन शरीर मे आलस्य उन्माद क्रोध आदि पैदा करता है। क्योंकि इससे शरीर मे तत्वों में असंतुलन स्थापित हो सकता है अतः इनका ज्यादा नुकसान दायक है।
भोजन मे प्रकाश और वायु का सम्पर्क ---
आयुर्वेद के अनुसार भोजन पकाते समय उसमे वायु और सूर्य के प्रकाश का सम्पर्क होना ही चाहिए। इसके अलावा भोजन को ज्यादा तापमान(118°c से अधिक) पर पकाने से भी उसके पौषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। आजकल घरों मे सर्वाधिक प्रयोग होने वाला प्रेशर कुकर किसी भी रूप में स्वास्थ्यप्रद नही कहा जा सकता है क्योंकि सर्वप्रथम तो इसका तापमान 120°c से शुरू होता है। दूसरा यह एल्युमीनियम का बना होता है जो स्वयं हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती है। इसी प्रकार ओवन मे बेकिंग करने का तापमान 140-250°c रहता है अतः बेक किया हुआ भोजन स्वास्थ्यप्रद तो नही ही कहा जा सकता। इसी क्रम मे अगर नॉनस्टिक बर्तनों की बात की जाए तो यह कार्सीनोजनिक है अतः माइक्रोवेव,एल्युमीनियम, नॉनस्टिक बर्तनो के प्रयोग से कैंसर,ब्रोंकाइटिस, अर्थराइटिस जैसे रोग हो सकते हैं।
मिट्टी के बर्तन सर्वाधिक स्वास्थ्यप्रद ---
आजकल रसोई में सर्वाधिक प्रचलित बर्तन प्रेशर कुकर है जो किसी भी दाल को या सब्जी को झटपट तैयार तो कर देता है क्योंकि इसके प्रेशर के आगे बेचारी दाल की कुछ भी नहीं चलती और तुरंत उबल जाती है किंतु ज्यादा तापमान होने के कारण से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं दूसरा जो बच जाते हैं वे भी अपने तत्वों में विघटित नहीं हो पाते अतः प्रेशर कुकर में दाल या सब्जी अपने संपूर्ण पोषण का केवल 15% ही हमें दे पाती है वहीं मिट्टी की हाड़ी में जब हम दाल बनाने रखते हैं तो समय-समय पर खोल कर देखते हैं की गली है या नहीं, परिणामस्वरुप दाल या सब्जी में सूर्य के प्रकाश का भी मिलन हो जाता है जो आयुर्वेदिक दृष्टि से जरूरी है अतः हॉडी में बनी दाल धीरे धीरे धीमी आँच पर पकती रहती है और अपने तत्वों में बिघटित होती जाती है इससे दाल की पौष्टिकता और स्वाद दोनों ही बरकरार रहते हैं आधुनिक समय में मिट्टी का बर्तन भी आने लगा है इस में धीमी आंच पर ही भोजन स्वास्थ्यप्रद बनता है इसी प्रकार से लोहे के तवे की रोटी और भाप में पकी सब्जी भी पूर्ण पौष्टिक होती है।
क्रमशः
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