आयुर्वेद अर्थात स्वास्थ्य रक्षा का शास्त्र । Ayurveda means the science of health care
आयुर्वेद क्या है?
आयुर्वेद प्राकृतिक एवं समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति है| संस्कृत मूल का शब्द आयुर्वेद दो धातुओं के संयोग से बना है - आयुः + वेद ( "आयु " अर्थात लम्बी उम्र (जीवन ) और "वेद" अर्थात विज्ञान)| अतः आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ जीवन का विज्ञान है|
Concept of health and Disease in ayurveda :----
अर्थात जिन सिद्धांतों में जीवन के हित ( अनुकूल ) व जीवन के लिए अहितकारी (प्रतिकूल) नियमों का वर्णन है जो सुखी तथा रोगी जीवन के बारे में हमें ज्ञान प्रदान करते हैं हमारा हित व अहित बताते हैं हमें बताते हैं कि इन नियमों के पालन से आप रोगी होने से बच सकते हैं तथा जिनका पालन करने से वयक्ति दुख आयु या रोग की अवस्थाओं से निवृत होकर सुख आयु या स्वस्थ जीवन प्राप्त करता है वे नियम या सिद्धांत ही आयुर्वद कहलाते हैं। आयुर्वेद जहाँ एक ओर रोगी होने से बचने का ज्ञान हमें प्रदान करता है वहीं दूसरी ओर अगर हम किसी कारण से रोगी हो ही गये है तो रोग मुक्ति के साथ पुनः निरोगी अथवा स्वस्थ होने का ज्ञान भी प्रदान करता है।हिताहित सुखं दुखमायुस्तस्य हिताहितं।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेद स उच्चयते।।
वहीं एलोपैथी के सिद्धांत बीमारी होने के मूल कारणों पर ध्यान केन्द्रित नही करते अपितु इनका ध्यान केवल रोग को दूर करने पर निहित रहता है क्योंकि उनके विचार में व्यक्ति को Health चाहिये जो healing से प्राप्त होती है अब बात आती है कि healing किससे तो उत्तर आता है disease से अर्थात जो disease में होगा उसे ही तो heal करना है। अब बात करे disease की तो disease शब्द इंग्लिस भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है dis व ease से जिसका शाब्दिक अर्थ होगा dis अर्थात नही है जो ease अर्थात सामान्य या वैचेन अतः साफ शब्दों में कहैं कि जो अपने सामान्य स्वभाव के अनुरूप नही है जो अस्वाभाविक लक्षणों से ग्रसित है उसे disease है अर्थात वह बीमार है ।और उसी अवस्था को heal करना होगा जिससे व्यक्ति को Health प्राप्त हो । लैकिन यह स्थिति हमेशा ही disease के बाद की होगी । यह आयुर्वेद में दिये गये स्वस्थ शब्द से बिल्कुल अलग स्थिति है वास्तव में यह कहने में कहीं संकोच नही होना चाहिये कि ऐलोपेथ में स्वस्थ या स्वास्थ्य शब्द के लिए कोई पर्यायबाची शब्द नही है।
वहीं आयुर्वेद किसी बीमारी के होने पर उस रोग के मूलभूत कारणों पर ध्यान देकर इसके समग्र निदान की बात करता है| आयुर्वेद रोगों के उपचार के बजाय स्वस्थ जीवन शैली पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। आयुर्वेद की मुख्य अवधारणा यह है कि वह उपचारित होने की प्रक्रिया को व्यक्तिगत बनाता है।आयुर्वेद के सिद्धान्त व्यक्ति के निरोग रहते हुये 100 वर्षों तक जीवन की कामना करते हैं।
स्वस्थ क्या है ? स्वास्थ्य क्या है ? और स्वास्थ्य के क्या उद्देश्य हैं ?
definition of swasthya in ayurveda
आयुर्वेद के महान ज्ञाता चक्रपाणि के अनुसार स्वस्थ उस व्यक्ति को कहा जाता है जो विकार रहित अवस्था में स्थित हो अर्थात स्वस्थ व्यक्ति का भाव ही स्वास्थ्य कहलाता है
स्वस्थस्य भावः स्वास्थ्यष।
स्वमिन् स्थाने स्वमिन कर्मणि स्वसु रुपे स्थीयते यत् वृत्तं स्वस्थवृतम्।
जिन आहार, विहार, को करने से दोष, मल व धातु अपने अपने स्थान पर रहते हुये अपने अपने नियत कार्य को करें तथा उनका स्वरुप प्राकृतिक रहे उन सभी का पालने करना ही स्वस्थवृत है या यही स्वस्थ व्यक्ति की दिनचर्या है।
आचार्य सुश्रुत के अनुसार
स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण –
समदोषः समाग्निश्च समधातु मल क्रियाः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियामनाः स्वस्थ इत्यमिधीयतेः।। आचार्य सुश्रुत।
आचार्य चरक के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण---
सममांसप्रमाणस्तु समसंहननों नरः।
दृढन्द्रियों विकाराणां न बलेन अभिभूयते।।
क्षुत्पिपासातपसह शीतव्यायाम संसह।
समपक्ता समजरः समंमास चयोमतः।।
2. शारीरिक गठन समप्रमाण में हो।
3. जिसकी इन्द्रियाँ थकान रहित व सुदृढ़ हों।
4. रोगों का बल जिसे पराजित न कर सके।
5. जिसका व्याधिक्ष समत्व बल बढ़ा हुआ हो।
6. जिसका शरीर भूख, प्यास, धूप, शक्ति को सहन कर सके।
7. जिसका शरीर व्यायाम को सहन कर सके।
8. जिसकी जठराग्नि या पाचन शक्ति समावस्था में हो।
9. जिसका निश्चित कालक्रमानुसार बुढ़ापा इत्यादि अवस्थाऐं आऐं।
10. जिसकी मांसादि की चय़ापचय क्रियाऐं समान होती है। एसे 10 लक्षणों वाले व्यक्ति को आचार्य चरक स्वस्थ मानते हैं।
आचार्य कश्यप के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण -
अन्नाभिलाषो भुक्तस्य परिपाकः सुखेन च।
सृष्टविष्मूत्रवातत्वं शरीरय तु लाघवं।
सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं च सुखस्वप्नप्रबोधकम।
बलवर्णायुषाँलाभः सौमनस्य समाग्निता।
विद्यादारोग्यलानि विपरीते विपर्ययम।।
(खिल्लस्थानम् अध्याय पांच श्लोक 6-7-8।। आचार्य कश्यप)
अर्थात –
2. सुखपूर्वक भोजन का पाचन होता हो।
3. मलमूत्र और वायु निष्कासन उचित रुप में होते हों।
4. शरीर में हल्कापन अर्थात स्फूर्ति रहती हो।
5. इन्द्रियाँ प्रसन्न रहती हों।
6. मन प्रसन्न रहता हो।
7. रात्रि में सुख पूर्वक नींद आती हो।
8. सुख पूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो।
9. जिसका बल, वर्ण आयु के अनुसार हो।
10. जिसकी पाचक अग्नि सम हो।
ये सभी दस लक्षण स्वस्थ व्यक्ति के हैं।
आयुर्वेद में स्वस्थ बने रहने के उपाय क्या है
आचार्य चरक ने बताया है कि
"नरो हिताहार विहार सेवी समीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः।
दातासमः सत्यपरः क्षमावान् आप्तोपसेवी च भवत्य रोगः।।"
2. जो हितकर विहार का सेवन करता हो।
3. सोच विचार (समीक्षाकरके) करके कार्य करने वाला हो।
4. सांसारिक विषयों में लिप्त न हो।
5. त्यागमय प्रवृति का हो।
6. समस्थिति या समभाव में रहने वाला हो।
7. दानी प्रवृति का हो
8. सत्य बोलने वाला हो
9. क्षमावान हो
10. महापुरुषों के वचनों का पालन करने वाला हो।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भाग्भवेत्।।
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