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मंगलवार, 2 अक्टूबर 2012

आखिर यह हैपैटाइटिस है क्या ?

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पिछले लेख आयुर्वेद में हैपैटाइटिस कहलाती है - का शेष........................

इस बात से यह सिद्ध हो जाता है कि यकृत हमारे शरीर का अति महत्व पूर्ण अंग है और जब यह इतनी मेहनत करता है तो यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इसकी देखभाल ध्यान से करें।
                                                अब सवाल उठता है कि इतनी सारी बात बताने पर भी यह तो मालूम ही नही पड़ा कि आखिर यह हैपैटाइटिस है क्या ? तो भइया हैपैटाइटिस यकृत का एक सामान्य रोग है जिसमें यकृत के कोशों में प्रदाह या जलन से यकृत की कोशिकाऐं लगातार क्षतिग्रस्त होती रहती है जिससे यकृत में कमजोरी आ जाती है फलस्वरुप यकृत की क्रियाविधि धीमी हो जाती है या फिर विकृत हो जाती है।और यही अवस्था अगर वहुत समय तक वनी रहे तो यकृत में कड़ा पन आ जाता है।इम्यून सिस्टम खराव हो जाता है ।अगर यह अवस्था थोड़े दिनों में सही हो जाए तो रोग साध्य नही तो कष्टसाध्य और ज्यादा दिनों तक वनी रहे तो यही असाध्य रोग में बदल जाता है। रोग के कारण यकृत की कमजोरी के प्रमुख कारण ये हैं। हम पहले लेख में भी कई बार कह चुके हैं कि जीभ के ज्यादा स्वाद शरीर को और सही मायने में यकृत को नुकसान ही पहुँचाते हैं।तेल घी व वनस्पति घी से बने पदार्थ,ज्यादा भुने हुए तथा ज्यादा नमक मिर्च मसाले व अधिक चीनी के बने पदार्थ गरिष्ठ होते हैं इन्हैं पचाने में यकृत को बहुत ही कठिन परिश्रम करना पड़ता है।रोजाना रोजाना मेदा,बैसन, ब्रेड ,बिस्कुट आदि पदार्थ तथा अण्डे व माँस तो यकृत पर और भी ज्यादा बोझ डालते हैं।एसे भोजन को दिन प्रतिदिन करने से पहले तो पाचन क्रिया कमजोर होती है फलस्वरुप पेट व आंतो के रोग पेदा होने लगते हैं क्योंकि अधपचा भोजन से सड़ाध पैदा होकर यकृत में कीटाणुओं का आकृमण होने लगता है और पहले से कार्य बोझ से घिरे यकृत पर अब और बोझ आ जाता है। और उसके कार्य मन्द हो जाते हैं और कीटाणोओं की क्रियाओं के कारण उत्पन्न रासायनिक पदार्थों की प्रतिक्रिया से यकृत में क्षोभ उत्पन्न हो जाता है तथा यकृत की कार्यक्षमता कमजोर पड़ जाती है।और यकृत के प्रत्यंगों में भी कमी आ जाती है। शराब,गाँजा, अफीम,चरस,तम्बाकू,गुटखा,पान व मसाले यकृत पर अत्यधिक प्रभाव डालते हैं ये चीजें तो मानो यकृत के लिए जहर ही हैं। इन सभी कारणों से यकृत के दुर्वल होने पर जीवाणु व कीटाणु शरीर पर हमला बोल देते हैँ।और यकृत में सूजन या शोथ पैदा हो जाती है।ये संक्रामक कीटाणु या वायरस ए,बी,सी,डी,ई व नान बी हैं जो इस रोग को पैदा करते हैं। बहुत सी दवाए यथा ब्यूटाजोलीडीन ,पैरासीटामोल,नायट्रोप्यूरोटिन,एण्टीबायोटिक्स आदि का लगातार सेवन भी यकृत पर बुरा प्रभाव डालता है।
                           यकृत शोथ के अन्य कारण भी हैं पर लगभग सभी में वायरस का प्रभाव होता है। कई बार हैपैटाइटिस माँ को होता है और उनकी लापरबाही के चलते या फिर उनके दूध के कारण यह बच्चों को हो जाता है।किसी भी प्रकार का रोग संक्रमित अन्न जल आदि का किसी प्रकार भी अन्तः शरीर तक पहुँचना यकृत शोथ का कारण बन सकता है।नाक,मुँह या मूत्र एवं मल द्वार के रास्ते भी हैपैटाइटिस के जीवाणु शरीर में प्रविष्ट हो सकते हैं तथा यकृत शोथ का कारण बन सकते हैं।कई बार सर्जन या दन्त सर्जन की लापरवाही भी इस रोग का कारण बन जाती है। दुनिया का यह सच शायद सब जानते है कि जो कमजोर हुआ उस पर सब हाबी हो जाते है ।डार्विन ने तो इस कारण योग्यतम की उत्तर जीविता का सिद्धान्त ही दे डाला। यह बात यकृत पर सच सावित होती है।कि जब तक 10 प्रतिशत भी ताकत थी इसके सामने जो भी जीवाणु या रोगाणु आया इसने कर पचाकर समाप्त कर दिया किन्तु ताकत कम होने पर कहीं से भी रोगाणु आकर घेर सकता है।अतः इसके कमजोर करने के कारणों को समाप्त करने में ही अपना हित है।और यकृत को नुकसान करने वाले कारक शराब ब कवाव से दूर रहने मे ही भलाई समझनी चाहिए। इसके अलाबा कई प्रकार के रोग जैसे एनीमिया,न्यूमोनिया,मलेरिया, दस्त ,आँतो की सूजन तथा जलना आदि जिनसे कमजोरी आती है वे भी यकृत को हानि पहुँचाते हैं तथा यकृत शोथ का कारण वन सकते हैँ। अतः इन रोगों के हो जाने पर इनकी अवहेलना न करें कारण पता लगाकर तुरन्त इलाज कराऐं तथा कमजोरी की भरपाई करें जिससे कहीं इस रोग की स्थिति न बन पाए। क्रमशः..................................

4 टिप्‍पणियां:

  1. avinash-vachspati

    इस ब्‍लॉग की उपयोगिता को देखते हुए इसका लिंक नु
    क्‍कड़ से जोड़ लिया गया है। आप नुक्‍कड़ पर आकर देख सकते हैं। http://www.nukkadh.com/

    जवाब देंहटाएं
  2. BeautyPlus_20191026123627780_save
  3. blogger_logo_round_35

    बहुत उपयोगी श्रृंखला है। जारी रखें।

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  4. blogger_logo_round_35

    thanks sir
    इस ब्लाग के नुक्कड़ से जुड़ जाने से पाठकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी उपलब्ध हो जाएगी।हमारा उद्देश्य तो आयुर्वेद का ज्ञान सम्पूर्ण विश्व मे फैलाना है और इस पुनीत कार्य में आप जैसे विद्वान लोगों का भी सहयोग अगर हमें मिल जाएगा तो यह कार्य स्वयं ही आगे वढ़ने लगेगा अतः इसके लिंक ज्यादा से ज्यादा वने इसके लिए मुझे सहयोग करे।आपका शुभेच्छु -ज्ञानेश कुमार (कान्हा)

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