नौसादर के
आयुर्वेदिक गुण - अमोनियम क्लोराइड
नौसादर के गुण
नौसादर एक प्राचीन
काल से प्रयोग होने वाला आयुर्वेदिक औषधि दृव्य है जिसे आधुनिक रसायन विज्ञान में
अमोनियम क्लोराइड के नाम से जाना जाता है,
जिसके बारे में संस्कृत में इस प्रकार कहा गया है।
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नौसादर का शोधन—साधारण तौर पर अशुद्ध नौसादर को
शुद्ध करके उपयोग में लाया जाता है। नौसादर को शुद्ध करके उपयोग में लाया जाता है।
नौसादर को शुद्ध करने का सरल तरीका निम्न है।
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नौसादर की सेवन
मात्रा- शुद्ध नौसादर को केवल 1 से 3 रत्ती की मात्रा में ही लेना चाहिये। इससे
अधिक लेने पर उल्टी दस्त लग जाते हैं।
नौसादर के गुण— nausadar uses in hindi
त्रिदोषप्रकापहर-
नौसादर तीनो दोषो यथा वात पित्त व कफ का शमन करने वाला है विशेषतः यह श्लेष्म की
अधिकता होने पर त्रिदोष प्रकोप को दूर करता है।
उत्तेजक कफ
निस्सारक—यह कफ को पतला करके शरीर से बाहर निकाल देता है इसलिये यह सूखी खाँसी में
बहुत हितकर है।
दीपन --- चूँकि
नौसादर पाचन संस्थान की अग्नि को बढ़ा देता है अतः इसमें दीपन का गुण है।
पाचन- यह आम (बिना
पके व अधपचे आहार रस ) व अन्न को पचा देता है।
रोचन—यह भोजन की
इच्छा को पैदा कर देता है अतः रोचन है।
सारक व अनुलोमक—यह
दोषों या मल को प्राकृतिक मार्ग पर प्रेरित करने वाला और इसी मार्ग से निकालने
वाला है अतः अनुलोमक है।
संज्ञास्थापन- यह होश, स्मृति, व ज्ञान को स्थापित करने वाला
है।
हृदय को उत्तेजित
करने वाला है। साथ ही साथ शोथ या ड्राप्सी, यकृत, ज्वर, प्लीहा, शिरःशूल ,अर्बुद,
स्तन रोग, रक्तपित्त, कासभग्न, महिलाओं की योनि रोगों में उपयोगी है।
यह क्षार युक्त,
अग्नि उद्दीपक, शूल हृदय रोग व कफ का नाश करने वाला रोचन, गुण में तीक्ष्ण,वीर्य
में उष्ण, तथा वातानुलोमक है।
यह गुल्म, प्लीहा
वृद्धि और मुख शोथ को नष्ट करने वाला खाये हुये माँस आदि गुरु पदार्थों को पचाने
वाला है।
प्रयोग विधि---
मूर्छा, अपस्मार में चूने के साथ मिलाकर नस्य दिया जाता है, जिससे शीघ्र ही चेतना
आ जाती है। इसके घोल को व्रणशोथ, शिरःशूल एवं मोच पर लगाया जाता है। विच्छू के दंश
मार देने से उत्पन्न दर्द व शोथ पर इसी घोल को लगाया जाता है।
नौसादर चूर्ण का अग्निमांद्य में प्रयोग— nausadar uses in hindi
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1)- अग्निमांद्य संहार चूर्ण—
नौसादर -48 ग्रा.
जीरा- 48 ग्रा.
काली मिर्च- 48
ग्रा.
यवक्षार- 48 ग्रा.
नीबू सत- 24 ग्रा.
बड़ी इलायची- 12
ग्रा.
काला नमक- 192 ग्रा.
2) लाल अक्सीर—
काली मिर्च—10 ग्रा.
सोना गेरु- 20 ग्रा.
नौसादर – 10 ग्रा.
तीनों को महीन पीसकर
कपड़छन करके एक एयर टाइट काँच की शीशी में रख लें
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सिर के दर्द , जुकाम
व मूर्छा में इस चूर्ण का नस्य़ लेने से लाभ होता है। दाँत के दर्द में मंजन की तरह
दाँतों पर मलने से दाँत का दर्द ठीक होता है।
3) पाचनामृत-
कालानमक- 10 ग्रा.
दोनों को घोटकर रख
लें एक एयर टाइट शीशी में और इसकी 2 से 3 ग्राम मात्रा उदरशूल या पेट दर्द में
हिंग्वाष्टक चूर्ण से, आनाह में लवणभाष्कर चूर्ण से, आध्मान,उहावर्त आदि वायुजन्य
विकारों में सेवन करने से लाभ करता है इसी चूर्ण को मूत्र संबधी दर्द में या जलन
में श्वेतपर्पटी 2 ग्राम के साथ मिलाकर लेना हितकर है।
4) स्वर्णमाक्षिक वटी—
यह औषधि पाण्डु या पीलिया व कामला की सभी अवस्थाओं में हजारों बार अनुभूत दवा
है जिसे कविराज गिरधारी जी ने वर्णन किया है।
नौसादर, यवक्षार,
प्रवालपिष्टी, शुद्ध गंधक, सर्गिकाक्षार, कासीस भस्म, सभी वस्तुऐं 50-50 ग्राम
इण्द्रायण की जड़ 80 ग्रा, मण्डूर भस्म- 80 ग्रा. और स्वर्णमाक्षिक भस्म- 100
ग्राम लेकर कमरख स्वरस व मूली स्वरस की 1-1 भावना देकर 200 मि.ग्रा. की गोलियाँ
बनाकर रख लें।
5) भूख बढ़ाने वाला चूर्ण—
नौसादर, अनारदाना,
जीरा सफेद भुना, काला नमक व पिसी खटाई सभी वस्तुऐं 200-200 ग्राम लेकर बड़ी इलायची
का दाना 100 ग्राम कालीमिर्च, सफेद मिर्च, टाटरी, और भुनी हुयी बढ़िया हींग सभी
50-50 ग्राम लेकर सबको बारीक पीसकर एक करके मिलाकर शीशी में रखें।
सेवन विधि-- 1 से 3
ग्राम प्रतिदिन खाना खाने से तुरंत पहले चखकर या पहले गसे में रखकर रुचि के अनुसार
भोजन करना चाहिये।
उपयोग—यह चूर्ण
मंदाग्नि , अरुचि अजीर्ण, अफारा व पेट के दर्द में विशेष लाभप्रद है इसके प्रयोग
से वायु का तुरंत निस्कासन होता है।
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