दस्तों का आयुर्वेदिक इलाज -- ग्रहणी कपाट रस(रसयोग सागर)
दस्त,अतिसार व संग्रहणी का रामवाण इलाज - ग्रहणी कपाट रस (रसयोग सागर)
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दस्त या अतिसार, संग्रहणी व पुराने से पुराना अतिसार अर्थात भयंकर दस्तों को दूर कर देने वाली यह औषधि योग आयुर्वेदिक ग्रंथ रसयोग सागर से लिया गया है
ग्रहणी कपाट रस बनाने की विधि ---
इस योग में शुद्ध पारा 20 ग्राम, शुद्ध गंधक 100 ग्राम, शुद्ध अफीम 40 ग्राम , कर्पद भस्म 70 ग्राम, शुद्ध वत्सनाभ 10 ग्राम, काली मिर्च 80 ग्राम, शुद्ध धतूरा बीज 200 ग्राम लेकर पारे तथा गंघक की कज्जली बनाकर अन्य बाकी औषधियों का कपड़छन चूर्ण मिलाकर तथा जल के साथ खरल करके 125 मिलीग्राम की गोलियाँ वना कर रख लें।1-2 गोली सफेद जीरे के 1 ग्राम चूर्ण के साथ देने पर पुराने अतिसार, संग्रहणी रोग में आराम मिलता है।
दस्त रोकने के लिए ग्रहणी कपाट रस की मात्रा व अनुपान---
जब कभी पेट में दर्द हो, बार बार दस्त हों या फिर दस्तों में साथ में जलन भी हो, दस्तों के साथ आँव भी आवे या फिर मरोड़ के साथ दस्त हों यहाँ तक कि दस्तों में साथ में खून भी आवे तो ग्रहणी कपाट रस एक श्रेष्ठ औषधि है, इसके प्रयोग से आँव का पाचन हो जाता है, तथा अग्नि प्रदीप्त हो जाती है। और यही कारण है आँव के साथ दस्त होने का, जहाँ कारण मिटा रोग समाप्त अर्थात आँव का पाचन होने तथा अग्नि के प्रदीप्त होने से पाचन क्रिया ठीक होने लगती है तथा रक्त में लाल रुधिर कणिकाओं अर्थात आर.बी.सी की वृद्धि होने लगती है और जल का जो अंश मौजूद था वो सूखने लगता है अतः बँधा हुआ मल आने लगता है।चूँकि इस औषधि में धतूरा तथा अफीम दोनों होते हैं और दोनो ही पेन किलर भी हैं तथा ग्राही है अतः शरीर द्वारा तुरन्त ही ग्रहण कर लिये जाते हैं और लाभ पहुँचाते हैं।
अगर आँव के कारण पेट में दर्द भी हो तो ग्रहणी कपाट रस को शंख भस्म के साथ लेने से आँव के कारण होने वाला दर्द तथा आँव दोनो का निदान हो जाता है जब कि दस्त न रुक रहे हो तब इस रस का प्रयोग करने से दस्त रुक जाते हैं।
I suffering ulcers colitis from 5years
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