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शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

जाति प्रथा एक अभिशाप या वरदान सोचो ,विचारो व कहो।(कविता)

संसार में केवल भारत ही ऐसा देश नही है जहाँ जाति प्रथा हो अपितु मैं तो समझता हूँ कोई भी सभ्यता इस वेकार सी व्यवस्था के बल बूते पर ही है, वैसे कभी इसकी अच्छाई होगी किन्तु आज के समय में तो यह निस्सार ही है, कोई देश ऐसा नही है जहाँ जाति व्यवस्था न हो बस अन्तर इतना है कि कहीं यह प्रोस्टेट व कैथोलिकों के रुप में है तो कहीं सिया सुन्नियों के रुप में किन्तु सभी देशों में यह मालदार गरीव के रुप में कमजोर मजबूत के रुप में,कर्मचारी व सामान्य जन के रुप में औरत व आदमी के रुप में, आधुनिक व पुरातन के रुप में हमेशा ही जीवित है। इसकी शायद अच्छाई तो कुछ ही हो किन्तु हाँ बुराई जरुर है कि इसके कारण सही को सही नही कहा जा सकता क्योंकि जो गलत होता है वही संगठित होकर अकड़ बैठता है और फिर सही या सत्य छुप जाता है।

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जाति प्रथा एक अभिशाप या वरदान सोचो ,विचारो व कहो।(कविता)

कभी था अगड़े का झगड़ा
समय बदला पिछड़ा व दलित ने इन्हैं रगड़ा
अनुसूचित व अनुसूचित जन का ख्याल है अब और तगड़ा
न आदमी तब था न अब
जानते है सब
किन्तु नेतागीरी में बढ़ने का मंत्र
खुद को आगे बढ़ाने का तंत्र
देश पर भारी है, रोती विलखती नारी है
भारत माता सबको बहुत प्यारी है
लैकिन कर दी उसकी ख्वारी है
अब भारत माता की जय जुवान पर जरुर है
हर आदमी किन्तु अपने आप में मगरुर है
हर तरफ जाति ही जाति है,कहीं नकारा कर्मचारी की
कहीं आधुनिक नारी की , कहीं भ्रष्ट नेता व कुर्सी धारी की
सही करने की आड़ में हर तरफ जिधर देखो एक ही काम है
आज आन्दोलन था, कल फिर प्रोग्राम है
इस सुसरी विरादरी का दिखता नही विराम है ! दिखता नही विराम है !दिखता नही विराम है !
जाति प्रथा की सच्चाई, जाति प्रथा

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