संसार में केवल भारत ही ऐसा देश नही है जहाँ जाति प्रथा हो अपितु मैं तो समझता हूँ कोई भी सभ्यता इस वेकार सी व्यवस्था के बल बूते पर ही है, वैसे कभी इसकी अच्छाई होगी किन्तु आज के समय में तो यह निस्सार ही है, कोई देश ऐसा नही है जहाँ जाति व्यवस्था न हो बस अन्तर इतना है कि कहीं यह प्रोस्टेट व कैथोलिकों के रुप में है तो कहीं सिया सुन्नियों के रुप में किन्तु सभी देशों में यह मालदार गरीव के रुप में कमजोर मजबूत के रुप में,कर्मचारी व सामान्य जन के रुप में औरत व आदमी के रुप में, आधुनिक व पुरातन के रुप में हमेशा ही जीवित है। इसकी शायद अच्छाई तो कुछ ही हो किन्तु हाँ बुराई जरुर है कि इसके कारण सही को सही नही कहा जा सकता क्योंकि जो गलत होता है वही संगठित होकर अकड़ बैठता है और फिर सही या सत्य छुप जाता है।
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