वर्षा शब्द मन को प्रफुल्लित कर देता है। गर्मी के मौसम के बाद वर्षा मन को बड़ा ही सखद अनुभव कराती है।
मन मोर नाच उठता है किन्तु इस खुशी को नजर लग जाती है बरसात के बाद होने बाली गंदगी, उमस रात्रि में लाइट के सामने आ जाने बाले कीड़े मकोड़े जिन्है देखकर भोजन भी नही खाया जा पाता। कीड़े मकोड़ों के अलावा मच्छरों का साम्राज्य हर तरफ होता है।अतः रोगों की लाइन लग जाती है।डाक्टरों के यहाँ रोगियों की भीड़ होती है।आजकल चूकि कपूड़े सूख नही पाते और वातावरण में नमी होती है गरमी के तुरंत बाद वर्षा होती है अतः वातावरण मे जल की भाप तथा वातावरणीय प्रभाव से जीव धारियों के शरीर मे अग्निबल कमजोर हो जाता है। जल दूषित हो जाता है ।जिससे जीवों का पाचनतंत्र गड़वड़ा जाता है।वातावरण की नमी से वायु जीवाणु व कीटाणु युक्त होने के कारण खादय पदार्थ जल्दी ही सड़ जाते है और पूरी तरह अगर सड़े न तो वदवू दार अवश्य हो जाते हैँ।इन्ही कम वदवूदार पदार्थो को खा लेने से,तथा अग्निवल क्षीण हो जाने से, वात कफादि दोष रक्त को दूषित कर देते हैं जिससे अनेकों रोग यथा बुखार, खांसी, अतिसार आदि के साथ अनेकों त्वचा रोग भी पैदा हो जाते हैं।ये चर्म या त्वचा रोग हैं फोड़े फुंसी,दाद, खाज खुजली,शीतपित्ती,चकते पड़ना, वात रक्त,पामा, योनिकण्डु,राँगन,कुष्ठ आदिहैं।इन त्वचा रोगो मे अधिकतर औपसर्गिक या छूत रोग हैं जो स्पर्श से या प्रसंग करने से या एक साथ सोने से एक दूसरे के कपड़े पहनने से हो जाते हैं।गंदे रहने बाले, गंदी बस्तियों मे रहने बाले लोग नमी या सीलन मे रहने वाले लोग भी इन रोगों से ज्यादातर पीड़ित रहते हैं।
मन मोर नाच उठता है किन्तु इस खुशी को नजर लग जाती है बरसात के बाद होने बाली गंदगी, उमस रात्रि में लाइट के सामने आ जाने बाले कीड़े मकोड़े जिन्है देखकर भोजन भी नही खाया जा पाता। कीड़े मकोड़ों के अलावा मच्छरों का साम्राज्य हर तरफ होता है।अतः रोगों की लाइन लग जाती है।डाक्टरों के यहाँ रोगियों की भीड़ होती है।आजकल चूकि कपूड़े सूख नही पाते और वातावरण में नमी होती है गरमी के तुरंत बाद वर्षा होती है अतः वातावरण मे जल की भाप तथा वातावरणीय प्रभाव से जीव धारियों के शरीर मे अग्निबल कमजोर हो जाता है। जल दूषित हो जाता है ।जिससे जीवों का पाचनतंत्र गड़वड़ा जाता है।वातावरण की नमी से वायु जीवाणु व कीटाणु युक्त होने के कारण खादय पदार्थ जल्दी ही सड़ जाते है और पूरी तरह अगर सड़े न तो वदवू दार अवश्य हो जाते हैँ।इन्ही कम वदवूदार पदार्थो को खा लेने से,तथा अग्निवल क्षीण हो जाने से, वात कफादि दोष रक्त को दूषित कर देते हैं जिससे अनेकों रोग यथा बुखार, खांसी, अतिसार आदि के साथ अनेकों त्वचा रोग भी पैदा हो जाते हैं।ये चर्म या त्वचा रोग हैं फोड़े फुंसी,दाद, खाज खुजली,शीतपित्ती,चकते पड़ना, वात रक्त,पामा, योनिकण्डु,राँगन,कुष्ठ आदिहैं।इन त्वचा रोगो मे अधिकतर औपसर्गिक या छूत रोग हैं जो स्पर्श से या प्रसंग करने से या एक साथ सोने से एक दूसरे के कपड़े पहनने से हो जाते हैं।गंदे रहने बाले, गंदी बस्तियों मे रहने बाले लोग नमी या सीलन मे रहने वाले लोग भी इन रोगों से ज्यादातर पीड़ित रहते हैं।
कारण -चूंकि वातावरण प्रदूशित है अतः गंदगी, कीच़ड़, मे चलने से ,गंदा व दूषित जल पीने से,गीले वस्त्र पहनने से जितना बचा सके उतना बचें।बांसी खाना, दूषित भोजन, परस्पर विरोधी अन्नपान यथा केला के साथ दूध, मछली व दूध आदि का सेवन न करें। बिना मौसम के फल न खाए।
कब्ज या दस्त की स्थिति न बनने दें क्योंकि कव्ज से आँतो मे गंदगी जमा हो जाती है जिससे खाया पिया तो ठीक से हजम होता ही नही वातावरणीय प्रभाव के कारण जठराग्नि कम हो जाने से जिगर की गतिबिधियाँ भी कमजोर हो जाती हैं अतः रक्त दूषित हो जाता है और त्वचा रोग पैदा हो जाते हैं
गीले कपड़ो के पहनने से रागे लग जाती है बाद में इसमें फफूद लग कर दाद वन जाता है। शरीर में खुजली नामक भयंकर रोग हो जाता है।और खुजाने से नखूनों की त्वचा भी रोग ग्रसित हो जाता है।
बचाव-(1)- जल शुद्धि-शुद्ध जल का ही सेवन करें ।बरसात के दिनो में अच्छा रहेगा अगर आप अपने पीने के जल को ढक कर रखने के साथ ही उसमें चने के दाने के वरावर का फिटकरी का टुकड़ा डालकर रखें जिससे कचरा नीचे बैठ जाता है। इसको नितार कर पीतै रहैं।
(2)-पीने के पानी में तुलसी पत्र डालकर भी रख सकते हैं।
पानी किसी भी सूरत मे संक्रमित यी गंदा पानी न पियें नही तो पीलिया हैजा अतिसार आदि भयंकर रोगों के बनने में देर नही लगेगी।
(3)- नित्य स्नान करे जिससे हमारे शरीर में पाए जाने बाले असंख्य रोम कूपों की सफाई होती रहै।जिनसे पसीना निकल सके तथा रक्त शुद्धि होती रहै।
( 4)- त्रिफला चूर्ण प्रातः शांय कुनकुने जल के साथ रोजाना लेने से मल शुद्धि के साथ साथ रक्त शुद्धि भी होती रहेगी जिससे कोई चर्म रोग नही होगा और जो होगा वह भी नष्ट हो जाएगा।
(5)-7 पत्तियाँ तुलसी,7 पत्तियाँ नीम,7 पत्तियाँ मकोय की सेवन करते रहने से भी त्वचा रोग नही होते ।
रोग व उपचार- (1)- दाद- मजीठ जिसे मजिष्ठा भी कहा जाता है की जड़ को शहद के साथ घिस कर लेप वना लें इस लेप को लगाने से दाद समाप्त हो जाता है।
(2)-दाद को सही करने का एक देहाती नुस्खा- दाद पर पहले देशी घी लगाकर मसले उसके वाद थोड़ा सा चूना पावडर डाल कर मसलें दाद जड़ से साफ हो जाएगा।
(3)-त्वचा रोगों के उपचार के लिए वे औषधियाँ उपयुक्त रहती हैं जो मल एवं रक्त शोधक हों ये रोग तभी जड़ से खत्म होते हैं।केवल मलहम लगाने से ये रोग समूल नष्ट नही होते वर्षा ऋतु में त्वचा रोगों से ग्रसित व्यक्ति को 2 गोली आरोग्य वर्धनी वटी सुवह व शाम को,महामंजिष्ठादि क्वाथ 4-4 चम्मच जल के साथ देते रहें। खादिरारिष्ट 2 चम्मच सारिवारिष्ट 2 चम्मच भोजन के बाद दें।रात्रि में त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच गुनगुने पानी से तव तक ले जव तक कि रोग समाप्त न हो जाए।
(4)- नीम घरेलू वैद्य है इसकी 5 पत्तियाँ ,7 काली मिर्च पीसकर छानकर प्रतिदिन7 से 15 दिन पीने से फोड़े फुंसी दाद खाज दूर हो जाते हैं।
(5)- नीम की अन्तर्छाल को पानी में घिस कर मक्खन मिलाकर लगाने से त्वचा रोगों में बहुत लाभ होता है।
(6) खुजली के लिए कागजी नीबू का रस, नारियल तेल में मिलाकर लगाने से खुजली दाद व पामा में फायदा होता है।
(7) खुजली यदि सूखी हो तो -बाकुची 12ग्रा., आँवलसार गंधक 12 ग्रा. तूतिया 3 ग्रा. अलग -अलग कूट लें जरुरत के समय सारे सामान को 100 ग्रा. सरसों के तेल में डाल कर शरीर पर लगाएं। 2-3 घण्टे बाद नीम के साबुन से नहा लेना चाहिए।गीली खुजली में देवदार का तेल लगाना चाहिए।
त्वचा के रोगों का सही व सुगम्य उपचार केवल आयुर्वेद में ही है।इन रोगो का इलाज समय रहते व योग्य वैद्य के मार्गदर्शन में अवश्य ही समय रहते करा लेना चाहिये।इन रोगों को सामान्य रोग नही समझना चाहिये नही तो ये असाध्य हो सकते हैं
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