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सोमवार, 19 सितंबर 2016

सुजाक या मूत्रकच्छ गोनारिया,आतशक या उपदंश का घरेलु उपचार- (पुरुषों के गम्भीर रोग)

सुजाक या मूत्रकच्छ  अर्थात गनोरिया पुरुषों का रोग है Peshab Ki Vedana Males Ka Gambhir Rog

सिफलिस, मूत्रकच्छ, आतशक या उपदंश का घरेलु उपचार

मनुष्य शरीर जैसा कि सभी जानते हैं कि पुरुष व स्त्री के शरीर के अनेकानेक अंग तो एक जैसे होते हैं उनकी क्रिया विधि भी समान ही होती है किन्तु कुछ अंग प्रत्यंग मानव के शरीर में स्त्री व पुरुष में अलग अलग होते हैं जिन्हैं कि मानव जननांग कहा जाता है।और क्योकि शरीर की बनाबट अलग प्रकार की है कार्य भी अलग है तो जाहिर सी बात है कि आयुर्वेद क्या प्रत्येक चिकित्सा शास्त्र में इन अंगों के बारे में पुरुष व स्त्री का विवरण भी अलग अलग ही होगा।क्योंकि वसन्त ऋतु का आगमन होने बाला है तो काम भाव भी जाग्रत होगा ही अतः हम अब इन्हीं प्रकार के रोगों का वर्णन करने जा रहैं हैं जिनसे मानव मात्र के दुःखों का निवारण हो सके। मूत्रकच्छ ,सुजाक या गनोरिया  कारण व लक्षणGonorrhea cause and symptoms ----for reading in english click hear
Health-Heart Diseases Recovery Life: Signs and symptoms of STDs - Lovemaking Transmitted Diseases Quick Data
 सामान्य बोल चाल की भाषा में सुजाक के नाम से जाना जाने बाला रोग जो कि एलोपैथी डाक्टर्स गनोरिया के नाम से बताते हैं इस रोग को आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'मूत्रकच्छ'के नाम से वर्णित करते हैं।
वैसे मूत्रकच्छ के बहुत से लक्षण सुजाक से मिलते हैं साथ ही साथ यह भी बताते चलें कि  बहुत से विद्वान इसे प्रमेह का एक भेद ही मानते हैं और बहुत से लोग इसे उपदंश का विकार या फिर उपसर्ग भी बताते हैं ।किन्तु बहुत से जानकार हकीम कहते हैं कि यह सुजाक नही है सुजाक इससे अलग है। हम इस झगडे़ में नही पड़ना चाहते हैं हाँ आपको जानकारी दे दें कि हमें तो केवल आयुर्वेदिक मत का ही अनुसरण करते हुये मूत्रकच्छ का वर्णन करते हैं
 अतः मूत्रकच्छ के अन्य नाम है सुजाक, गनोरिया, उपदंश, पूयमेह, प्रमेह लैकिन फिर भी प्रमेह पूर्णतः सही नही है क्योंकि मूत्रकच्छ में प्रमेह के लक्षण जरुर मिलते हैं।
मूत्रकच्छ के प्रकार - आयुर्वेदिक ग्रंथो के अनुसार मूत्रकच्छ आठ प्रकार का होता है।
  1. वातज मूत्रकच्छ
  2. पित्तज मूत्रकच्छ
  3. कफज मूत्रकच्छ
  4. त्रिदोषज मूत्रकच्छ
  5. अश्मरीजन्य मूत्रकच्छ
  6. मलावरोध जन्य मूत्रकच्छ
  7. मूत्राघात एवं क्षतजन्य मूत्रकच्छ
  8. शुक्राक्षरणावरोधजन्य मूत्रकच्छ

नालस्यमूले मध्येवा रूद्धंवाग्रे शनेः शनेः।

कणशश्चेत् स्रवेन्मूत्रं मूत्रकच्छं तदुच्यते।।

अर्थात मूत्रनलिका की जड़ में बीचोंबीच या अग्रभाग के  रुंद्ध जाने से या कोई अवरोघ हो जाने से जब बूँद बूँद मूत्र स्रावित होता है तो यह व्याधि मूत्रकच्छ कहलाती है।
वाकी आप ज्यादा समझने के लिए इन लक्षणों को पढ़े :-----
  • वातज मूत्रकच्छ में मूत्रेन्द्रिय और मूत्राशय में भारीपन और पीड़ा होती है मूत्रेन्द्रिय में पीड़ा के साथ बारबार थोड़ा थोड़ा मूत्र आता है।
  • कफज प्रकार के मूत्रकच्छ में मूत्रेन्द्रिय और मूत्राशय में भारीपन सूजन भी आ जाती है तथा मूत्र चिकना चिकना सा आता है।
  • पित्त प्रकार के मूत्रकच्छ में पीला सा कुछ कुछ लालिमा लिए दर्द व जलन के साथ बारबार मूत्र उतरता है तथा अथाह कष्ट होता है।
  • सन्निपात या त्रिदोषज मूत्रकच्छ में सभी लक्षण एक साथ होते हैं यह मूत्रकच्छ कष्टसाध्य है।
  • शल्यज अर्थात मूत्राघात या क्षतजन्य अर्थात जिस प्रकार का मूत्रकच्छ कोई बस्तु मूत्रेन्द्रिय में लग जाने से जैसे मूत्र नलिका में किसी प्रकार की चोट लगने से वह बिंध जाए अथवा पीड़ित हो जाऐ तो उस घात से भयंकर मूत्रकच्छ हो जाता है इसके लक्षण वैसे वातज मूत्रकच्छ के समान होते हैं वैसे भी जो आयुर्वेद के थोड़े भी जानकार होंगे वे जानते होगें कि चोट आदि लगने से वात ही कुपित होता है।
  • मलाघात जन्य मूत्रकच्छ जैसा कि इसके नाम से प्रकट हो रहा है कि यह मल के रुक जाने से पैदा होता है मल की गाँठे या सुद्दे पड़ने से इसका प्रभाव मूत्रेन्द्रिय पर पड़ता है कारण यह है कि मल के रुकजाने से वायु विगुण या उल्टा होकर अफरा वातशूल और मूत्रनाश प्रकट हो जाता है तब भी मूत्रकच्छ पैदा हो जाता है।इस रोग में मूत्र त्याग में पीड़ा के साथ मल की दुर्गन्ध भी आना सम्भब है 
  • शुक्रजन्य या शुक्रक्षरणावरोधजन्य मूत्रकच्छ में जब वीर्य दोषों के योग के कारण मूत्रमार्ग में गमन करे तब मनुष्य को मूत्राशय व लिंग में शूल या दर्द होता है और मूत्रत्याग के समय मूत्र के साथ वीर्य भी आता है।वैसे जब बलपूर्वक कोई निकलते हुये शुक्र या वीर्य को रोकता है तब वीर्य कण सूखकर मूत्रमार्ग में अड़ जाते हैं इस कारण मूत्रोत्सर्ग के समय अत्यधिक कष्टप्रद वेदना होती है।
  • अश्मरी जन्य या पथरी के कारण जब पैशाव रुक जाता है तब यह व्याधि पैदा होती है।कभी कभी एसा शर्करा रुकने से भी होता है ।वैसे पथरी अर्थात अश्मरी व शर्करा के लक्षण समान ही हैं लैकिन जो अन्तर है वह यह है कि पित्त से पकने बाली तथा वायु से शुष्क होने वाली ऐसी पथरी कफ संबन्धी न हो वह मूत्र मार्ग से रेत के समान झरने लगती है तब वह शर्करा कहलाती है।उस शर्करा के योग से हृदय में पीड़ा, कम्पन,कोख या कुक्षि में शूल,मंन्दाग्नि मू्र्छा तथा भयंकर मूत्रकच्छ हो जाते है। 

अब बात करते हैं कि

सुजाक या गनोरिया Gonorrhea क्या है।


तो भाई सुजाक एक संसर्ग जन्य ब्याधि है यह एक ऐसा रोग है जिसमें सुजाक जन्य पुरुष या स्त्री परस्पर समागम करते हैं तो यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे को लग सकता है।उसके कारण गुहेन्द्रिय में उपस्थित दोष या कृमि एक दूसरे के अंगों में संक्रमण कर सकते हैं ऐलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार यह रोग गोनोकोकाई नामक वेक्टीरिया के कारण प्रकट होता है और इसी कारण इस रोग को ऐलोपैथी में गोनारिया भी कह देते हैं।यह रोग केवल पुरुषों को ही नही होता अपितु संसर्ग जन्य रोग होने के कारण यह स्त्रियों को भी हो जाता है।और फिर यही स्त्री रोग वाहक का कार्य भी कर सकती है अर्थात इस स्त्री से संसर्ग कर अन्य पुरुष जो कि रोगी नही है को भी यह रोग लग सकता है। सुजाक रोग में घाव मूत्रकच्छ के कारण भी हो सकते हैं क्योकि यह दोषों के कुपित होने के कारण ही तो उत्पन्न होता है और जैसा कि ऊपर बताया गया है कि मूत्रकच्छ में मूत्रनलिका में मूत्र रुकने के कारण रोग पैदा होता है तो जब गंन्दगी शरीर में रहैगी तो धीमें धीमें यह मूत्रनलिका के अन्दर घाव वना देती है जिससे कीटाणुओं के रहने लायक माहौल मिल जाता है फलस्वरुप सुजाक या गनोरिया पैदा हो जाता है ।हाँ यह रोग उपदंश से थोड़ा अलग है क्योंकि उपदंश में घाव इन्द्रिय पर बाहर होते हैं जबकि सुजाक या गोनोरिया में यही घाब लिंगेंन्द्रिय में भीतर होते हैं। 
      वैसे एसा संभव है कि मूत्रकच्छ या सुजाक की उत्पत्ति प्रमेह से हो जाऐ क्योकिं स्वपनदोष की तीव्रता में स्खलन होते ही पुरुष शुक्र को रोकने की चेष्ठा करता है तब वही रुका हुआ वीर्य मूत्रनलिका में आघात पहुँचाकर घाव बना सकता है फलस्वरुप सुजाक की उत्पत्ति होती है यही शुक्रजन्य मूत्रकच्छ भी है।
  अब इस प्रकार सभी पाठकों के यह समझ में आ गया होगा कि मूत्रकच्छ,सुजाक,पूयमेह, अथवा गोनारिया एक ही रोग के अलग अलग नाम हैं यह रोग केवल तीव्रता के आधार पर अलग अलग किये जा सकते हैं वास्विकता में एक ही रोग हैं और इसी कारण आयुर्वेद ने इनके निदान व चिकित्सा का सूत्र इस प्रकार दिया है कि ये सभी रोग औषधि के सही प्रयोग से यूँ ही ध्वस्त हो जाते हैं।
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