सिर्फ आयुर्वेद ही ऐसा शास्त्र है जो यौन शक्ति की सुरक्षा की सलाह प्रदान करता है।बाकी अन्य शास्त्र तो अभी उपर ही उपर फुलक पर डोल रहे हैं।उन्है यौन रोगों के वास्तविक कारणों की या तो जानकारी ही नही है और है भी तो आधी अधूरी।जबकि आयुर्वेद के पास इन रोगों की चिकित्सा का ही ज्ञान नही अपितु यह जानकारी भी है कि वीर्य नामक धातु का निर्माण कैसे होता है तथा वह कितना महत्वपूर्ण तत्व है।आयुर्वेद कहता है कि वीर्य की यत्नपूर्वक सुरक्षा करनी चाहिये जबकि अन्य शास्त्र कहते है कि वीर्य कोई अनमोल वस्तु नही है इसे तो रोज निकालो यह तो रोज बनता है। किन्तु यही चिकित्सा विज्ञानी बीमारों रोगियों को कोई लाभ प्रस्तुत करते नही देखे गये हैं। डाक्टरों से जब रोगी पूछता है कि डाक्टर सहाब मुझे हस्तमैथुन की आदत पढ़ गयी है या मुझे स्वप्न दोष होता है तो सीधा सपाट सा उत्तर देते हैं।कि यह तो रोज बनता है निकल जाए तो कोई बात नही है यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है।किन्तु भाइयों जब इसी हस्त मैथुन की लत के कारण जब रोगी कमजोर हो जाता है आँखें गढढे में धसने लगती हैं शरीर में कमजोरी आ जाती है जब शादी होती है तब सैकड़ों ऐसे युवा ही अपनी पत्नी के पास जाने से कतराते हैं.।तब पता चलता है कि यह कितना भयंकर रोग है।और तब शादी से पहले ब्रह्मचर्य की महिमा समझ आने लगती है।
अब असल बात पर आते हैं।बहुत से लोगों ने यह बात तो सुनी ही होगी कि काया राखे धरम और पूँजी राखे व्यवहार इसका मतलब है कि यदि शरीर स्वस्थ है बलबान है तो कर्तव्यों का पालन किया जा सकता है और अगर आपके पास रुपया पैसा है तो दुनिया दारी के कार्य व्यवहारों का पालन आसानी से हो सकेगा।यह एक अन्य कहाबत है कि शरीरमाद्यंखलुधर्म साधनम्।इसका मतवब भी शरीर की स्वस्थता की ही महत्ता ही समझाता है।और यौन शक्ति तो फिर इस बात पर निर्भर ही करती है क्योंकि अगर शरीर स्वस्थ नही है तो यौन शक्ति कहाँ से आएगी और यौन शक्ति नामक पूँजी जिसके पास नही उसके पास कितना भी धन क्यू न हो सब बिना मह्त्व का ही है। इसलिए यौन शक्ति स्वयं ही एक पूँजी ही है। और जैसे धन का अपव्यय करते करते धन एक दिन समाप्त हो जाता है उसी प्रकार यह यौन शक्ति भी धन की तरह ही नही एक तरह से धन से भी ज्यादा कीमती चीज है क्योंकि धन तो कमाया भी जा सकता है किन्तु यह क्षीण होने के बाद आ तो सकती है किन्तु साधन व साधना सी ही करनी पड़ती है।औऱ पुरीनी कुटेवें दोबारा से इसे प्राप्त करने में नयी नयी बाधाऐं उपस्थित ही करती हैं।फिर भी आयुर्वेद ने ऐसे लोगो के लिए आशा की किरणों को बन्द नही किया है जिससे क्षीणवीर्य मनुष्य भी कुछ सामान्य से नियमों का पालन ब यौन शक्ति व पाचन तन्त्र संबंधी उपचार लेकर इन भयंकर प्रताड़ना दायी रोगों से मुक्ति पा सकता है।
आयुर्वेद में यौन शक्ति सुरक्षा का सर्वाधिक प्रभावशाली व प्रमुख उपाय बताया है इन्द्रिय निग्रह करना या इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना इसका अर्थ है कि इन्द्रियों को न तो दमित करना ओर न ही पूर्ण छूट प्रदान करना ।अष्टांग हृदय सूत्र के अनुसार ' न पीड़ियेदिन्द्रियाणि न चैतान्यतिलालयेत्' अर्थात इन्द्रियों को न तो खुली छूट पट्टी दे कि वह भोग विलास में लिप्त हो जाए औऱ न ही अपेक्षाकृत ज्यादा दमन ही करें और इसके लिए प्रेरणाप्रदान करने का स्रोत है मन क्योंकि इन्द्रियाँ अपना कार्य मन के आदेश पर ही करती हैं।इसी कारण कहा जाता है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
यह इन्द्रिय निग्रह ब्रह्मचर्य का एक पार्ट है अष्टांग हृदय के अनुसार
' धर्म यशस्यमायुष्यम लोक द्वय रसायनम्।
अनुमोदाहे ब्रह्मचर्यमेकान्त निर्मलम् ।।'
धर्म के अनुकूल,यश देने वाला,आयुर्वर्धक,इस लोक व परलोक में रसायन अर्थात सदा उपकार करने बाला और सर्वथा निर्मल ब्रह्मचर्य का तो अष्टांगहृदय कार सदैव अनुमोदन करता है।
परन्तु आजकल ब्रह्मचर्य की बात अगर कर दी जाए तो लगभग प्रत्येक युवा शायद विपक्षी हो जाएगा।अभी कुछ समय पहले की ही बात है जब भारत में समलैगिक विवाहों को सरकारी मान्यता प्रदान की गयी थी तो एक बहस सी चल पड़ी थी कि क्या भारत में खुले सेक्स की अनुमति प्रदान कर दी जाए तो आकड़े बड़े ही चौकाने बाले आये ज्यादा तर युवा इस जहर के पक्ष मे ही था तब ब्रह्मचर्य के बारे में चर्चा करने के क्या परिणाम आयेंगे यह आसानी से समझा जा सकता है।
परन्तु भैया किसी को अच्छा वेशक न लगे किन्तु हमारा कार्य तो आयुर्वेद की जानकारी सही व पूर्ण रुप से आपको प्रोवाईड करनी है सो हम तो यथार्थ रुप में ही आपको यह जानकारी दैंगे ही।बाकी आपकी मर्जी चाहैं इसे दकियानूसी विचार कहैं या पुरातन पंथी बात किन्तु भैया अगर जीवन को विना रोग के आनन्द दायक बनाना है तो 25 की उम्र तक तो ब्रह्मचर्य का पालन करना ही चाहिये।लैकिन भैया आजकल टी.बी. कम्प्युटर व फिल्म व समाचार पत्रो के इस युग में जैसी नग्नता व फूहड़ता का खुला प्रदर्शन हो रहा है उससे बचा रहना बड़ा ही कठिन है।
.......................................................................क्रमशः---------------------------------
अब असल बात पर आते हैं।बहुत से लोगों ने यह बात तो सुनी ही होगी कि काया राखे धरम और पूँजी राखे व्यवहार इसका मतलब है कि यदि शरीर स्वस्थ है बलबान है तो कर्तव्यों का पालन किया जा सकता है और अगर आपके पास रुपया पैसा है तो दुनिया दारी के कार्य व्यवहारों का पालन आसानी से हो सकेगा।यह एक अन्य कहाबत है कि शरीरमाद्यंखलुधर्म साधनम्।इसका मतवब भी शरीर की स्वस्थता की ही महत्ता ही समझाता है।और यौन शक्ति तो फिर इस बात पर निर्भर ही करती है क्योंकि अगर शरीर स्वस्थ नही है तो यौन शक्ति कहाँ से आएगी और यौन शक्ति नामक पूँजी जिसके पास नही उसके पास कितना भी धन क्यू न हो सब बिना मह्त्व का ही है। इसलिए यौन शक्ति स्वयं ही एक पूँजी ही है। और जैसे धन का अपव्यय करते करते धन एक दिन समाप्त हो जाता है उसी प्रकार यह यौन शक्ति भी धन की तरह ही नही एक तरह से धन से भी ज्यादा कीमती चीज है क्योंकि धन तो कमाया भी जा सकता है किन्तु यह क्षीण होने के बाद आ तो सकती है किन्तु साधन व साधना सी ही करनी पड़ती है।औऱ पुरीनी कुटेवें दोबारा से इसे प्राप्त करने में नयी नयी बाधाऐं उपस्थित ही करती हैं।फिर भी आयुर्वेद ने ऐसे लोगो के लिए आशा की किरणों को बन्द नही किया है जिससे क्षीणवीर्य मनुष्य भी कुछ सामान्य से नियमों का पालन ब यौन शक्ति व पाचन तन्त्र संबंधी उपचार लेकर इन भयंकर प्रताड़ना दायी रोगों से मुक्ति पा सकता है।
आयुर्वेद में यौन शक्ति सुरक्षा का सर्वाधिक प्रभावशाली व प्रमुख उपाय बताया है इन्द्रिय निग्रह करना या इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना इसका अर्थ है कि इन्द्रियों को न तो दमित करना ओर न ही पूर्ण छूट प्रदान करना ।अष्टांग हृदय सूत्र के अनुसार ' न पीड़ियेदिन्द्रियाणि न चैतान्यतिलालयेत्' अर्थात इन्द्रियों को न तो खुली छूट पट्टी दे कि वह भोग विलास में लिप्त हो जाए औऱ न ही अपेक्षाकृत ज्यादा दमन ही करें और इसके लिए प्रेरणाप्रदान करने का स्रोत है मन क्योंकि इन्द्रियाँ अपना कार्य मन के आदेश पर ही करती हैं।इसी कारण कहा जाता है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत।
यह इन्द्रिय निग्रह ब्रह्मचर्य का एक पार्ट है अष्टांग हृदय के अनुसार
' धर्म यशस्यमायुष्यम लोक द्वय रसायनम्।
अनुमोदाहे ब्रह्मचर्यमेकान्त निर्मलम् ।।'
धर्म के अनुकूल,यश देने वाला,आयुर्वर्धक,इस लोक व परलोक में रसायन अर्थात सदा उपकार करने बाला और सर्वथा निर्मल ब्रह्मचर्य का तो अष्टांगहृदय कार सदैव अनुमोदन करता है।
परन्तु आजकल ब्रह्मचर्य की बात अगर कर दी जाए तो लगभग प्रत्येक युवा शायद विपक्षी हो जाएगा।अभी कुछ समय पहले की ही बात है जब भारत में समलैगिक विवाहों को सरकारी मान्यता प्रदान की गयी थी तो एक बहस सी चल पड़ी थी कि क्या भारत में खुले सेक्स की अनुमति प्रदान कर दी जाए तो आकड़े बड़े ही चौकाने बाले आये ज्यादा तर युवा इस जहर के पक्ष मे ही था तब ब्रह्मचर्य के बारे में चर्चा करने के क्या परिणाम आयेंगे यह आसानी से समझा जा सकता है।
परन्तु भैया किसी को अच्छा वेशक न लगे किन्तु हमारा कार्य तो आयुर्वेद की जानकारी सही व पूर्ण रुप से आपको प्रोवाईड करनी है सो हम तो यथार्थ रुप में ही आपको यह जानकारी दैंगे ही।बाकी आपकी मर्जी चाहैं इसे दकियानूसी विचार कहैं या पुरातन पंथी बात किन्तु भैया अगर जीवन को विना रोग के आनन्द दायक बनाना है तो 25 की उम्र तक तो ब्रह्मचर्य का पालन करना ही चाहिये।लैकिन भैया आजकल टी.बी. कम्प्युटर व फिल्म व समाचार पत्रो के इस युग में जैसी नग्नता व फूहड़ता का खुला प्रदर्शन हो रहा है उससे बचा रहना बड़ा ही कठिन है।
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अच्छा व जानकारी भरा लेख
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी blog बहुत अच्छी लगी। मैं एक Social Worker हूं और Jkhealthworld.com के माध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देता हूं। मुझे लगता है कि आपको इस website को देखना चाहिए। यदि आपको यह website पसंद आये तो अपने blog पर इसे Link करें। क्योंकि यह जनकल्याण के लिए हैं।
जवाब देंहटाएंHealth World in Hindi
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