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शनिवार, 8 दिसंबर 2012

जाने आयुर्वेद का आधार प्रकृति वात पित्त व कफ को -नाड़ी विज्ञान

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 भाईयों आप जैसा कि जानते हैं कि ब्लागर स्वभाव से घुमक्कड़ होता है और चूकिं मैं एक ब्लागर हूँ तो  जाहिर सी बात है कि घुमक्कड़ भी हूँ।हाँ बाकी कहीं नही किन्तु इण्टर नेट पर तो घुमक्कड़ी इतनी करता हूँ कि श्री मती जी भी परेशान हैं कि खाने पीने की भी सुध नही रखते हमेशा कहीं न कहीं घूमने निकल पड़ते हों।वैसे भाई मैरे घर बालों को कोई फायदा हो न हो किन्तु मैं अपने पाठको को नई नई जानकारियाँ जरुर खोजता हूँ।देखो आज मैने अपना फेसवुक एकाउण्ट खोला कि सामने भैया श्री कुमुद किशोर भारतीय जी का एकाउण्ट नजर आया कि उन्हौने स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ की एक पोस्ट लाइक की हुयी है झट से मैने नजर डाली देखा यह तो मेरे पाठकों के बड़े ही काम की है तो आपके लिये ले आया हूँ।
     आयुर्वेद जैसा कि पहले भी बता चुका हूँ कि आयु का वेद है जो आपको बताता है कि आपको अपना शरीर कैसे चुस्त दुरुस्त रखना है वल्कि सही मायनो में कहा जाए कि निरोगी काया कैसे पानी है तो उसने बताया कि भाई जैसा बह्माण्ड वैसा अण्ड यानि की शरीर जो गतिविधियाँ ब्रह्माण्ड में पायी जाती है वे ही पायी जाती है शरीर में सो जैसे जाड़ा गर्मी व बरसात प्रकृति में पायी जाती है।और इनके विना प्रकृति का क्रम नही चल सकता है किन्तु कमी व अधिकता दोनो ही वरबादी का कारण वनती है उसी प्रकार जीव के शरीर मैं भी तीन प्रकृतियाँ पायी जाती है उन्है बोलते है वात,पित्त व कफ और इनका सन्तुलन जीव शरीर को निरोग रखता है किन्तु कमी या अधिकता जीव को रोगी बना देते है।इन तीनो के अलग अलग कमी या अधिकता से उत्पन्न दोष ही अलग-2 रोगों के नाम से जाने जाते हैं।और जब कोई दो या तीन दोष मिलकर कुपित होते हैं तो अन्य रोगों की उत्पत्ति होती है।तीनो दोषो के कुपित होने बाले रोगो को त्रिदोषज रोग कहा जाता है।इन रोगों के निदान या पहिचान के लिए ऋषियों ने एक पद्धति का आविष्कार किया था जिसे नाड़ी विज्ञान के नाम से जाना जाता है।आजकल नाड़ी विज्ञान के जानकार लुप्त प्राय ही हैं किन्तु बाबा रामदेव जी के आगमन ने आयुर्वेद के क्षेत्र में एक क्रान्ति का आगाज करा दिया है।यह मानव समाज के लिऐ आयुर्वेद का एक वरदान ही है। आज की पोस्ट के लिए हम आभारी हैं श्री कुमुद किशोर भारतीय जी के क्योकि उनके लाइक करने के कारण ही यह मुझे दिखाई दी।तथा दूसरा आभार स्वदेशी अपनाओ देश बचाओ एकाउण्ट का जिनके कारण यह आप लोग आज पढ़ पाऐंगे।
                                                ज्ञानेश कुमार वार्ष्णेय 

वात दोष --
- जब शरीर में वायु तत्व सामान्य से अधिक हो जाता है तो इसे वात दोष कहा जाता है।
- नाडी देखते समय अंगूठे के पास पहली अंगुली में ज़्यादा स्पंदन महसूस होगा।
- सामान्यतः शरीर में वात शाम के समय और रात्री के अंतिम प्रहर में बढ़ता है . इस
.com/blogger_img_proxy/ समय किसी रोग की तीव्रता बढना रोग के वात रोग होने की तरफ इशारा करता है।
- जीवन के अंतिम प्रहर यानी बुढापे में भी वात प्रबल होता है।
- वात के साथ पित्त दोष भी होने से इसे नियंत्रित करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है ; पर असंभव नहीं।
- वात यानी हवा का गुण है की वह फुलाता है . इसलिए वात दोष होने से शरीर कभी कभी फूल जाता है . ऐसा मोटापा किसी गैस के भरे गुब्बारे के समान नज़र आता है . यह मोटापा मज़बूत नहीं करता बल्कि अन्दर से खोखला कर देता है।
- हवा का एक गुण है सुखाना . इसलिए कभी कभी वात रोगी सुख के काँटा हो जाता है . कितना भी खाए पिए , शरीर कृशकाय ही रहता है।
- सुखाने के गुण के कारण ही वात जब बढ़कर संधियों (joints ) में , रक्त नलिकाओं में प्रविष्ट होता है तो वहां सुखाता है . इससे संधियों का द्रव्य सूख जाता है और अर्थराइटिस की शुरुवात होने लगती है . घुटनों में हवा भरेगी और उठते बैठते कड कड आवाज़ आएगी . दर्द शुरू हो जाएगा .
- रक्त नलिकाओं की दीवार रुखी हो जाने से वहां कुछ ना कुछ चिपकने लगेगा और वह संकरी जायेगी। उसकी एलास्टिसिटी कम होने से रक्तदाब (ब्लड प्रेशर ) बढेगा।
- सुखाने के गुण के कारण ही त्वचा रुखी होने लगेगी। एडियों में दरारें पड़ने लगेंगी। बाल रूखे होंगे। dendruff होगा।
- दांत कमज़ोर हो कर हिलने लगेंगे।
- नर्वसनेस . कम्पवात आदि रहेगा।
- घबराहट रहेगी। ज़्यादा डर लगने से भी वात बढ़ता है।अतः हॉरर फिल्मे , सीरियल . क्राइम से कार्यक्रम देखना वात बढाता है।
- स्वप्न आते है। रात्री के अंतिम प्रहर में स्वप्न ज़्यादा आते है ; क्योंकि यह वात का समय है।
- शरीर में वात का घर है पैर और पेट में बड़ी आंत। इसलिए वात रोगी का पेट फुला हुआ और कड़क महसूस होगा जैसे किसी गुब्बारे में हवा भरी हो। पेट छूने में नर्म नहीं लगेगा। ज़्यादा भाग दौड़ और चलना फिरना होने से पैरों पर काम का दबाव बढ़ता है और वात बढ़ता है। इसके लिए घुटने और नीचे के पैरों को , तलवों को खूब दबाये , तेल मले। कुछ डकारें आ जाएंगी और आराम मिलेगा।
- शादी ब्याह में खूब भाग दौड़ करने से वात बढ़ जाता है। इसलिए आखिर में खूब घी वाली खिचड़ी खा कर गर्म कढ़ी पी जाती है। वात निकल जाता है। आराम मिलता है।
- हवा का गुण है चलना या रुकना। जब वात बढेगा तब शरीर की सामान्य हलन चलन की क्रियाएं जैसे आँतों का हलन चलन प्रभावित होगा और कब्ज होगी . कितना भी सलाद खाएं ; कब्ज बनी रहेगी . मल सुख जाएगा.
- मन चंचल रहेगा . कल्पनाएँ ज़्यादा करेगा . कभी कुछ सोचेगा ; कभी कुछ . मूड़ बदलता रहेगा . ज़्यादा वात विकार हिस्टीरिया , मानसिक विकार भी पैदा कर देता है। कभी कभी रचनात्मकता के लिए ये आवश्यक है पर इसकी अति विकार है , जैसे एम एफ हुसैन में हो गया था !
- कोई भी बदलाव वात बढ़ा देता है . फिर चाहे वो छोटा हो या बड़ा . जितना बड़ा बदलाव उतना ज़्यादा वात बढेगा . जैसे सुबह उठे - बदलाव है ( सोते से उठे ) ; सो वात थोड़ा बढ़ा . धुप से छाँव में या छाँव से धूप में गए , वात बढेगा . एसी कमरे से गर्मी में आये या गए , वात बढेगा . मौसम में बदलाव , अचानक सर्दी या गर्मी बढ़ने से वात बढेगा . अचानक गंभीर चोट लगी , मानसिक आघात लगा , वात बहुत बढेगा . ऐसे समय यंह सावधानी ले की कोई रुखी या ठंडी वस्तु का सेवन ना करें , ठंडा पानी या शीतल पेय ना पिए। गर्म पानी ले।
- जब विवाह होता है ; तो यह एक बहुत बड़ा बदलाव है . इसलिए पति पत्नी कम से कम छः महीने महीने तक रुखी और ठंडी वस्तु जैसे आइस क्रीम आदि का सेवन ना करें . इससे मन में रूखापन नहीं आयेंगा और नए रिश्ते आसानी से बन पायेंगे और ज़िन्दगी भर बने रहेंगे। आज कल तो पति पत्नी शादी में एक दुसरे को आइसक्रीम खिलाते है और रुखा डाएट फ़ूड लेतें है . ठंडा पानी , शीतल पेय लेते है। फिर रिश्तों की बुनियाद कमज़ोर रह जाती है।
- जब बच्चा होता है तो माँ के जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव है . इसलिए छः महीने तक सावधानी लेनी होती है . वरना शरीर फूल कर कमज़ोर हो जाता है . कई बार दूध सूख जाता है . कई बार गंभीर बीमारियाँ इसी समय हमला करती है जैसे दमा , अर्थराइटिस , रक्तचाप , पाइल्स , हिस्टीरिया आदि.
- वात यानी हवा शरीर में घुसने के द्वार है नाक , कान , मुंह आदि। इसलिए नाक , कान आदि में तेल डाले . कान ढकना चाहिए।आजकल के युवा गाडी चलाते नहीं उड़ाते है और कान ढकते नहीं। फिर उनमे उन्माद , अचानक तीव्र आवेश , दुबलापन या मोटापा , बाल झडना आदि समस्याएँ पाई जाती है। इसलिए याद रखे गाडी उड़ाना नहीं चलाना है . और कान ढकने में शर्म आती हो तो रुई डाल ले।
- बस या ट्रेन में खुली खिड़की के पास बैठने से सिरदर्द होने लगता है क्योंकि वात बढ़ जाता है।
- वात दोष दूर होता है गर्म पेय , गर्म पानी और शुद्ध घी और छने (fitered ) तेल से।
- कई बार ऐसा देखा गया की किसी को गंभीर चोट लगी और वह , है उसे अस्पताल ले जा रहा है . पर उसे किसी ने ठंडा पानी पिला पिला दिया और वह अचानक मर गया। किसी के करीबी व्यक्ति की मौत हुई। वह रो रहा है। किसी ने उसे ठंडा पानी पिला दिया ; उनकी भी बोलो राम हो गई।करीबी लोग सोचते रह जाते है की क्या हुआ ..... इसलिए हर एक को जानना ज़रूरी है की गंभीर चोट या मानसिक आघात लगे व्यक्ति को गर्म जल दे।
- वात दोष ना हो इसलिए ध्यान रखे पानी गटा गट ना पिए। मुंह में चबा चबाकर घूंट घूंट ले। कभी भी पानी खड़े खड़े ना पिए। हो सके तो उकडू बैठ कर पिए। जिससे वात के अंग - निचला पेट और पिंडलियाँ दबती है और उसमे वात नहीं घुसता।
- दूध हमेशा घी डाल कर खड़े खड़े पिए।
- रिफाइंड तेल का प्रयोग कभी ना करे। कच्ची घानी का कोई भी तेल जैसे फली दाना ,तिल नारियल , सरसों उत्तम है।
- वात बढाने वाला भोजन शाम 4 बजे के बाद ना ले। जैसे मूली , बैंगन , आलू ,गोभी आदि।
- वात दोष नियंत्रण में रखे और कई गंभीर बीमारियों को दूर रखे।
- वात के सन्दर्भ में और कुछ याद आया तो जोड़ते रहेंगे। अपना खूब ध्यान रखे। धन्यवाद।

3 टिप्‍पणियां:

  1. blogger_logo_round_35

    जानकारी देने के लिए आपका धन्यवाद

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  2. blogger_logo_round_35

    Muze pith me dard rehta he (gardan k niche ke bhag me) or vaha dard ghumta rehta he or kam jyada hota rehta he or jaldi se thik nahi hota
    muze pata he ye pitt vaat dosh he
    muze kya karna chahiye
    Or muze kabj bhi rehti he pet bhi thik se saaf nahi hota.

    जवाब देंहटाएं

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