Makoy A natural Ayurvedic Medicine That Cure Heart And Liver Disease
मकोय एक दिव्य औषधि जो कर देती है हृदय एवं यकृत रोगों का सफाया
मकोय का पौधा इस पृथ्वी पर यकृत के रोगों व हृदय के रोगों की सबसे अच्छी औषधि कही जा सकती है । इस मकोय की पत्तियाँ पीलिया के रोग में आयुर्वेद के अनुसार अगर काड़ा बनाकर ले ली जाऐं तो पीलिया विल्कुल ही नष्ट हो जाता है, पहले भी मैं हैपेटाइटिस वाले लेखों में आप लोगों को बता चुका हूँ कि यकृत के रोग आपके अनियमित खानपान,शराव आदि का ज्यादा सेवन,शहरी जीवन शैली,तनाव व काम की अधिकता,निराशा आदि के कारण रोग ग्रसित होता है वैसे इसकी कार्य क्षमता इतनी है कि इसका 10प्रतिशत भाग भी सही रहै तो यह काम करता रहेगा।ध्यान दें कि आपके शरीर के दो ही अंग हैं जिन पर खानपान व जीवन शैली का गंभीर प्रभाव पड़ता है जिनमें पहला है यकृत और दूसरा हृदय जिसे दिल भी कहते हैं।इन दोनों अंगों में रोग हो जाने पर विशेष बात यह है कि हजार रुपये से कम में तो बात बनती नही और लाखों लग जाए इसकी संभावना भी कम नही सो भइया आयुर्वेद का कहना मानो उसका नीति श्लोक है कि 'चिकित्सा से परहैज बहेतर' अर्थात जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ रोग का इलाज है उन कारणों का विनाश करो जिनसे रोग की उत्पत्ति हुयी है सो अपनी जीवन चर्या एसी बनाओ कि रोग पास ही न फटकें ।लैकिन जब रोग हो ही गया है तो चिकित्सा तो करनी ही पड़ेगी।प्रकृति ने हमें अनेकों औषधियाँ प्रदान की हैं जो प्रयोग करने पर हमारे रोगों को दूर कर सकती हैं इनमें कुछ तो एसी हैं कि जिन्हैं हम अनजाने में घास कूड़ा समझते हैं और आजकल के वैज्ञानिकों ने कृषि विज्ञान के छात्रों को भी खरपतबार नाम बताकर भारतीय चिकित्सा विज्ञान में प्रमाणित औषधियों का विनाश करा दिया है।अब समय आ गया है जबकि हमें इनकी उपयोगिता को समझना होगा जिससे दिव्य औषधियां समाप्त न हो जाऐं ।
विभिन्न भाषाओं में मकोय के नाम ---
ऐसी ही एक दिव्य औषधि है मकोय जिसे संस्कृत में काकमाची के नाम से जाना जाता है।कहीं कहीं इसे चरगोटी,चरबोटी,चिरपोटी,कबैया या गुरुमकाई कहते है हमारे यहाँ लोग इसे मकोई के नाम से जानते हैं।
गुजराती में पीलूडी,मराठी में लघु कावड़ी जबकि मुम्बई में इसे घाटी,कामुनी या मको के नाम से जाना जाता है।पंजाबी में यही कचमच,मको व कॉसफ बोला जाता है वहीं बंगाल में ये काकमाची,मको,तलीदन या गुड़काभाई के नाम से जानी जाती है।तमिल में मानतक्कली तेलगू में वाजचेट्टू,कंमाची,या काकमाची उर्दू में मकोय,अरबी में अम्बू सालबा,फारसी में रोबाहतरीक कहा जाता है इसी औषधि को अग्रेजी में कामन नाइट शेड बोला जाता है तथा इसके British Columbia Drug and Poison Information Center (BC DPIC) में गुण धर्म भी इस लिंक पर देखे जा सकते हैं।
मकोय की पहिचान ----
मकोय का पौधा जो हृदय रोग को क्योर कर देता है। |
यह मिर्च के पौधे जैसा पोधा होता है जिसके पत्ते मिर्च के पत्तों से आकार में बड़े होते है लगभग वैंगन के पत्तों जैसे लेकिन वैंगन के पत्ते बहुत बड़े होते हैं इस पौधे की अधिकतम ऊँचाई 3 फिट के लगभग हो सकती है।इस पर फूल भी लगभग मिर्च जैसा ही आता है और मिर्च जैसी डालियाँ भी होती हैं इसके फल छोटे छोटे तथा समूह में होते है ये गोल गोल होते हैं पकने पर लाल हो जाते हैं तथा बाद में काले हो जाते हैं।इसके पुष्प मिर्च जैसे तथा छोटे छोटे सफेद रंग के होते हैं।
मकोय के गुण व प्रभाव-
मकोय या काकमाची त्रिदोषनाशक अर्थात वात,पित्त व कफ तीनो दोषों का शमन करने वाला है। यह तिक्त अर्थात कड़ुवा स्वाद रखने वाली तथा इसकी प्रकृति गर्म,स्निग्ध,स्वर शोधक,रसायन,वीर्य जनक,कोढ़,बबासीर,ज्वर,प्रमेह,हिचकी,वमन को दूर करने वाला तथा नेत्रों को हितकर औषधि है। यह यकृत व हृदय के रोगो को हरने वाली औषधि है। यकृत की क्रिया विधि जब विगड़ जाती है, तो शरीर में अनेक उपद्रव यथा सूजन,पतले दस्त,व पीलिया जैसे रोगो के अलाबा कई बार बवासीर जैसे रोग होने लगते हैं। इन रोगों में मकोय का सेवन बहुत ही लाभ प्रद रहता है। यह औषधि यकृत की क्रियाविधि को धीरे धीरे सुद्रढ़ करके रोग का विनाश कर देती है। इस औषधि के प्रयोग से यकृत संवंधी रोग धीमें धीमें समाप्त हो जाते हैं। इस औषधि के पत्तों का रस आँतों में पहुँचकर वहाँ इकठ्ठे विषों का विनाश करके पेशाव द्वारा शरीर से बाहर कर दिया जाता है।
शरीर में कहीं सूजन हो या फिर यकृत व हृदय में सूजन हो तो इस औषधि के पत्तों का रस पिलाना लाभकारी है, खूनी बबासीर में या मुँह के किसी भी हिस्से से रक्त स्त्राव में मकोय के पत्तों का रस लाभप्रद है। हृदय रोग में इसके फल देने से रोग मिट जाता है। जलोदर रोग में मकोय के फल देने से रोग मिटने लगता है। नेत्रों के रोगों में भी इस औषधि मकोय का प्रयोग बहुत ही हितकारी है। अब इतना बता देने पर इसके रस की महिमा आपको पता चल गयी होगी। मकोय का रस तिल्ली की सूजन,यकृत या जिगर की सूजन,यकृत के पुराने से पुराने रोग को मिटाने की ताकत रखता है।मकोय का रस तैयार करने की विधि नीचे दे रहा हूँ।मकोय का रस तैयार करने की विधि----
मकोय का रस निकाल कर उसे मिट्टी के बर्तन में भरकर धीमी अग्नि पर गर्म करें,धीरे धीरे उसका हरा रंग बादामी रंग में बदल जाता है,तब इसे उतार कर छान लें।
इस प्रकार तैयार रस को 100-150 ग्राम की मात्रा में लेने पर यकृत के रोग, बड़ी हुयी तिल्ली, हृदय संबंधी रोग दूर होने लगते हैं।यदि शरीर में खुजली की शिकायत हो तथा वह मिट नही रही हो।तो मकोय के रस की 25 से 50 ग्राम की मात्रा लेते रहने से यह मिट जाऐगी।इससे शरीर का रक्त शुद्ध हो जाता है।और रक्त से जुड़े सभी रोग मिट जाते हैं।
पढ़ने के लिए क्लिक करें------पीपल का पत्ता-- हृदय रोग का रामवाण इलाज
बहुत ही अच्छे तरीके से जानकारी दी गई है
जवाब देंहटाएंये लिव्हर के साथ ही किड़नी में भी उपयोगी है 9425821296
सर जी क्या आप ने सिटिक बताया हैं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , ये पौधा कहाँ मिलेगा।
जवाब देंहटाएंप्रतीक जी आपने पूछा कि यह मकोय का पौधा कहाँ मिलेगा तो अगर आप ग्रामीण प्रष्ठभूमि से हो तो गाँव में किसी से भी पूछने से पता लग जाऐगा कि यह पौधा कैसा है तथा कहाँ मिल जाऐगा और अगर आप किसी शहर मे रहते हैं तो किसी पार्क में ढूँढना पड़ेगा तब किसी माली से पूछना पड़ सकता है यह वही पौधा है जिसमें टमाटर की तरह लाल लाल मकोई आपने बचपन में खाई होगी।
जवाब देंहटाएंसर इसका अरक कहा मिलेगा
हटाएंV true
जवाब देंहटाएंyes Shweta ji it is really true.
हटाएंधन्यवाद गणैशजी।मकोय रस दिन मैं कितनी बार व किस समय लैना हैं ? कृपया बताइए ।
जवाब देंहटाएंआतौं के लिऐ जानकारी कोई जानकारी हो तो बताइए।
धन्यवाद गणैशजी।मकोय रस दिन मैं कितनी बार व किस समय लैना हैं ? कृपया बताइए ।
जवाब देंहटाएंआतौं के लिऐ जानकारी कोई जानकारी हो तो बताइए।
सुन्दर
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