मनुष्य का जीवन सांस पर आधारित है। यदि सांस की गति तीव्र होती है तो उतनी
आयु व्यक्ति की कम होती है एवं जितनी धीमी होती है उतनी आयु बढ़ती है।
प्राणायाम योगी अधिक करते हैं इसीलिए उनकी आयु अधिक होती है। सांस के
माध्यम को हम योग की भाषा में स्वर कहते हैं। नाक के जिस छिद्र से सांस ली जाती है उसी छिद्र की दिशा के अनुसार ही दाएं स्वर चलना या बाएं स्वर चलना कहा जाता है।
जिस प्रकार दिन में लग्न का परिवर्तन होता है, उसी प्रकार स्वर का परिवर्तन भी
उसी समय में होता है। यदि स्वर ठीक प्रकार से गति करे तो व्यक्ति के
स्वस्थ होने की पूर्ण संभावना रहती है। किंतु यदि स्वर विपरीत चले तो
शारीरिक के साथ दूसरी प्रकार की बाधाएं भी आने की संभावना बनती है।
स्वर की उचित-अनुचित स्थिति को तिथि के अनुसार ज्ञात किया जा सकता है।
सूर्योदय के समय जो तिथि हो, उस समय वह स्वर चलना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता
है तो उसका तात्पर्य यह मानना चाहिए कि कहीं न कहीं कोई गड़बड़ है। तिथि
के अनुसार स्वर चलना चाहिए।
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा दायां स्वर शुक्लपक्ष प्रतिपदा बायां स्वर
कृष्णपक्ष की द्वितीया दायां स्वर शुक्लपक्ष द्वितीया बायां स्वर
कृष्णपक्ष की तृतीया दायां स्वर शुक्लपक्ष तृतीया बायां स्वर
कृष्णपक्ष की चतुर्थी बायां स्वर शुक्लपक्ष चतुर्थी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की पंचमी बायां स्वर शुक्लपक्ष पंचमी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की षष्ठी बायां स्वर शुक्लपक्ष षष्ठी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की सप्तमी दायां स्वर शुक्लपक्ष सप्तमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की अष्टमी दायां स्वर शुक्लपक्ष अष्टमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की नवमी दायां स्वर शुक्लपक्ष नवमी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की दशमी बायां स्वर शुक्लपक्ष दशमी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की एकादशी बायां स्वर शुक्लपक्ष एकादशी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की द्वादशी बायां स्वर शुक्लपक्ष द्वादशी दायां स्वर
कृष्णपक्ष की त्रयोदशी दायां स्वर शुक्लपक्ष त्रयोदशी बायां स्वर
कृष्णपक्ष की चतुर्दशी दायां स्वर शुक्लपक्ष चतुर्दशी बायां स्वर
अमावस्या दायां स्वर पूर्णिमा बायां स्वर
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