एक व्यक्ति जो स्वयं तो पूर्णतः भारतीय बना ही अपने साथ में अपने साथ एक फल को भी भारतीय बना गया।
आजकल के समय में काश्मीर के सेब या फिर हिमाचल प्रदेश के सेब सारे विश्व में प्रसिद्ध हैं किन्तु इस प्रकार के सेब का भारतीय इतिहास ज्यादा पुराना नही है। करीव 100 वर्ष पहले एक अमेरिकन व्यक्ति जिसका नाम सेमुअल इवान स्टोक्स था 26 फरवरी 1904 को कुष्ठ रोगियों की सेवा करने के उद्देश्य से भारत आये किन्तु कुछ ही समय में वे भारत के गर्म मौसम को वर्दाश्त न कर सके इस कारण वे शिमला चले गये और वहीं रहने लगे वहीं एक एग्नेस नाम की पहाड़ी बाला से उनका प्यार परवान चढ़ गया और उन्हौने सितम्बर 1912 में विवाह कर लिया।इसके बाद यह अमेरिकन युवा देखते ही देखते पूर्णतः भारतीय बन गया और भारत की आजादी की लड़ाई में भारतीय पक्ष लेते हुये कई बार जेल गया यह व्यक्ति लाहौर जेल में बंद कर दिया गया ।बाद में सन् 1916 ई. में यह व्यक्ति भारतीय पहाड़ी लोगों के लिए व्यवसाय की व्यवस्था करने हेतु अमेरिका से सेब के पौधे भारत लाया और अपने बाग में इसने इन्हैं रोप दिया। सन् 1932 में इस व्यक्ति को भारतीय सभ्यता इतनी अच्छी लगी कि यह आर्यसमाजी बन गया और 1937 में इसी व्यक्ति ने एक मंदिर भी बनवाया।
एक
दोहे के साथ में अपनी बात प्रारम्भ करना चाहूँगा जो सेब के गुँणों को बताने के लिए
काफी है।
उठते हैं जो भोर में, जो करते प्राणायाम।
खाते हैं जो सेब नित, उन्हैं कहा वैद्य से काम।।
सेब जैसा कि सभी जानते हैं कि यह विश्व में किंग आफ् द फ्रट्स के नाम
से जाना जाता है यह स्वास्थ्य के लिये बहुत श्रेष्ठ व स्वादिष्ट फल है।यह रोज् कुल
का पौधा है इस कुल के सदस्य आढ़ू , खुबानी,नाशपाती, स्ट्रावेरी, रसबेरी, आलूबुखारा
तथा चेरी व बादाम हैं।सेब का वानस्पतिक नाम मेलस डोमेस्टिका है जो हरे, पीले या
लाल रंग का सफेद गूदेदार फल होता है।इसका स्वाद हल्का मीठा, तीखा व थोड़ा सा खट्टा
होता है।सेव को प्रायः कच्चा या ज्यूस के रुप में लिया जाता है।इससे फ्रूट सलाद,
सनडे सॉस, जेली, साइडर, एप्पल साइडर विगेनर(सिरका), आदि बनाये जाते हैं।बीज कड़वे
होते है जो खाऐ नही जाते हैं। इससे कई व्यंजन यथा एप्पल पाई,केक, कुकीज, ब्रेड
स्टफिंग आदि बनाये जाते हैं।
सेब का पेड़ तीन से बारह मीटर ऊँचा हो सकता है।इसकी पत्तियाँ
अण्डाकार 5 से 12 सेमी लम्बी तथी 3 से 6 सेमी. चौड़ी होती हैं।इसका फूल हल्के
गुलाबी रंग का पाँच पंखुड़ियों बाला होता है जो वसन्त ऋतु में लगने वाला सुन्दर पुष्प
है।
इस वृक्ष के अगर इतिहास की बात करें तो इस वृक्ष का उत्पत्ति स्थान
आजकल के कजाकिस्तान में केप्सियन सी और ब्लेक सी के मध्य स्थान में है।लैकिन अब
विश्व में हर देश में इसकी पैदाबार होती है आज इसकी 7500 प्रजातियाँ है।जिनमें रेड
डेलीशियश, गोल्डन डेलीशियस, ग्रेनी स्मिथ, मेंकिन्टोस, जोनाथन, गाला, और फ्यूजी
इसकी कुछ खास प्रजातियाँ हैं।चीन, अमेरिका, तुर्की, पोलेन्ड और इटली इसके प्रमुख
उत्पादक देश हैं।
पोषक तत्वों का खजाना- सेव कम कैलौरी वाला एक एसा फल है जिसमें पोषक
तत्व अपने भरपूर मात्रा में होते हैं।इसमें सोडियम,संत्रप्त वसा या कोलेस्ट्राल
नही होता अपितु इसमें जल में घुलनशील फाइबर पाया जाता है।यह विटामिन और
वीटाकैरोटिन का ख़जाना है जिसमें फ्लेवोनाइड और पोलीफेनोल्स विरादरी के अनेकों
एंटीऑक्सीडेंट होते हैं।इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता 5900 टीई होती है।सेव में पाए
जाने वाले प्रमुख फ्लेवोनाइड्स क्यूअरसेटिन,एपिकटेचिन,प्रोसायनिडिन बी-12 है।इसमें
बी काम्प्लेक्स विटामिन जैसे राइबोफ्लेविन, थायमिन, पाइरोडॉक्सिन प्रचुर मात्रा
में होते हैं।पोटेशियम, फास्फोरस औऱ कैल्सियम, खनिज तत्वों में प्रमुख हैं।
हाँलाकि सेब में फाइबर की मात्रा बहुत अधिक नही होती है ।100 ग्राम सेब में 2- 3
ग्राम ही फाइबर होता है जिसमें 50 प्रतिशत पेक्टिन हो ता है लेकिन यह फाइबर सेव के
अन्य पौषक तत्वों के साथ मिलकर रक्त में फैट्स और कॉलेस्ट्राल की क्षमता को कई
गुना बढ़ा देता है। सेब की रक्त के फैट्स को कम करने की क्षमता फाइबर से भरपूर कई
अन्य पदार्थों से भी अधिक होती है। लेकिन हृदय रोग में पूरा फायदा लेने के लिए
आपको सिर्फ पेक्टिन लेने से काम नही चलेगा अपितु पूरा सेब ही आपको खाना पड़ेगा।
हृदय हितैशी है सेब---------------------
सेब के अधिकतर पॉलीफेनाल्स शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं ये
खासतौर पर हमारी कोशिका भित्ती(सेल वॉल) के फैट्स को ऑक्सीडाइज होने से बचाती
है।सेब का यह गुण हृदय और रक्तपरिसंचरण तंत्र के लिए बहुत काम का है, क्योंकि रक्त
वाहिनियों की आन्तरिक सतह की कोशिकाऔं में फैट्स के आक्सीडाइज होने से वाहनियों के
बंद होने का खतरा मड़राता रहता है। और सेव में पाये जाने वाले पॉली फेनाल्स फैट्स
को आक्सीडाइज होने से बचाते हैं तथा सेब को हृदय हितैशी का दर्जा दिलाते हैं।
सेब के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट अस्थमा,फेफड़े का कैंसर का खतरा भी
कम कर देते हैं। पॉलीफेनाल्स के साथ सेब में 8 मिलीग्राम विटामिन सी भी पाया जाता है।यह वैसे तो विटामिन
सी की बहुत बड़ी मात्रा नही है किन्तु सेब में यह बड़ी ही खास है कारण यह है कि
विटामिन सी के पुनर्चक्रण के लिये फ्लेवोनाइड्स बहुत जरुरी हैं जो सेब में भरपूर
रुप से प्राप्त होते हैं।
सेब एक डाइविटीज डेमेजर भी है।-------
अभी नए शोधों के मुताविक डायविटीज के नियंत्रण में भी सेब का भरपूर
इस्तेमाल होने लगा है इसका कारण है सेव
में पाये जाने वाले पॉलीफेनाल्स कई स्तरों पर शर्करा(सुगर) के पाचन और अवशोषण
में बहुत महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं और
रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को बखूवी नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं ये
पॉलीफेनाल्स इस प्रकार कार्य करते हैं
Ø
ये शर्करा के पाचन में गतिरोध पैदा करते हैं
सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन और अन्य फ्लेवोनॉयड शर्करा को पचाने वाले एंजाइम्स
अल्फा अमाइलेज़ और अल्फा ग्लूकोसाइड को बाधित कर देते हैं ये एंजाइम जटिल शर्करा
को विघटन करके सरल कार्बनिक ग्लूकोज में परिवर्तित करते हैं जब सेब खाया जाता है
ये एंजाइम बाधित होते है तब जटिल शर्कराऐं ग्लूकोज में परिवर्तित नही होते और रक्त
में ग्लूकोज का स्तर नही बढ़ता है।
Ø
पॉलीफेनोल्स आँत्र में ग्लूकोज के अवशोषण की गति को भी धीमा
कर देते हैं जिससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है।
Ø
पॉलीफेनॉल्स ही पेनक्रियाज़ के बीटा सेल्स को
इन्सुलिन बनाने को प्रेरित करके इंसुलिन के रिसेप्टर्स का इंसुलिन के चिपकना और
कोशिका के मधुद्वार को खोलना जरूरी होता है।अतः यह कहा जा सकता है कि इंसुलिन
हार्मोन मधुद्वार को खोलने की कुंजी का कार्य करता है। इस तरह सेब में विद्यमान
पॉलीफेनाल्स रक्तशर्करा के नियंत्रण में मदद करते हैं।
सेब एक हार्टहीलर है -----------
सेव में जल में घुलनशील पेक्टिन और पॉलीफेनाल्स का अनूठा मिश्रण इसे
हृदय के लिए हितकारी बनाता है। नियमित रुप से सेव का सेवन करने से कोलेस्टरॉल और
घटिया किस्म का एलडीएल कोलेस्ट्रोल कम होने लगता है जो हृदय पर बुरा प्रभाव डालता
है।रक्त की बाहिकाऔं में रक्त में उपस्थित फैट्स का जब आक्सी डेसन ही जब सेव खाने
से कम हो जाता है तो फिर हृदय रोग से बचाब तो होगा ही।
एक कैंसर रोधी है सेब-------
सेब को आँत एव स्तन कैंसर जैसे कई प्रकार के कैंसरों में उपयोगी माना
गया है फिर भी फैंफड़ों के कैंसर रोग के निवारण में यह अपना एक महत्वपूर्ण स्थान
रखता है ।चूँकि जैसा कि पहले इसी लेख में कई स्थान पर कहा है कि इसके पॉलीफेनाल्स
एंटीऑक्सीडेंट व प्रदाह रोधी गुण रखते हैं जो फैफड़ों के कैंसर में रोगी के लिए
लाभदायक हैं।
नोट-कटे
सेब पर नीबू का रस मल देने से यह काला नही पड़ता है।
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